हम शरीर में न जाने कितने रोगाणु लिए फिरते हैं। न जाने कितने वाइरस व बैक्टीरिया के कैरियर बने रहते हैं। इनसे निपट लेती है शरीर की प्रतिरोधक क्षमता। लेकिन रुग्ण विचारों से निपटने का जिम्मा हमारा है।
2010-07-22
हम शरीर में न जाने कितने रोगाणु लिए फिरते हैं। न जाने कितने वाइरस व बैक्टीरिया के कैरियर बने रहते हैं। इनसे निपट लेती है शरीर की प्रतिरोधक क्षमता। लेकिन रुग्ण विचारों से निपटने का जिम्मा हमारा है।
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रूग्ण विचारों से तो स्वयं को ही निपटना होगा।
रूग्ण / सद् विचार वाइरस व बैक्टीरिया की प्रकृति बदल सकते हैं कि किस शरीर में कौन से वाइरस व बैक्टीरिया पलें। आपने अनुभव किया होगा कि एक ही वातावरण में भिन्न भिन्न व्यक्तियों की भिन्न भिन्न प्रतिरोधक क्षमता होती है। वस्तुत: विचार ही व्यक्ति के शरीर में पलने वाले वाइरस व बैक्टीरिया जैसे अतिथियों, मित्रों, शत्रुओं के स्वभाव का निर्धारण करते हैं।