सूर्या रोशनी में सब है, बस जॉकी नहीं

सूर्या रोशनी में सब कुछ है। नाम है, धंधा है, ब्रांड है। 1973 में बनी पुरानी कंपनी है। बिजली के नए से नए लैंप व ट्यूबलाइट के साथ ही वह स्टील के पाइप व स्ट्रिप भी बनाती है। प्रबंधन चौकस है। 2009-10 में उसने 1938.93 करोड़ रुपए के कारोबार पर 45.17 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। उसकी प्रति शेयर बुक वैल्यू अभी 88.71 रुपए है और प्रति शेयर लाभ (ईपीएस) है 16.23 रुपए। लेकिन शेयर का भाव चल रहा है केवल 85.15 रुपए यानी बुक वैल्यू से भी कम। हालांकि इसने इसी साल 6 अप्रैल को 99.50 रुपए का उच्चतम स्तर हासिल किया है।

इसके शेयर का पी/ई अनुपात केवल 5.25 है। दूसरे शब्दों में शेयर का बाजार मूल्य इसके ईपीएस से केवल 5.25 गुना है। यह जिस तरह की रोजमर्रा का जरूरी उत्पाद बनानेवाली कंपनी है और सूर्या का जो ब्रांड है, उसके हिसाब इसका शेयर ईपीएस से कम से कम 10 गुना होना चाहिए। लेकिन नहीं। सारी खूबियों के बावजूद यह दबा हुआ है। जानते हैं क्यों? क्योंकि इसमें कोई जॉकी नहीं है। जॉकी मार्केट मेकर या जॉबर से थोड़ी ऊपर की चीज है। मार्केट मेकर या जॉबर तो किसी स्टॉक में खरीद-बिक्री का भाव खोलकर लगातार सक्रियता पैदा करते हैं। लेकिन उन्हें जॉकी से मूल खुराक मिलती है।

बाजार के जानकार बताते हैं कि जॉकी एफआईआई भी होते हैं और ब्रोकर या ऑपरेटर भी। लेकिन अघोषित तौर पर। वे कंपनी प्रवर्तक से हाथ मिलाते हैं। उनसे कम भाव पर शेयर लेकर बाजार में उस शेयर में चाल पैदा करते हैं। अच्छी-खासी डील होती है उनकी प्रवर्तकों के साथ। जिन कंपनी के प्रवर्तक अपने शेयरों को ज्यादा बढ़ाने-घटाने में दिलचस्पी नहीं लेते, वे कोई जॉकी नहीं पकड़ते और नतीजतन उनका शेयर रामभरोसे पड़ा रहता है। चूंकि रिटेल निवेशकों की भागीदारी अपने यहां दो फीसदी भी नहीं है। इसलिए पहली बात तो उनकी खरीद आती ही नहीं, और आती भी है तो उससे खास फर्क नहीं पड़ता। सूर्या रोशनी ऐसा ही शेयर है जो सारी खूबियों के बावजूद ठंडा पड़ा हुआ है। लेकिन जो भी निवेशक कम से कम तीन साल का नजरिया रखते हैं, वे इस शेयर में निवेश कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

यहां चलते-चलते पी/ई के बारे में एक बात। जानकारों के मुताबिक किसी कंपनी के शेयर के मौजूदा पी/ई अनुपात के कम होने का मतलब हमेशा यह नहीं होता कि उसमें बढ़त की काफी संभावना है। अक्सर निवेशक किसी शेयर के पी/ई के ज्यादा होने से मान बैठते हैं कि वो शेयर अपनी औकात से ज्यादा महंगा है। लेकिन वर्तमान पी/ई से ज्यादा महत्वपूर्ण यह होता है कि भविष्य में कंपनी का ईपीएस या पी/ई अनुपात कितना हो सकता है। जिस तरह बाजार में अच्छी चीजें महंगी बिकती हैं, उसी तरह अच्छे शेयरों का पी/ई अनुपात भी ज्यादा रह सकता है। इसीलिए तमाम रिसर्च एनालिस्ट अपनी रिपोर्ट में कंपनी की भावी आय के अनुमान पर निवेश की सलाह देते हैं। वैसे भी किसी शेयर के भाव उस कंपनी की वर्तमान स्थिति के ज्यादा उसकी भावी संभावना का आईना होते हैं। खैर, यह सब सिद्धांत की बातें हैं। व्यवहार में तो हमारे यहां किसी शेयर को बढ़ाने के लिए जैक और जॉकी की जरूरत होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *