कविवर बिहारी का यह दोहा आपको भी याद होगा कि रे गंधि! मतिअंध तू, अतरि दिखावत काहि, कर अंजुरि को आचमन, मीठो कहत सराहि। सुगंध बेचनेवाले तू इन लोगों को इत्र दिखाने की मूर्खता क्यों कर रहा है। ये लोग तो इत्र को अंजुरी में लेकर चखेंगे और कहेंगे कि वाह, कितनी मीठी है। लेकिन कभी-कभी मूर्खता दिखाने में भी फायदा होता है। कैसे? तो… आपको एक कहानी सुनाता हूं।
एक समय की बात है। उज्जैनी राज्य के एक गांव में एक महान गणितज्ञ रहा करता था। राजा उसे अक्सर आर्थिक मसलों पर राय लेने के लिए बुलाया करता था। गणितज्ञ की ख्याति उत्तर में तक्षशिला और दक्षिण में कांची तक फैली हुई थी। इसलिए उसे बहुत दुख हुआ जब गांव के मुखिया ने उससे कहा कि आप निश्चित रूप महान गणितज्ञ हैं जिससे खुद राजा आर्थिक विषयों पर सलाह लेता है, लेकिन आपके बेटे को तो सोने और चांदी की कीमत का अंतर नहीं पता।
गणितज्ञ ने अपने बेटे को बुलाकर पूछा – सोने और चांदी में क्या ज्यादा मूल्यवान है? बेटे ने कहा – सोना। गणितज्ञ बोले – यह सही है। फिर भी गांव का मुखिया क्यों तुम्हारा मजाक उड़ाता है। कहता है कि तुम्हें सोने-चांदी के मूल्य का भेद नहीं पता है। वह गांव के बड़े-बूढ़ों के सामने मेरी भी तौहीन करता है कि मैं कैसा पिता हूं जो अपने बेटे को नहीं सिखाता। इससे मुझे तकलीफ होती है। मुझे लगता है कि गांव में हर कोई पीठ पीछे यह कहते हुए हंसता है कि इसके बेटे को सोने-चांदी का भेद नहीं पता। बेटा, मुझे समझाओ कि चक्कर क्या है?
बेटे ने बड़ी शांति से पिता को इसका कारण बताया। बोला – हर दिन जब मैं स्कूल जाता हूं तो गांव का मुखिया मुझे अपने घर के बाहर के चबूतरे पर बुलाता है। वहां उसके साथ गांव के तमाम लोग भी बैठे होते हैं। वह सबके सामने अपने एक हाथ में चांदी का सिक्का रखता है और दूसरे में सोने का। अब मुझसे कहता है कि इनमें से जो भी सिक्का ज्यादा कीमती हो, उसे मैं उठा लूं। मैं चांदी का सिक्का ही उठाता हूं। वह हंसता है। गांव वाले भी ठहाका लगाते हैं। हर कोई मेरा मजाक उड़ाता है। ऐसा हर दिन होता है। इसीलिए वे आपसे कहते हैं कि मुझे सोने-चांदी के मूल्य का भेद नहीं मालूम।
गणितज्ञ पिता उलझन में पड़ गया। बेटे को पता है कि सोने का सिक्के चांदी के सिक्के से ज्यादा कीमती है। फिर भी वह चांदी का सिक्का ही क्यों चुनता है। उन्होंने बेटे से पूछा कि सच्चाई जानते हुए भी वह सोने का सिक्का क्यों नहीं उठाता? इसके जवाब में बेटा पिता को अपने कमरे में ले गया और उन्हें एक बक्सा दिखाया। बक्से में चांदी के सैकड़ों सिक्के भरे पड़े थे। अब पिता की तरफ मुखातिब होकर गणितज्ञ के इस बेटे ने कहा – जिस दिन मैं सोने का सिक्का उठा लूंगा, उसी दिन मुखिया और गांववालों का यह खेल बंद हो जाएगा। वे मजा लेना बंद कर देगें और मुझे सिक्के मिलने रुक जाएंगे।
कहानी का सार यह है कि कभी-कभी अपने बड़े-बूढ़ों को खुश करने के लिए हमें मूर्ख दिखना पड़ता है। कभी-कभी अपने से छोटे लोगों के लिए भी ऐसा करना पड़ता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि हम जिंदगी के खेल में हार रहे होते हैं। एक जगह जीतने के लिए कभी-कभी दूसरी जगह हारना पड़ता है। जीवन में हार-जीत का पलड़ा ऐसे ही चलता है।
– फ्यूचर समूह के सीबीओ (चीफ बिलीफ ऑफिसर) देवदत्त पटनायक के एक लेख पर आधारित
बहुत सीख देती है ये कहानी !!
सुंदर पोस्ट
बढ़िया कहानी …आभार
कई वर्ष पहले एक चुटकुले के रूप में सोने चांदी के अंतर को पढ़ा था|| और प्रारंभिक स्कूल के पाठ्य-क्रम में शब्द को वाक्य में प्रयोग करना भी सीखा था| लेकिन एक चुटकुले को साहित्यिक दंत कथा स्वरूप प्रस्तुत करना पहली बार देखने को आया है| आप बुद्धिमान हैं और हम प्रसन्न है| ढेरों बधाई|
बढ़िया कहानी
very good very nice
इस लेख में आपके द्वारा प्रयुक्त दोहा कबीर जी का नहीं कविवर बिहारी का है।
बिहारी शहर के कवि हैं। ग्रामीणों की अरसिकता की हँसी उड़ाते हैं। जब गंधी (इत्र बेचने वाला) गाँव में इत्र बेचने जाता है तो सुनिये क्या होता है।
करि फुलेल को आचमन मीठो कहत सराहि।
रे गंधी मतिमंद तू इतर दिखावत काँहि।।
(फुलेल = इत्र, सराहि = सराहना करके, इतर = इत्र, काँहि = किसको)
कर लै सूँघि, सराहि कै सबै रहे धरि मौन।
गंधी गंध गुलाब को गँवई गाहक कौन।।
(गँवई = छोटा गाँव, गाहक = ग्राहक)
इसी तरह जब गाँव में गुलाब खिलता है तो क्या होता हैः
वे न इहाँ नागर भले जिन आदर तौं आब।
फूल्यो अनफूल्यो भलो गँवई गाँव गुलाब।।
(नागर = नागरिक, आब = इज्जत)
तहेदिल से आपका धन्यवाद। गलती पता चली तो फौरन उसे सुधार लिया। आप जैसे सुधी लोग नजर बनाए रखें तो यकीनन गलतियों की गुंजाइश कम हो जाएगी।
अनिल जी, हम आपके बहुत बड़े प्रशंशक हैं। आपके इस सुन्दर प्रयास में यदि हम कुछ भी सहायता कर सकें तो हमें ख़ुशी होगी। कृपया आप हमारे पन्ने पर भी यदा कदा कुछ बहुत प्रकाशित करते रहे। जय हिन्द जय हिन्दी।
Can anyone explain me the meaning of this
“ve na ihan nagar badhe, jin adar tou aab
सादर प्रणाम करता हूँ। ये कथा पढ कर मैं बहुत बहुत बिभोर हो गया हूँ। जब तक आपकी कोई भी सेवा नहीं मिलेगी, मैं ऋणी रहूँगा।
मुझे ऋण उतारने का रास्ता दिखाने की कृपा करें।
मेरा फोन 7001730442