सहारा समूह की जिस कंपनी, सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एसआईएफसीएल) ने अगले साढ़े तीन सालों के लिए भारतीय क्रिकेट टीम की स्पांसरशिप ली है, उसे डिपॉजिट लेने का सारा धंधा 30 जून 2011 तक समेट लेना होगा और 30 जून 2015 तक उसे जमाकर्ताओं से ली गई एक-एक पाई लौटा देनी होगी। यह वह अंतिम आदेश है जो भारतीय रिजर्व बैंक ने सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 17 जून 2008 को जारी किया था। इस आदेश में साफ कहा गया है कि एसआईएफसीएल लोगों से ऐसा कोई नया डिपॉजिट नहीं सकती जो 30 जून 2011 के बाद परिपक्व होता हो। इस तारीख के बाद वह मौजूदा डिपॉजिट खातों में भी कोई इंस्टॉलमेंट नहीं ले सकती।
रिजर्व बैंक ने तय कर रखा है कि कंपनी के ऊपर 30 जून 2009 तक जमाकर्ताओं की कुल देनदारी (एएलडी) 15,000 करोड़, 30 जून 2010 तक 12,600 करोड़ और 30 जून 2011 तक 9000 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इस दौरान जब भी कोई डिपॉजिट परिपक्व हो, कंपनी को उसे लौटाते रहना होगा और 30 जून 2015 से पहले तक सारे जमाकर्ताओं का पैसा लौटा देना होगा और तब जमाकर्ताओं के प्रति उसकी देनदारी शून्य होगी। साथ ही कंपनी को 16 जुलाई 2008 से पहले अपने बोर्ड में 50 फीसदी ऐसे स्वतंत्र निदेशकों को शामिल करना होगा, जिन्हें रिजर्व बैंक सही मानता हो।
कंपनी ने इस शर्त का पालन बखूबी किया है और उसके छह सदस्यीय बोर्ड में सुब्रत रॉय, जॉयब्रतो रॉय और ओम प्रकाश श्रीवास्तव के अलावा बाकी तीन सदस्य स्वतंत्र निदेशक हैं। लेकिन कंपनी ने कहीं भी रिजर्व बैंक का उक्त आदेश सार्वजनिक नहीं किया है जिसमें उसे डिपॉजिट का धंधा समेट लेने को कहा गया है। वह अब भी रिजर्व बैंक द्वारा उसे 3 दिसंबर 1998 को जारी किए गए पंजीकरण प्रमाण-पत्र को प्रमुखता से पेश करती है। उसका दावा है कि अप्रैल 2010 तक उसके पास 2.62 करोड़ डिपॉजिट खाते हैं और वह पूरे भारत में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी रेजिडुअलरी नॉन-बैंकिंग कंपनी (आरएनबीसी) है। इस दौरान उसने अपना संक्षिप्त नाम एसआईएफसीएल से बदल कर एसआईएफओ कर लिया है।
इस बाबत बात करने पर रिजर्व बैंक के एक अधिकारी ने अपनी पहचान न जाहिए करते हुए कहा कि कंपनी का यह दावा अपनी छवि को बरकरार रखने की कोशिश हैं। लेकिन जहां तक व्यवहार की बात है कि वह बराबर रिजर्व बैंक के आदेश का पालन कर रही है। जैसे, उसने मार्च 2008 से मार्च 2009 के बीच जमाकर्ताओं के डिपॉजिट की राशि 18055.69 करोड़ रुपए से घटाकर 15668.50 कर दी थी और उसने 30 जून 2009 तक जमाकर्ताओं के प्रति अपनी निवल देनदारी (एग्रीगेट लायबिलिटी टू डिपॉजिटर्स या एएलडी) 15,000 करोड़ से नीचे लाने की वचनबद्धता दोहराई थी।
जब उक्त अधिकारी ने पूछा गया कि आम लोग अब भी जानकारी न होने के चलते सहारा के पास डिपॉजिट करवा रहे हैं तो उनका कहना था कि सहारा समूह की यह कंपनी अब डिपॉजिट की केवल एक स्कीम चला रही है जिसका नाम है सहारा माइनर और इसमें भी वह मई 2011 तक के ही डिपॉजिट ले रही है। अगर कोई गड़बड़ी होगी तो हम जरूर उसकी तहकीकात करने के बाद कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि कंपनी के डिपॉजिट लेने के काम को रोका गया है। इसलिए वह सहारा म्यूचुअल फंड के स्पांसर और सहारा इंडिया लाइफ इंश्योरेंस के सह-प्रवर्तक के रूप में तो कामकाज जारी ही रख सकती है।
बता दें कि सहारा इंडिया लाइफ इंश्योरेंस को वित्त वर्ष 2008-09 में 14.80 करोड़ रुपए की आय पर 18.15 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। सहारा म्यूचुअल फंड का एयूएम (एसेट अंडर मैनेजमेंट या आस्तियां) मई 2010 में 756.23 करोड़ रुपए रहा जो पिछले महीने अप्रैल 2010 के 804.57 करोड़ रुपए से करीब 5 फीसदी कम है।