दो हफ्ते बाद 16 मार्च को पेश किए जानेवाले बजट में कई उत्पादों पर शुल्क की दरें बढ़ाई जा सकती हैं। साथ ही कर का दायरा भी बढ़ाया जा सकता है। बजट में इस तरह के तमाम उपाय होंगे ताकि रिजर्व बैंक आर्थिक विकास को गति देने के लिए बेझिझक ब्याज दरों में कमी कर सके। यह कहना है योजना आयोग के प्रधान सलाहकार प्रोनब सेन का। सेन ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हुई बातचीत में यह जानकारी दी।
प्रोनब सेन ने कहा, “एक संभावना यह है कि पिछले प्रोत्साहन को पूरी तरह वापस ले लिया जाए। इसकी रकम हमारे जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की करीब-करीब एक फीसदी है।” मालूम हो कि केंद्र सरकार ने 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद उद्योग जगत के लिए लगभग 1.86 लाख करोड़ रुपए का प्रोत्साहन पैकेज दिया था। इसका मुख्य तरीका शुल्क की दरों में कमी का था। इसे अब तक केवल आंशिक रूप से वापस लिया गया है। सेन का कहना था कि इसे वापस लेने की पूरी गुंजाइश है। एक्साइज ड्यूटी या उत्पाद शुल्क बढ़ाया जा सकता है।
दूसरी तरफ उद्योग संगठन लॉबीइंग कर रहे हैं कि आर्थिक सुधार को गति देने के लिए सरकार को टैक्स की दरों में और कमी करनी चाहिए। लेकिन सेन के मुताबिक, बहुत सारे उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी 10 से बढ़ाकर 12 फीसदी करने पर विचार किया जा रहा है। वित्त मंत्री बजट में बिजली के उपकरणों पर आयात शुल्क बढ़ा सकते हैं। उनका कहना था कि जब तक आप राजकोष की हालत सुधारने के लिए उपाय नहीं करते, तब तक रिजर्व बैंक को मौद्रिक नीति में ढील देने का अवसर नहीं मिलेगा।
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन ने भी कहा था कि सरकार को टैक्स व जीडीपी का अनुपात बढ़ाकर 12 फीसदी पर ले आना चाहिए। यह वित्त वर्ष 2007-08 में इसी स्तर पर था। लेकिन फिलहाल घटकर 10.4 फीसदी पर आ गया है।
असल में सरकार बढ़ते खर्च और घटते राजस्व के दो पाटों के बीच पिस रही है। इससे उसका राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने साल भर पहले बजट पेश करते हुए कहा था कि 2011-12 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.6 फीसदी रहेगा। लेकिन यह वास्तव में किसी भी सूरत में 5.6 फीसदी से कम नहीं होने जा रहा। राजकोषीय घाटे का बजट अनुमान 4.13 लाख करोड़ रुपए का है, जबकि वित्त मंत्रालय की ताजा सूचना के अनुसार जनवरी तक ही यह इसका करीब 105 फीसदी, 4.34 लाख करोड़ रुपए हो चुका है।
नोट करने की बात है कि दिसंबर 2011 की तिमाही में देश की आर्थिक विकास की दर घटकर 6.1 फीसदी पर आ चुकी है जो पिछली ग्यारह तिमाहियों की न्यूनतम वृद्धि दर है। इसकी वजह बढ़ती ब्याज दर और कच्चे माल की बढ़ी हुई कीमतों को बताया जा रहा है। रिजर्व बैंक ने मार्च 2010 से ब्याज दरों को बढ़ाने का जो सिलसिला शुरू किया था, उसे वह अक्टूबर 2011 से रोक चुका है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वह इस साल रेपो दर (ब्याज दर जिस पर बैंक उससे अल्पकालिक उधार लेते हैं) को 8.5 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी कर देगा।
योजना आयोग के प्रधान सलाहकार प्रोनब सेन का कहना है कि रिजर्व बैंक अगर इस महीने या अगले महीने से भी ब्याज दरों में कमी का क्रम शुरू कर दे, तब भी निवेश का चक्र जुलाई-सितंबर की तिमाही के पहले नहीं उठेगा। उन्होंने कहा, “विकास की दर अगले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 7 फीसदी के आसपास हो सकती है। हमें चक्रों की हकीकत को स्वीकार करना पड़ेगा।”