केन्नामेटल इंडिया मूलतः विदेशी कंपनी है। औद्योगिक उत्पादन में इस्तेमाल होनेवाले एडवांस किस्म के टूल्स, टूल सिस्टम और इंजीनियरिंग कंपोनेंट बनाती है। मूल अमेरिकी कंपनी केन्नामेटल का गठन 1934 में हुआ था। साल 2002 में उसने मशीन टूल्स के धंधे में लगे बहुराष्ट्रीय समूह विडिया को खरीद लिया तो उसकी भारतीय इकाई उसकी हो गई और उसने केन्नामेटल इंडिया का नाम अपना लिया। इसके जरिए अमेरिकी कंपनी का इरादा भारत व चीन के उभरते बाजारों को पकड़ने व सस्ते श्रम का फायदा उठाने का है।
केन्नामेटल निःसंदेह रूप से बड़ी मजबूत व जमीजमाई कंपनी है। उसके ग्राहकों में जनरल मोटर्स, टाटा मोटर्स, टीवीएस, यामाहा, बीएचईएल, ग्रैबिएल व एसकेएफ बियरिंग्स जैसे तमाम बड़े नामों के साथ-साथ भारतीय रेल और आयुध कारखाने तक शामिल हैं। निवेश के लिहाज से अच्छी व बुरी बात यह है कि यह साल-डेढ़ साल में डीलिस्ट हो सकती है। अच्छी बात इसलिए कि इसके शेयर सस्ते दाम पर खरीद लें तो कंपनी निश्चित रूप से ज्यादा भाव देकर इन्हें वापस खरीदेगी। बुरी बात इसलिए कि इसे लांग टर्म के लिए नहीं खरीदा जा सकता।
कंपनी की 21.98 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 88.16 फीसदी है और पब्लिक के पास कुल 11.84 फीसदी ही शेयर हैं। भारत सरकार के निर्देश के अनुसार किसी भी लिस्टेड कंपनी को जून 2013 तक पब्लिक की हिस्सेदारी कम से कम 25 फीसदी कर लेनी होगी, अन्यथा उसे स्टॉक एक्सचेंजों से खुद को डीलिस्ट करा लेना होगा। केन्नामेटल इंडिया पब्लिक की हिस्सेदारी बढ़ाने के किसी मूड में नहीं है और वह खुद को डीलिस्ट कराना ही पसंद करेगी क्योंकि उसे धन जुटाने के लिए पूंजी बाजार में बने रहने की कोई जरूरत नहीं है।
आम निवेशक कंपनी की इस अवश्यसंभावी डीलिस्टिंग का फायदा उठा सकते हैं। लेकिन अभी नहीं क्योंकि उसका शेयर काफी महंगा चल रहा है। हालांकि कल, 1 फरवरी 2012 को इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 505890) में 5.85 फीसदी गिरकर 817.20 रुपए पर बंद हुआ है। इसके शेयर केवल बीएसई में लिस्टेड हैं, एनएसई में नहीं। इस तेज गिरावट की प्रत्यक्ष वजह यह रही कि कंपनी के दिसंबर तिमाही के नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं। परसों, मंगलवार को घोषित नतीजों के अनुसार दिसंबर 2011 की तिमाही में उसकी बिक्री साल भर पहले की समान अवधि की तुलना में 17.4 फीसदी बढ़कर 137.80 करोड़ रुपए हो गई। लेकिन शुद्ध लाभ 15.8 फीसदी घटकर 16.82 करोड़ रुपए पर आ गया। सितंबर 2011 की तिमाही की तुलना में तो उसका शुद्ध लाभ 34.86 फीसदी घटा है।
वैसे, चालू वित्त वर्ष की जून तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ 98.20 फीसदी और सितंबर तिमाही में 32.07 फीसदी बढ़ा था। इसलिए दिसंबर की तिमाही में लाभ का घटना बहुत मायने नहीं रखता। लेकिन बाजार तो अपनी प्रतिक्रिया दिखाता ही है। पिछले सात कारोबारी सत्रों में इसका शेयर करीब 13.4 फीसदी का धक्का सह चुका है। 23 जनवरी को यह 938.50 रुपए तक चला गया जो इसका पिछले 52 हफ्तों का सर्वोच्च स्तर है। लेकिन कल 1 फरवरी को नीचे में 813 तक चला गया। इसका 52 हफ्तों का न्यूनतम स्तर 464 रुपए का है जो इसने करीब साल भर पहले 25 फरवरी 2011 को हासिल किया था।
दिसंबर तिमाही के ताजा नतीजों को मिलाकर कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 41.7 रुपए है। इस तरह उसका शेयर फिलहाल 19.6 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। यह अभी तक सबसे ज्यादा 34.28 के पी/ई अनुपात पर मई 2010 में ट्रेड हुआ था। लेकिन तब भी इसका भाव 424.90 रुपए था। इसका सबसे कम पी/ई जून 2010 का रहा है, जब यह 326 रुपए पर आ गया था। ऐसे में हमारा कहना है कि बड़ी अच्छी बात है जो दिसंबर 2011 की तिमाही में कंपनी का लाभ घट गया। इसमें कुछ और बुरी खबरों की जरूरत है ताकि यह स्टॉक घटकर 450 रुपए के आसपास आ जाए। तब इसे साल भर के लिए खरीदा जा सकता है क्योंकि उसके बाद आप इसे रख भी नहीं पाएंगे। कंपनी को इन्हें बायबैक करना ही पड़ेगा।
फिलहाल कंपनी में पब्लिक की 11.84 फीसदी हिस्सेदारी में से एफआईआई के पास 0.73 फीसदी और डीआईआई के पास 1.14 फीसदी शेयर हैं। इस तरह सचमुच की पब्लिक के पास केवल 9.97 फीसदी शेयर बचते हैं। इसमें भी कॉरपोरेट निकायों के हिस्से के 0.83 फीसदी निकाल दें तो आम व्यक्तिगत निवेशकों के पास इसकी केवल 9.14 फीसदी इक्विटी है। उसके कुल शेयरधारकों की संख्या 4720 है। इसमें से 4454 (94.36 फीसदी) एक लाख रुपए से कम निवेश वाले छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी के 6.56 फीसदी शेयर हैं। प्रवर्तकों के अलावा एक फीसदी से ज्यादा शेयर (1.13 फीसदी) एकमात्र डीएसपी ब्लैकरॉक माइक्रो कैप फंड के पास हैं।
जाहिर है कि कंपनी का फ्लोटिंग स्टॉक बहुत कम है। इसलिए उसके शेयर पर ज़रा-सी बात का ज्यादा असर हो सकता है। इसमें तरलता की कोई समस्या नहीं है। फिर हो भी तो कंपनी वापस खरीदने के लिए बैठी ही है न! हां, कंपनी लाभांश बड़ा तगड़ा देती है। जैसे बीते साल के लिए उसने दस रुपए के शेयर पर 35 रुपए यानी 350 फीसदी का लाभांश दिया था। जून के आसपास वह लाभांश देती है। एक बात और, हमारे चक्री भाई इस शेयर को लंबे समय से खरीदने की सिफारिश करते रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने इसके बारे में 15 अप्रैल 2011 को लिखा था। तब यह शेयर 580-590 की रेंज में चल रहा था। साल भर में 40 फीसदी से ज्यादा का फायदा वो करा चुके हैं अपनी सिफारिश से।