खुला भेद टेक्निकल ब्रेकआउट का!

बाजार चंद ऑपरेटरों की मुठ्ठी में कैद है और विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) इन्हीं ऑपरेटरों की मिलीभगत से काम करते हें। इस बात को आधार बनाकर हमने जो कॉल्स पेश की हैं, उन पर एक नजर डालने से ही इसकी सत्यता साबित हो जाती है।

एक तरफ एफआईआई ब्रोकरेज हाउस सार्वजनिक तौर पर कहते रहे कि बाजार सेंसेक्स को 13,000 की दिशा में लिए जा रहा है। दूसरी तरफ उनके निशाने पर चढ़े तमाम स्टॉक्स कैश सेटलमेंट की आंच में 30 फीसदी बढ़ जाते हैं। ऐसा वेलस्पन कॉरपोरेशन, टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज, आईएफसीआई, बॉम्बे डाईंग, सेसा गोवा, हिंडाल्को, जेएसडब्ल्यू स्टील, जिंदल स्टील, जेएसडब्ल्यू इस्पात, जेट एयरवेज व पैंटालून रिटेल जैसे कई स्टॉक्स में साफ देखा गया है।

ध्यान दें कि ये सारे स्टॉक्स पिछले सेटलमेंट में 30 फीसदी से ज्यादा गिरे थे और अब मूलभूत पहलू या फंडामेंटल्स में बगैर किसी अंतर के इतना चढ़ते चले गए। ऐसा शुद्ध रूप से डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट के न होने के चलते हुआ है। अगर आपके पास धन और तंत्र का बल हो तो आप बड़ी आसानी ने कैश बाजार में भावों को चढ़ा सकते हैं क्योंकि न तो कोई डिलीवरी में बेच सकता है और न ही कोई डिलीवरी मांग सकता है।

एक अन्य मसला यह भी है कि डेरिवेटिव या एफ एंड ओ सेगमेंट में शामिल शेयरों पर ट्रेड टू ट्रेड के नियम लागू नहीं होते। इसलिए किसी स्टॉक का भाव 50 फीसदी तक ऊपर-नीचे किया जा सकता है। ऐसा बी ग्रुप में एकदम असंभव है क्योंकि वहां 10 फीसदी भी उतार-चढ़ाव आने पर स्टॉक को ट्रेड टू ट्रेड में डाल दिया जाता है। इस बीच ए ग्रुप का शेयर 50 फीसदी भी बढ़ जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। दोनों ग्रुप के लिए मानदंड अलग हैं। इसलिए सही मायनों में भारतीय बाजार डेरिवेटिव सेगमेंट के केवल 223 स्टॉक्स के लिए है और बाकी सब कबाड़खाना है। मैंने कल क्विंटेग्रा सोल्यूशंस का उदाहरण दिया था। ऐसे और भी तमाम उदाहरण हैं, जब स्टॉक को मात्र 10 फीसदी बढ़ने पर ट्रेड टू ट्रेड में डाल दिया जाता है।

बड़ा सवाल यह है कि इन हालात में ब्रोकरेज फर्में कैसे चल पाएंगी और रिटेल निवेशकों को कैसे बाजार में वापस लाया जा पाएगा? भारत में एएलबीएम (ऑटोमेटेड लेंडिंग एंड बॉरोइंग मेकैनिज्म) की विफलता की तरह यह सवाल भी, लगता है, हमेशा के लिए अनुत्तरित ही रह जाएगा। खैर, यह मेरा अपना मानना है। फिर भी मैं आपको ए ग्रुप में हो रही अतिशय सट्टेबाजी के बारे में सतर्क करना अपना फर्ज समझता हूं। निफ्टी के साथ-साथ स्टॉक्स में कभी भी गिरावट आ सकती है क्योंकि रोलओवर होने को है और इसमें अब केवल पांच दिन बचे हैं।

टाटा स्टील में आई तेजी एक अच्छी केस-स्टडी हो सकती है। मान लीजिए आपके पास फ्यूचर्स में टाटा स्टील के 50 लाख शेयर हैं। आप इन्हें कैसे रोल करेंगे? अगर आप पांच रुपए प्रीमियम भी देने को तैयार हो जाएं तब भी बाजार के छिछलेपन के चलते आप इन्हें रोल नहीं कर पाएंगे। इसलिए भाव को पहले 380 रुपए से उठाकर 440 रुपए तक ले जाओ। स्टॉक में तब टेक्निकल ब्रेकआउट की स्थिति बन जाती है और बहुत से ट्रेडर, एफआईआई, एचएनआई व डीआईआई इसे खरीदने के लिए लपक पड़ते हैं। जनवरी में तब तक बेचते रहो जब तक स्टॉप लॉस न लग जाए। फिर फरवरी में सही भाव पर उसे खरीद लो।

यह प्रक्रिया ऑपरेटरों को बदला देने के बजाय बैकवर्डेशन या ऊंधा शुल्क को पचा जाने का सहूलियत देती है। यह अपने-आप में बड़ा धंधा है और बाजार के उस्ताद लोग इसकी बदौलत मौज कर रहे हैं। लेकिन आपको इस खेल को समझकर बचना होगा। अन्यथा, आप भी टेक्निकल कॉल्स के झोंके में बह जाते हैं, बिना यह समझे कि टेक्निकल में यह ब्रेकआउट आने की असली वजह क्या है।

निफ्टी आज 11 बजे 4980 के ऊपर जाकर अंत में 4955.80 पर बंद हुआ। मेरा मानना है कि इधर निफ्टी गलत संकेत दे सकता है और शुक्रवार तक 5055 तक जा सकता है। रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) द्वारा आज की गई बायबैक की घोषणा इसे और हवा दे सकती है। लेकिन रोल्स के बाद यह धड़ाम हो जाएगा और गिरकर 4880 से 4850 तक जा सकता है। इसलिए सावधान रहें।

विज्ञान में इतनी कम प्रगति की वजह यह नहीं है कि हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी है, बल्कि यह है कि सत्ता तंत्र में इसे हासिल करने की इच्छा-शक्ति नदारद है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)

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