माइक्रो फाइनेंस सस्थाओं को अब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की ही एक श्रेणी बना दिया गया है। रिजर्व बैंक मे शुक्रवार को बाकायदा इस बाबत एक अधिसूचना जारी कर दी। अभी तक एनबीएफसी की छह श्रेणियां हैं – एसेट फाइनेंस कंपनी, इनवेस्टमेंट कंपनी, लोन कंपनी, इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी, कोर इनवेस्टमेंट कंपनी और इंफ्रास्ट्रक्चर डेट फंड – एनबीएफसी। अब इसमें एनबीएफसी – माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन नाम की सातवीं श्रेणी जोड़ दी गई है।
रिजर्व बैंक का कहना है कि वह यह कदम मालेगाम समिति के सिफारिश के आधार पर उठा रहा है। इस समिति का गठन नवंबर 2010 में किया था और इसने अपनी रिपोर्ट जनवरी 2011 में सौंप दी थी। समिति ने माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र के विशद अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की है। वैसे, इस दौरान आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा कड़ाई बरते जाने के बाद पूरा माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र उलट-पुलट चुका है। वहां का पूरा बिजनेस मॉडल ही गड़बड़ा गया है।
रिजर्व बैंक ने तय किया है कि माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं डिपॉजिट न ले सकनेवाली एनबीएफसी होंगी। इनका नेट-ओन्ड फंड कम से कम 5 करोड़ रुपए होना चाहिए। उसने कहा है कि जो एनबीएफसी माइक्रो फाइनेंस संस्था (एमएफआई) की शर्ते पूरी नहीं करतीं, वे अपनी कुल आस्तियों (ऋणों) का 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सा एमएफआई को उधार नहीं दे सकतीं। हर नई एमएफआई को कम से कम 15 फीसदी पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाकर रखना होगा।