वित्त वर्ष 2010-11 के पहले महीने में बैंकों के कर्ज और जमा दोनों की रफ्तार बेहद धीमी रही है। 27 मार्च से 9 अप्रैल तक तो बैंकों की कुल जमा में 43,500 करोड़ की बढ़त हो गई थी। वह भी तब जब सावधि जमा में 79,963 करोड़ रुपए की वृद्धि ने बचत व चालू खाते में जमाराशि में आई 36,643 रुपए की कमी को संभाल लिया था। लेकिन इसके बाद 10 अप्रैल से 23 अप्रैल तक के पखवाड़े में बैंकों की कुल जमा में 23,228 करोड़ रुपए की कमी दर्ज की गई है। 27 मार्च से 9 अप्रैल के पखवाड़े में बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज में महज 826 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई थी। लेकिन 10 अप्रैल से 23 अप्रैल के पखवाड़े में इसमें 26,483 करोड़ रुपए की कमी आई है। इसमें भी ज्यादा कमी उद्योग व उपभोक्ता को दिए जानेवाले गैर-खाद्य ऋण में आई है क्योंकि खाद्य ऋण में आई कमी केवल 169.53 करोड़ रुपए की है। यह ऋण बैंक भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को देते हैं।
यह तथ्य रिजर्व बैंक की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों से सामने आया है। 9 अप्रैल तक के पखवाड़े में बैंकों की कुल जमा 45,30,074 करोड़ रुपए और उनके द्वारा वितरित कर्ज 32,41,225 करोड़ रुपए का था। वहीं, 23 अप्रैल के पखवाड़े में बैंकों की कुल जमा 45,06,746 करोड़ रुपए और उनके द्वारा वितरित कर्ज 32,14,741 करोड़ रुपए के रहे हैं। 9 अप्रैल तक बैंकों ने एफसीआई को 48,148.78 करोड़ रुपए का कर्ज दे रखा था। यह ऋण 23 अप्रैल तक घटकर 47,979.25 करोड़ रुपए रह गया।
जानकारों के मुताबिक मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक द्वारा सीआआर 0.25 फीसदी बढ़ाकर 12,500 करोड़ रुपए की तरलता खींच लेने के बावजूद बैंकों के पास इस समय काफी नकदी है। इसका प्रमाण यह है कि वे रिजर्व बैंक के पास रिवर्स रेपो के तहत अब भी औसतन हर दिन 50,000 करोड़ रुपए जमा करा रहे हैं। जैसे, आज उन्होंने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) की इस खिड़की में 75,500 करोड़ रुपए जमा कराए हैं। सप्ताह के दिनों में एक दिन और सप्ताहांत पर तीन दिन के लिए जमा कराई गई इस रकम पर बैंकों को 3.75 फीसदी ब्याज मिलता है। इस हफ्ते बैंकों ने रिवर्स रेपो में सोमवार, 3 मई को 43,035 करोड़ रुपए और मंगलवार, 4 मई को 47,770 करोड़ रुपए जमा कराए थे।
दूसरे, पिछले कई महीनों से रिजर्व बैंक से मिल रही हिदायत के बावजूद बैंक म्यूचुअल फंडों में अपना निवेश बढ़ाते जा रहे हैं। 26 मार्च से 9 अप्रैल के बीच म्यूचुअल फंडों में उन्होंने अपना निवेश लगभग दो गुना कर लिया है। 26 मार्च को निवेश की यह रकम 55,502 करोड़ रुपए थी, जबकि 9 अप्रैल तक यह 50,016 करोड़ रुपए बढ़कर 1,05,518 करोड़ रुपए हो गई। बैंकों को म्यूचुअल फंडों की लिक्विड स्कीमों में निवेश पर करीब 5 फीसदी ब्याज मिलता है। सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक के प्रमुख अधिकारी ने अपना नाम न जाहिर करते हुए कहा कि तरलता की इसी अधिकता के चलते ही एसबीआई ने सस्ते होम लोन की स्कीम दो महीने बढ़ाई है। उनका कहना है कि अगले कुछ महीनों तक बैंक ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करना उनके लिए फायदे के बजाय घाटे का सौदा होगा।
कुछ बैंकरों का कहना है कि अपैल से सितंबर तक उद्योगों का सुस्त सीजन होता है। इस दौरान उनकी तरफ से ऋण की मांग कम आती है। दूसरे कंपनियां पूंजी बाजार जैसे अन्य स्रोतों से धन जुटाने में कामयाब हो जा रही है। इसलिए उनकी तरफ से कर्ज की मांग ठंडी पड़ी हुई है। दूसरे, आम उपभोक्ता की तरफ से भी ज्यादा कर्ज की मांग नहीं आ रही है। साल की शुरुआत होने के कारण वे अभी अपनी बचत से ज्यादा खर्च कर रहे हैं। बैंकों के कर्ज की रफ्तार धीमी पड़ने और जमा घटने की ये खास वजहें हैं।