केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी मंगलवार को संसद के शीत सत्र के पहले दिन खुद की पहल पर लोकसभा को मुद्रास्फीति का गणित समझाते नजर आए। उन्होंने सांसदों को समझाया कि मुद्रास्फीति मांग और आपूर्ति में असंतुलन के कारण पैदा होती है। तेजी से होने वाली आर्थिक वृद्धि और ढांचागत परिवर्तन के दौर में, जिससे इस समय भारत गुजर रहा है, मुद्रास्फीति का बढ़ना स्वाभाविक है।
उन्होंने कहा कि हमने सभी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में इसे होते हुए देखा है। ऐसा चीन, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से लेकर अर्जेंटीना व ब्राजील में हो चुका है। श्री मुखर्जी ने कहा कि जब मांग व आपूर्ति के बीच असंतुलन हो, तब दो काम करने चाहिए। एक तो आपूर्ति बढ़ा दी जाए और दो, मांग को मध्यम स्तर तक रखा जाना चाहिए।
लेकिन यह हमेशा संभव नहीं होता कि थोड़े समय में आपूर्ति को वांछित स्तर तक बढ़ाया जा सके। उसके लिए हमें या तो आयात का सहारा लेना पड़ता है या निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ता है और ऐसे उपाय करने पड़ते हैं, जिनसे आपूर्ति बढ़ सके। जहां तक मांग का संबंध है तो सिद्धांत रूप में इसे संकुचित करना और वित्तीय नीतिगत नियंत्रण के जरिए सीमित करना संभव है। लेकिन इसमें खतरा यह रहता है कि यदि यह तेजी से किया जाए तो विकास में गिरावट आ जाती है और परिणामस्वरूप बेरोजगारी बढ़ती है।
खैर, ऐसे बहुत सारे ज्ञान के बाद वित्त मंत्री ने सदन को पिछले दो वर्षों, खासकर अगस्त 2011 से मुद्रास्फीति में खास कमी न आने के कारणों पर विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि नीति का एक ढांचा तैयार किया गया है, जिससे उन्हें आशा है कि अगले 6 से 12 महीनों में मुद्रास्फीति की दर में ठोस कमी आएगी। अंत में उन्होंने सदन को भरोसा दिलाया कि मार्च 2012 के अंत तक मुद्रास्फीति 6 से 7 फीसदी तक रह जाएगी।