विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) स्थानीय ब्रोकरों के साथ मिलाकर भारतीय शेयर बाजार को नचाने के लिए कंपनियों के जीडीआर इश्यू तक का इस्तेमाल करते हैं। यह ऐतिहासिक खुलासा पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने पूरे साक्ष्यों के साथ किया है। इस सिलसिले में बुधवार को सुनाए गए आदेश में सेबी ने पांच एफआईआई व उनके सब-एकाउंट और पांच ब्रोकरेज फर्मों पर रोक लगा दी है। साथ ही कहा है कि इस खेल में बिचौलिये की भूमिका निभानेवाली फर्म पैन एशिया एडवाइजर्स और उससे संबद्ध अरुण पंचारिया से बाजार का कोई भी कारोबारी वास्ता नहीं रख सकता।
यह सारा खेल जिन सात कंपनियों के जीडीआर (ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट्स) के जरिए हुआ है, वे हैं – असाही इंफ्रास्ट्रक्चर एंड प्रोजेक्ट्स, आईकेएफ टेक्नोलॉजीज, एवन कॉरपोरेशन, के सेरा सेरा, कैट टेक्नोलॉजीज, मार्स सॉफ्टवेयर और कैल्स रिफाइनरीज। सेबी ने आदेश दिया है कि ये कंपनियां अगले आदेश तक न तो कोई इक्विटी शेयर और न ही शेयरों में बदला जानेवाला कोई प्रपत्र जारी कर सकती हैं। ये अपनी पूंजी संरचना में भी कोई तब्दीली नहीं कर सकतीं। इन सात में छह कंपनियों ने साल 2009 में जीडीआर जारी किए थे।
जिन एफआईआई या उनके सब-एकाउंट को धांधली का दोषी पाया गया है, वे हैं – इंडिया फोकस कार्डिनल फंड, मावी इनवेस्टमेंट, केआईआई लिमिटेड. सोफिया ग्रोथ (सोमरसेट इंडिया फंड से संबद्ध) व यूरोपियन अमेरिकन इनवेस्टमेंट बैंक। धांधली में इनका साथ देनेवाली पांच ब्रोकरेज फर्में हैं – बासमती सिक्यूरिटीज, अवध फाइनेंस एंड इनवेस्टमेंट, एसवी एंटरप्राइसेज, अलका इंडिया और जेएमपी सिक्यूरिटीज।
सेबी के पूर्णकालिक निदेशक प्रशांत सरन ने गहन जांच-पड़ताल के बाद इनके खिलाफ 44 पन्नों का विस्तृत आदेश सुनाया है। उन्होंने इस आदेश की एक प्रति आवश्यक कार्रवाई के लिए वित्त मंत्रालय से संबद्ध प्रवर्तन निदेशालय के पास भी भेज दी है। आदेश में एक-एक कंपनी के जीडीआर में हुई धांधली का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है।
होता यह था कि कंपनियां पहले विदेशी बाजार में भारी-भरकम जीडीआर इश्यू करती थीं। उन्हें वहीं शेयरों में बदल दिया जाता है जिन्हें एफआईआई अपनी जान-पहचान के भारतीय ग्राहकों को बेच देते थे। इस खेल में इन शेयरों में अचानक जबरदस्त वोल्यूम खड़ा कर दिया जाता था।
कंपनियां अपनी औकात से ज्यादा शेयर जारी करती थीं। जैसे, असाही इंफ्रास्ट्रक्टर ने जीडीआर के तहत 29.91 करोड़ शेयर जारी किए, जबकि जीडीआर के पहले उसके कुल शेयरों की संख्या 3.72 करोड़ ही थी। जीडीआर का आकार कंपनी की इक्विटी का लगभग आठ गुना था। कैल्स रिफाइनरीज का जीडीआर इश्यू दिसंबर 2007 में आया था और उसने अपने तात्कालिक इक्विटी आधार से 13,133 फीसदी बड़ा जीडीआर इश्यू जारी किया था।
इस सारे खेल में बिचौलिये की भूमिका अरुण पंचारिया ने निभाई। वह अपनी फर्मों के जरिए इंडिया फोकस जैसे एफआईआई सब-एकाउंट से शेयर खरीदता था और बाद में रिटेल निवेशकों को बेच देता था। इस क्रम में धन भारत से निकलकर विदेश पहुंच जाता था। जिन कंपनियों के जीडीआर में सारा खेल हुआ, उनकी वित्तीय स्थिति निवेश का कोई वाजिब आधार नहीं पेश करती थी। इसलिए सेबी का कहना है कि धांधली करना ही पूरे निवेश का मकसद था।
सेबी का कहना है कि संबंधित सातों कंपनियों में धन लगाकर रिटेल निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है। वे इन शेयरों को चाहें भी तो बेच नहीं सकते क्योंकि इनमें तरलता नहीं है। दूसरे, उन्हें पता ही नहीं कि इनके जीडीआर कब निरस्त कर शेयरों में बदल दिए गए। यह भी हुआ कि बाजार भाव से कम मूल्य पर विदेशी निवेशकों को जीडीआर जारी किए गए। ऐसे शेयरों में वोल्यूम का पहाड़ एफआईआई या उनके सब-एकाउंट खड़ा करते हैं। उनके जाते ही सन्नाटा छा जाता है और आम निवेशक फंस जाते हैं।
यह भी होता है कि एफआईआई की ज्यादा होल्डिंग देखकर आम भारतीय निवेशक ऐसी कंपनियों में धन लगा देता है। एफआईआई निवेश से कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य के बारे में भी भ्रम फैल जाता है कि उसका कायाकल्प होनेवाला है। सेबी के मुताबिक एफआईआई ने इसी मानसिकता का फायदा उठाकर जीडीआर के जरिए भारतीय शेयर बाजार में धांधली की है। उनके इस खेल को रोका जाना जरूरी हो गया है।