अगर भारत इसी तरह बढ़ता रहा और आर्थिक ताकत हासिल करता रहा तो हम दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए स्थिरता का स्रोत बन सकते हैं और बेचैन भटक रही वैश्विक पूंजी का सुरक्षित ठिकाना बन सकते हैं। यह आशा जताई है वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने। उन्होंने सोमवार को राजधानी दिल्ली में भारतीय आर्थिक सेवा के स्वर्ण जयंती समारोह में यह बात कही।
वित्त मंत्री ने कहा कि आज जैसी वैश्विक जिम्मेदारी है, भारत के ऊपर पिछले पन्द्रह साल में कभी नहीं थी। उन्होंने कहा कि वैश्विक नीति निर्माताओं के बीच अब हमारी हैसियत बढ़ गई है। इससे हमारे कंधों पर नई और विशाल जिम्मेदारियां आ गयी हैं। उनका कहना था कि मुश्किल समय में भारत के मजबूत प्रदर्शन से पता चलता है कि हम वास्तव में किसी भी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट से मजबूती से निपटने में सक्षम हैं।
उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विकास की प्रक्रिया को जानने-समझने और उसके अनुरूप राष्ट्रीय हितों के अनुसार काम करने की तत्काल जरूरत है, वहीं दूसरी ओर आर्थिक गतिविधियों व अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक नीतिगत पारदर्शिता लाई जाए।
भारतीय आर्थिक सेवा के स्वर्ण जयंती समारोह में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. डी सुब्बाराव, कैबिनेट सचिव अजीत कुमार सेठ, वित्त सचिव आर एस गुजराल, आर्थिक मामलात विभाग के सचिव आर. गोपालन और मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. कौशिक बसु समेत वित्त मंत्रालय व भारतीय आर्थिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों ने शिरकत की।
श्री मुखर्जी ने कहा कि बाजार शक्तियों को अधिक से अधिक भूमिका सौंपे जाने के बाद बाजार के विकास, नियमन और प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार लाने की आवश्यकता है। सरकार केवल अपने दम पर इस विशाल अर्थव्यवस्था के हर पहलू को सुधार नहीं कर सकती है। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार की भूमिका ऐसी स्थितियां बनाने की है जहां लोग सशक्त हों और खुद अपनी समस्याएं सुलझा सकें।
वित्त मंत्री ने कहा कि सामाजिक क्षेत्र में विकास, राज्यों को संसाधनों का बड़े पैमाने पर हस्तांतरण और देश में एक समान माल व सेवा कर (जीएसटी) के प्रस्तावित कार्यान्वयन के साथ अर्थव्यवस्था के संपूर्ण एकीकरण का महत्वपूर्ण कदम उठाया जा रहा है। इसके लिए केंद्र और राज्यों के बीच विभिन्न स्तरों पर आर्थिक नीतियों के तालमेल की तत्काल जरूरत है। साथ ही केन्द्र व राज्य सरकारों की सेवाओं में जवाबदेही बढ़ाने की आवश्यकता है।