करीब दस महीने हमने इसी कॉलम में आईसीआईसीआई सिक्यूटिरीज की रिसर्च रिपोर्ट के हवाले 11 अगस्त को लिखा था कि जीवीके पावर एंड इंफ्रस्ट्रक्चर के शेयर में 20 फीसदी बढ़त की पूरी गुंजाइश है। शेयर तब 43.80 रुपए पर था। ब्रोकरेज फर्म का आकलन था कि यह साल भर में आराम से 53-54 रुपए पर चला जाएगा। हालांकि वो महीने भर में 13 सितंबर 2010 को 51.45 रुपए के शिखर तक चला गया। लेकिन उसके बाद ऐसा गिरा कि 26 मई 2011 को 20.65 रुपए की तलहटी पकड़ने के बाद अभी 22.30 रुपए पर चल रहा है। भले ही महीने भर में यह 17.5 फीसदी बढ़ गया हो, लेकिन साल भर से भी कम वक्त में इसने निवेशकों की लगभग आधी पूंजी स्वाहा कर दी तो मेरे जैसे दूरगामी निवेश की सोच रखनेवालों का दिल तो डूबना स्वाभाविक है।
ऐसा क्यों और कैसे हुआ, इसकी तह में पैठने के पहले कुछ सबक। कभी भी ब्रोकरेज हाउसों की रिसर्च रिपोर्टों को देखते ही सच नहीं मान लेना चाहिए। उनकी बातों की खुद जांच-परख कर लेने के बाद ही निवेश का जोखिम उठाना चाहिए। दूसरी बात, धंधे में ऊंच-नीच लगा रहता है। बड़ी से बड़ी संभावनामय कंपनी को भी आकस्मिक चपत लग सकती है। प्रबंधन ने जिस तरह से सोचा था, वैसा हो सकता कि न हो। इसलिए जब हम किसी कंपनी में निवेश करते हैं तो फायदे में ही नहीं, उसके जोखिम व घाटे के बोझ में भी हिस्सेदारी करते हैं। यहां ऐसा नहीं होता कि मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू। तीसरी बात, लंबे समय के लिए निवेश किया है तो बीच में शेयर का हाल देखकर घबराना नहीं चाहिए।
असल में जीवीके पावर का शेयर (बीएसई – 532708, एनएसई – GVKPIL) इसलिए गिरा कि उनके बढ़ने के जो भी आधार रिसर्च रिपोर्ट में गिनाए गए थे, वे हवा-हवाई निकले। आकलन था कि कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) वित्त वर्ष 2010-11 में 90 पैसे रहेगा। लेकिन असल में यह आधे से भी कम 43 पैसे रहा है। ऐसा भी तब संभव हुआ जब कंपनी का शुद्ध लाभ साल भर पहले के 21.68 करोड़ रुपए से 214.99 फीसदी बढ़कर 68.29 करोड़ रुपए हो गया है, वो भी 81.58 करोड़ रुपए की अन्य आय के दम पर। यह दिखाता है कि आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ज्यादा ही हांक दी थी। खैर, ये ब्रोकर हैं, दल्ले हैं, हांकना इनका काम है।
जीवीके पावर एंड इफ्रास्ट्रक्चर दो क्षेत्रों में सक्रिय है। एक बिजली में, दूसरा हवाई अड्डों के निर्माण व रखरखाव में। मुंबई व बैंगलोर के हवाई अड्डों का संचालन इसी की सब्सिडियरी कर रही है। निवेशकों को लगता है कि मुंबई में दूसरा हवाई अड्डा आ जाने से कंपनी की आय प्रभावित हो सकती है। फिर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुना दिया है कि कंपनी यात्रियों से एयरपोर्ट डेवलपमेंट फीस (एडीएफ) नहीं ले सकती है। उधर बिजली क्षेत्र में हुआ यह कि प्राकृतिक गैस की सप्लाई न मिलने से इसकी तीन बिजली इकाइयां 65 से 71 फीसदी क्षमता पर ही काम कर सकीं। नहीं पता कि सरकार केजी बेसिन में रिलायंस के डी-6 ब्लॉक से बिजली परियोजनाओं को ज्यादा गैस दिलवा पाएगी या नहीं। इसलिए गैस-आधारित बिजली परियोजनाओं के विस्तार को लेकर कंपनी की योजना पर अमल मुश्किल लगता है।
इस दौरान बिजली बेचने को लेकर आंध्र प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड के साथ कंपनी का विवाद हो गया। कंपनी कुछ पनबिजली परियोजनाओं पर भी काम कर रही है। लेकिन वे फिलहाल दूर की कौड़ी हैं। कंपनी फिलहाल बिजली संयंत्रों को कोयले से चलाने के आजमाए स्रोत को पकड़ने में लग गई है। दो महीने पहले अप्रैल में खबर आई थी कि जीवीके पावर ऑस्ट्रेलिया में हैंकॉक की कोयला खदानें खरीदने के लिए बातचीत चला रही है। अब फिर वही खबर ज्यादा पुख्ता अंदाज में सामने आई है कि कंपनी हैंकाक की दो कोयला खदानें 240 करोड़ डॉलर (10,730 करोड़ रुपए) में खरीदने जा रही है।
असल में जीवीके पावर की योजना दो साल के भीतर 2013 तक अपनी बिजली उत्पादन क्षमता 901 मेगावॉट से बढ़ाकर 10,000 मेगावॉट करने की है। इसके लिए ईंधन की सप्लाई सुनिश्चित करने के वास्ते वह ऑस्ट्रेलिया की कोयला खदानें खरीद रही है। हालांकि कंपनी ने इस डील की पुष्टि नहीं की है। लेकिन माना जा रहा है कि इस आशय के शुरुआती करार पर करीब दस दिन पहले जीवीके की तरफ से उसके वाइस चेयरमैन संजय रेड्डी और हैंकाक की तरफ से उसके चेयरमैन गिना राइनहार्ट ने दस्तखत कर दिए हैं।
सवाल उठता है कि 1914.66 करोड़ की समेकित आय और 157.92 करोड़ रुपए की पूंजी वाली कंपनी 10,730 करोड़ रुपए की रकम जुटाएगी कैसे? कंपनी के पास इस समय 3228.86 करोड़ रुपए के रिजर्व हैं। सीधी-सी बात है कि कंपनी पर आगे कर्ज का बोझ बढ़ना ही है। कंपनी ने 2010-11 में 254.47 करोड़ रुपए ब्याज के रूप में अदा किए हैं। इस साल हो सकता है कि यह बोझ दोगुना हो जाए। लेकिन दूसरा पक्ष यह है कि इस कर्ज से उसका धंधा भी तो बढ़ेगा! फिर मुंबई हवाई अड्डे की जमीन कंपनी के लिए सोना उगलनेवाली है। कंपनी अपनी इस रीयल एस्टेट संपदा को भुनाने की कोशिश में है।
जितना पलड़ा इधर झुका है, उतना ही उधर भी झुका है। कंपनी जमकर जोखिम उठा रही है। सफर के बीच में है। यात्रा अभी पूरी नहीं हुई है। लेकिन कंपनी के वाइस चेयरमैन संजय रेड्डी से संयोग से एक बार मैं व्यक्तिगत रूप से मिला हूं। मुझे लगता है कि उनमें उद्यमशीलता व नेतृत्व की जबरदस्त क्षमता है। नहीं तो मुंबई एयरपोर्ट का सौदा रिश्वतखोरी के दौर में पकड़ पाना कोई हंसी खेल नहीं है। यकीकन कंपनी के साथ जाने में जोखिम है। लेकिन वो कहते हैं न कि गिरते हैं घुड़सवार ही मैदाने जंग में, वो तुख्म क्या गिरे जो घुटनों के बल चले हों। बाकी पैसा आपका, बचत आपका तो मर्जी भी आपकी ही चलेगी।