जो हमें रोज-ब-रोज की जिंदगी में दिखता है, उसकी पुष्टि सरकारी आंकड़ों ने कर दी है। देश में कामकाज करने योग्य आधी से अधिक 51 फीसदी आबादी स्वरोजगार में लगी है। केवल 15.6 फीसदी लोग ही नियमित नौकरी करते हैं। श्रमयोग्य आबादी का 33.5 फीसदी अस्थायी मजदूरी करता है। यह हकीकत सामने आई है राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के 66वें सर्वे में। यह सर्वे जुलाई 2009 से जून 2010 के दौरान किया गया था।
सर्वे के मुताबिक श्रम बाजार में एक तरह के काम पर महिला कर्मचारियों को पुरूषों के मुकाबले कम वेतन मिलता है। देश के कुल श्रम बल का 51 फीसदी स्वरोजगार में लगा है। ग्रामीण क्षेत्रों के 54.2 फीसदी कामकाजी लोग स्वरोजगार में लगे हैं, जबकि नगरों में 41.4 फीसदी कामगार स्वरोजगार में लगे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 7.3 फीसदी कामगार ही नियमित वेतन पाते है, वहीं नगरों में यह अनुपात 41.4 फीसदी है। श्रम बाजार में महिलाओं की स्थिति के बारे में रिपोर्ट में यह निष्कर्ष भी है कि उन्हें शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में कम दर पर पारिश्रमिक मिलता है।
नगरीय क्षेत्रों में पुरुषों का औसत दैनिक वेतन 365 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों में यह 232 रुपए प्रति दिन है। सर्वे में कहा गया है कि गांवों में पुरूष कामगारों की रोजाना की औसत आय 249 रुपए और महलाओं की 156 रुपए ही है। इस प्रकार गावों में महिला और पुरूष की आय का अनुपात 63:100 का है।