बीते हफ्ते बाजार, बीएसई सेंसेक्स 1000 से ज्यादा अंक टूट गया। हालांकि हमारा मानना है कि ऐसा होना लाजिमी नहीं था। यह कुछ फंडों द्वारा घबराहट में निकलने के लिए की गई बिकवाली का नतीजा था। वैसे भी इन फंडों मे हफ्ते भर पहले ही घोषत कर दिया था कि उन्हें अपनी कुछ स्कीमों को समेटना है। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने वही किया, जिसकी उम्मीद थी। लेकिन उसके इस संकेत ने अमेरिकी बाजारों पर चोट की कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था सुधर नहीं रही है। फिर इसने दुनिया भर के बाजारों को लपेट लिया।
जहां तक भारत का ताल्लुक है, वहां पांच कारकों ने एक साथ काम लगा दिया और हमारा खोखला और छिछला बाजार उसे झेल नहीं पाया। ये पांच कारक हैं…
- अमेरिकी बाजार की तेज गिरावट जो दुनिया भर के बाजार सूचकांकों में तीखी गिरावट का सबब बन गई।
- राजनीतिक अस्थायित्व क्योंकि गृह मंत्री पी चिदंबरम को 2जी स्पेक्ट्रम विवाद में खींच लिया गया।
- रुपए में भारी अवमूल्यन जिससे हेज फंडों के सामने स्टॉप लॉस की नौबत आ गई।
- कुछ क्लोज एंडेड फंडों के सामने मीयाद खत्म होने से निकलने की बाध्यता, और…
- रोलओवर की तकलीफ। 29 सितंबर डेरिविटिव सौदों के सेटलमेंट का दिन है।
ये आंधी आने से पहले ही बाजार की फिजां में पी-नोट का संकट, घोटाले की हवा, अफवाहें, राजनीतिक अनिश्चितता, ब्याज बढ़ने की चिंता और बेकाबू मुद्रास्फीति का डर बिखरा हुआ था। वैसे भी, जब एक्पायरी करीब हो, रोलओवर का दौर जारी हो तो सामान्य बातें भी कोढ़ में खाज बन जाती हैं। कारण, उस्ताद लोग इन बातों का इस्तेमाल अफरातफरी फैलाने में करते हैं ताकि वे अपफ्रंट मार्जिन गटक सकें और ट्रेडरों व निवेशकों के सामने स्टॉप लॉस से बचने का कोई चारा न रहे।
हमारे बाजार का हाल अच्छा नहीं है क्योंकि किसी भी स्वस्थ बाजार में इस तरह के खेल की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती। लेकिन क्या किया जाए? यहां हर कोई जानता भी है और समझता भी है कि बाजार के स्तर को उठाने और विस्तार के लिए क्या किया जाना चाहिए। लेकिन इच्छाशक्ति नदारद है और इसके पीछे कुछ ‘मजबूरियां’ हो सकती हैं।
भारत के पारंपरिक निवेशकों ने तो 1992 से ही शेयर बाजार से बड़े पैमाने पर कन्नी काट रखी है। नए डेरिवेटिव सिस्टम में फिजिकल सेटलमेंट को खत्म कर दिया गया तो उन्होंने अपना धन सोने, रीयल एस्टेट और फिक्स्ड डिपॉजिट में लगा दिया। हमारे यहां 129 सालों तक बदला सिस्टम ठीकठाक चला और ट्रेडरों, निवेशकों व ब्रोकरों ने यहां से कमाई की। लेकिन उसकी जगह आए नए सिस्टम में तेजी और मंदी की सीमित पट्टियां बनी हुई हैं और सारा धंधा चंद हाथों तक सिमटा है। यहां रिटेल निवेशक हर स्तर पर लुटा है और आज पूरी तरह दीवालिया हो चुका है। जरूरी बैक-अप के बिना ग्लोबीकरण करने का हश्र यही होता है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि भारतीय बाजार एक दिन में 700 अंक से ज्यादा, 4 फीसदी के ऊपर गिर गया। पिछले दो सालों में ऐसा पहली बार हुआ। लेकिन हमारे बाजार नियामकों को इसे गंभीरता से लेना होगा।
हफ्ते भर पहले ही डॉलर के सापेक्ष रुपए के 1/44 से गिरकर 1/49 पर पहुंच जाने के चलते पेट्रोल के दाम 3.14 रुपए प्रति लीटर बढ़ाए गए हैं। जब रुपया 1/43 के आसपास चल रहा था, तब कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में 90 डॉलर प्रति बैरल था। लेकिन अब रुपया 14 फीसदी कमजोर हो चुका है तो हम कच्चे तेल के 78 डॉलर प्रति बैरल हो जाने के बावजूद रुपए में उतनी ही कीमत अदा कर रहे हैं। इस तरह सच कहें तो पेट्रोल के दाम 3.14 रुपए बढ़ाने का कोई तुक ही नहीं था। आज अगर तेल कंपनियां 82 डॉलर प्रति बैरल का दाम पकड़ कर चलें, तब भी उन्हें पेट्रोल के दाम 2 रुपए प्रति लीटर घटा देने चाहिए।
लेकिन ऐसा अभी नहीं हो सकता। ऐसा तभी हो सकता है जब आर्थिक विकास और शेयर बाजार को बढ़ाने की संजीदा कोशिशें की जाएंगी। तब सारी चीजें एक साथ ठीक हो जाएंगी। मुद्रास्फीति नीचे आ जाएगी, ब्याज दरों का बढ़ना थम जाएगा, कच्चा तेल नीचे आएगा। सारा चक्र हमारे पक्ष में होगा और बाजार बढ़ने लगेगा। यह साफ इशारा इस बात का है कि हमें एक निश्चित समय में अपना निवेश जमा लेना चाहिए और हालात के अपने पक्ष में आने का इंतजार करना चाहिए। सेंसेक्स में ऊपरी लक्ष्य 22,000 से 28,000 का है। यह भरोसा रखकर घबराना बंद कर देना चाहिए। कम से कम यह वक्त क्लोज एंडेड स्कीमों की तरह मजबूरी में बेचने का तो नहीं ही है।
हमने सोना, चांदी और कच्चा तेल, तीनों में ही बेचने की सलाह दी थी और ये सभी इक्विटी बाजार की तरह नीचे गिरे हैं। हमने चांदी को 68,000 रुपए प्रति किलो का स्टॉप लॉस लगाकर 66,000 रुपए तक हर बढ़त पर बेचने को कहा था। अब चांदी 57,000 रुपए पर पहुंच गई है। सोना भारत में रुपए के अवमूल्यन के चलते ऊंचा बना हुआ है। फिर भी यह गिरकर 25,500 रुपए प्रति दस ग्राम पर आने ही वाला है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह घटकर 1540 डॉलर प्रति औंस पर जाएगा। कच्चे तेल को 70 डॉलर प्रति बैरल तक गिरना है जो इक्विटी बाजार में अगली तेजी की आधारशिला रखेगा।
अंत में हमारा बस इतना कहना है कि शेयर बाजार में अब भी 500 से 700 अंकों की गिरावट के पूरे आसार है। फिर भी आपको हर गिरावट पर खरीद की रणनीति अपनानी चाहिए। इसकी सीधी वजह यह है कि आप जब भी बेचेंगे, लोअर बैंड में फंसते चले जाएंगे। तय मानिए कि सरकार अब हर दिन बाजार को उठाने का सरंजाम करेगी। ऐसे में शॉर्ट कवरिंग का दौर चलेगा और घाटा सहने की आपकी कुव्वत ही खत्म हो जाएगी। दूसरा विकल्प यह है कि आप गुरुवार, 29 सितंबर तक कोई ट्रेडिंग ही न करें क्योंकि चीजें तब तक पटरी पर आएंगी।