इस साल अप्रैल से शुरू हो रही 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बढ़ाकर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 2.5 फीसदी कर दिया जाएगा। यह फैसला बुधवार को प्रधानमंत्री कार्यालय में हुई विशेष बैठक में लिया गया। इस समय स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च जीडीपी का 1.4 फीसदी है। बैठक का खास एजेंडा था – स्वास्थ्य व समग्र अर्थव्यवस्था पर बने आयोग (एनसीएमएच) और योजना आयोग द्वारा स्वास्थ्य पर गठिच उच्चस्तरीय विशेषज्ञ दल की सिफारिशों पर गौर करना।
प्रधानमंत्री ने अपनी तरफ से कह रखा है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए धन की कमी नहीं होने दी जाएगी। केन्द्र और राज्यों में पर्याप्त क्षमता उत्पन्न करने की जरूरत है ताकि बढ़े हुए खर्च को सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सके। बैठक में योजना आयोग से अनुरोध किया गया कि वह स्वास्थ्य पर जीडीपी के 2.5 फीसदी खर्च के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित करे। चूंकि स्वास्थ्य मुख्यतया राज्यों का विषय है। इसलिए इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राज्यों का स्वास्थ्य खर्च महत्वपूर्ण है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने सबके लिए स्वास्थ्य देखभाल को अपना लक्ष्य घोषित कर रखा है। मंत्रालय ने राष्ट्रीय़ ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के अंतर्गत जन-स्वास्थ्य सूचनाओं के जरिए सभी को मुफ्त दवा नाम की नई पहल का प्रस्ताव रखा है। मंत्रिमंडल ने भारी मात्राओं में खरीद के लिए केन्द्रीय खरीद एजेंसी (सीपीए) की स्थापना को मंजूरी दी है। बैठक में कहा गया कि मंत्रालय पहले सीपीए की स्थापना कर सकता है और मानक इलाज प्रोटोकाल तैयार कर सकता है।
बैठक में यह भी सुझाव दिया गया कि स्वास्थ्य मंत्रालय सभी एनआरएचएम योजनाओं का विलय करके एक स्पष्ट रोड मैप तैयार कर सकता है, ताकि उन्हें एक ही व्यवस्था के तहत लाया जा सके। विलय की प्रक्रिया अगले वित्त वर्ष में शुरू की जा सकती है और इसे 2013-14 तक पूरा किया जा सकता है। राष्ट्रीय बीमारी नियंत्रण केन्द्र की स्थापना पर काम दो साल में पूरा किया जा सकता है। जिलों और राज्यों में जन-स्वास्थ्य प्रयोगशालाएं स्थापित करके एकीकृत बीमारी निगरानी परियोजना को मजबूत बनाया जा सकता है।