केंद्र सरकार ने स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती मनाने के लिए कुल 155.78 करोड़ रुपए का अनुदान देने का फैसला किया है। यह जयंती वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति की देखरेख में मनाई जा रही है। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था और उनका जन्म कोलकाता के एक संभ्रांत कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके जन्म के 150 साल अगले वर्ष 12 जनवरी को पूरे हो जाएंगे।
उनकी जयंती के सिलसिले में सबसे ज्यादा 100 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता रामकृष्ण मिशन, बेलूर मठ को विवेकानंद आदर्श शिक्षा कार्यक्रम के लिए दी जा रही है। इसके साथ-साथ मंत्रालय ने विभिन्न संगठनों के प्रस्तावों को वित्तीय सहायता के लिए चुना है।
जयंती के तहत कोलकाता के रामकृष्ण मिशन सेवा प्रतिष्ठान को 20.21 करोड़, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को धार्मिक स्मारकों की मरम्मत के लिए 12.42 करोड़, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो को 7.35 करोड़ रुपए, गोलपार्क के रामकृष्ण मिशन संस्कृति संस्थान को 6.71 करोड़ और कालाहांडी के श्री रामकृष्ण आश्रम को 3.01 करोड़ रुपए की सहायता दी जा रही है। बाकी रकम फुटकर संस्थाओं को दी गई है जिसमें असम सरकार को दिए जा रहे 59.19 लाख रुपए शामिल हैं।
वैसे, स्वामी विवेकानंद की जयंती का बस अनुष्ठान भर मनाया जा रहा है। उनके युगधर्मी विचारों को किसी कोने में निर्वासित कर दिया गया है। उन्हें स्वामी बनाकर मिथकों का हिस्सा बना दिया गया, जबकि खुद उनका कहना था, “हमारे भयंकर उलझे मिथकों से ठोस नैतिक मूल्य आकार लेने चाहिए। विस्मय से भरे योगवाद से सर्वाधिक वैज्ञानिक व व्यावहारिक मनोविज्ञान निकलना चाहिए।” मुश्किल यह है कि विवेकानंद के देहांत (4 जुलाई 1902) के 109 साल बाद भी भारतीय जनमानस मिथकों की दुनिया से निकलकर वैज्ञानिक दर्शन तक नहीं पहुंच पाया है। ‘जय हनुमान ज्ञान गुणसागर’ कहते-कहते बचपन से बुढ़ापा आ जाता है।