हर महीने डीमैट खातों से सौ गुना ज्यादा नए मोबाइल

देश में नए से नए वित्तीय उत्पाद लाए जा रहे हैं। रिजर्व बैंक अब उस सीडीएस (क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप) को लाने की तैयारी कर चुका है जिसके चक्कर में साल 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट उभरा था। लेकिन देश का सारा वित्तीय बाजार एकदम छिछला और चंद लोगों तक सिमटा हुआ है। इसका पता इससे चलता है कि अभी देश में कुल डीमैट खातों की संख्या 1.7 करोड़ तक पहुंची है। इसमें दोनों डिपॉजिटरी संस्थाओं एनएसडीएल और सीडीएसएल के आंकड़े शामिल हैं। दूसरी तरफ देश में मोबाइलधारकों की संख्या में हर महीने 1.9 करोड़ का इजाफा हो रहा है।

ब्रोकर फर्म एसएमसी कैपिटल्स के इक्विटी प्रमुख जगन्नाधन तुनगुंटला कहते हैं कि इससे यही पता चलता है कि भारतीय अवाम नई से नई तकनीक को अपनाने को आतुर रहता है। देश में टेलिकॉम क्षेत्र में क्रांति जैसी आ चुकी है। लेकिन वित्तीय सेवाएं अवाम के बीच अपनी स्वीकृति नहीं बना पाई हैं। वे कहते हैं कि ऐसा नहीं कि भारतीय वित्तीय सेवाओं ने अच्छी-खासी वृद्धि नहीं हासिल की है। लेकिन इसमें कोई बड़ी छलांग अभी बहुत दूर है।

गौरतलब है कि देश में मार्च 2010 के अंत मोबाइल सब्सक्राइबरों की संख्या 60 करोड़ तक पहुंच चुकी है। हर महीने करीब 1.9 करोड़ नए मोबाइल उपभोक्ता जुड़ जाते हैं। दूसरी तरफ हर महीने खोले जानेवाले डीमैट खातों की औसत संख्या 1.9 लाख के आसपास है। यानी, हर महीने नए डीमैट खातों की संख्या से 100 गुना ज्यादा लोग मोबाइल सेवाओं से जुड़ रहे हैं। यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि कुल डीमैट खातों की संख्या के बराबर लोग हर महीने मोबाइल कनेक्शन ले रहे हैं।

तुनगुंटला कहते हैं कि इससे जाहिर होता है कि भारतीयों के उपभोक्ता बनने की कहानी जम गई है। लेकिन भारतीयों का निवेशक बनना अभी महज सुगबुगाहट के स्तर पर है। यही वजह है कि देश में एसेट मैनेजमेंट, वेल्थ मैनेजमेंट, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट और ऑनलाइन ब्रोकिंग जैसी वित्तीय सेवाओं में व्यापक संभावना के बावजूद गतिरोध छाया हुआ है। इन सेवाओं में कई प्राइवेट इक्विटी निवेश और संयुक्त उद्यम बने हैं। वे चार-पांच सालों से दौड़ने की तैयारी में ही लगे हुए हैं। लेकिन अभी तक टेक-ऑफ नहीं कर पाए हैं।

हालांकि म्यूचुअल फंड जैसे माध्यमों मॆं निवेश के लिए डीमैट खातों की दरकार नहीं होती। लेकिन डीमैट खातों की कम संख्या यह तो दिखाती है कि हमारे यहां प्रत्यक्ष निवेशकों का आधार कितना सीमित है। इसे तमाम जानकार देश में वित्तीय बाजार के विस्तार की अपरिमित संभावना के रूप में देखते हैं। लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि औसत भारतीय को हमारे पूंजी बाजार की विश्वसनीयता को लेकर भारी संदेह है। उसे नहीं लगता कि यह निवेश के लिए इस पर निर्भर रहा जा सकता है। इसीलिए वह निवेशक बनने को तैयार नहीं है।

एसएमसी कैपिटल्स के इक्विटी प्रमुख कहते हैं कि आम भारतीय अब भी शेयर बाजार को जुए का अड्डा या कैसिनो मानता है। लेकिन वित्तीय उद्यमों में पैसा लगानेवाले प्राइवेट इक्विटी निवेशकों को भरोसा है कि एक दिन औसत भारतीय का जेहन बदलेगा और तब भारतीय निवेश की दुनिया में भी टेलिकॉम जैसी ‘क्रांति’ आ सकती है।

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