पहली जुलाई 2010 के बाद से हर जीवन बीमा कंपनी को यह बताना होगा कि वह अपनी यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी (यूलिप) में एजेंट को कितना कमीशन दे रही है। बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए ने मंगलवार को दोपहर बाद सभी जीवन बीमा कंपनियों के प्रमुख अधिकारियों (सीईओ) को भेजे गए सर्कुलर में कहा है, “कमीशन का उल्लेख उसी इलस्ट्रेशन में करना होगा जिसे ग्राहक को यूलिप बेचते समय एजेंट द्वारा देना अनिवार्य है।” यह सर्कुलर आईआरडीए के सदस्य (एक्चुअरी) डॉ. आर कन्नन की तरफ से जारी किया गया है और यह 1 जुलाई 2010 से लागू हो जाएगा। लेकिन आईआरडीए की पारदर्शिता की स्थिति यह है कि इतने जरूरी सर्कुलर को उसने अभी तक अपनी दोनों में से किसी भी वेबसाइट पर नहीं डाला है। यह भी अपने आप में चौंकानेवाली बात है हमारी बीमा नियामक संस्था की दो बेवसाइट हैं। पुरानी का पता है www.irdaindia.org तो नई का पता है www.irda.gov.in। इन दोनों पर एक ही तरह की जानकारी पेश की जाती है। बस पेश करने का तरीका अलग है।
बता दें कि यूलिप में अभी तक किसी भी एजेंट को ग्राहक के सामने एक बेनेफिट इलस्ट्रेशन चार्ट पेश करना होता है जिसमें बताया जाता है कि 6 फीसदी रिटर्न की सूरत में उसकी फंड वैल्यू कितनी होगी और 10 फीसदी रिटर्न सूरत में कितनी। इसमें पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन चार्ड, फंड मैनेजमेंट चार्ज, प्रीमियम एलॉकेशन चार्ज और मॉरटैलिटी चार्ज जैसे मदों के जरिए बताया जाता है कि प्रीमियम का कितना हिस्सा हर हाल कंपनी अपने खर्चों के लिए काट लेगी। एजेंट अमूमन ग्राहक को यह चार्ट समझाते नहीं हैं। दूसरे, इसमें बीमा कंपनियां बड़ी चालाकी भी करती हैं। जैसे, प्रीमियम से सबसे बड़ी कटौती पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन चार्ज के रूप में की जाती है जो पहले साल 40 से 70 फीसदी तक होता है। लेकिन कंपनियां इसे यूं दिखाती है कि यह आपके सम-एश्योर्ड का प्रति माह 0.42 फीसदी होगा। मान लीजिए किसी का सम एश्योर्ड तीन लाख है और वह 30,000 रुपए सालाना प्रीमियम दे रहा है तो यह प्रति माह 0.42 फीसदी साल भर में 15,120 रुपए हो जाता है, यानी आपके सालाना प्रीमियम के आधे से भी ज्यादा। लेकिन 0.42 फीसदी पढ़ते समय आपको लगता है कि यह तो बेहद मामूली राशि है, इससे क्या फर्क पड़ेगा।
इसी पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन चार्ज में से बीमा कंपनियां अपने एजेंटों को कमीशन दिया करती हैं। लेकिन अब आईआरडीए के ताजा सर्कुलर के बाद उन्हें साफ-साफ बताना होगा कि यूलिप पर एजेंट को ठीक-ठीक कितना कमीशन उन्होंने दिया है। हालांकि बीमा कंपनियां इसका विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि साबुन बेचनेवाला दुकानदार या कंपनी ग्राहक को यह कहां बताती है कि इसमें बिक्री का कमीशन कितना है। बीमा भी एक उत्पाद है और वहां भी कंपनी या एजेंट को कमीशन बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
असल में सारा मामला यूलिप पर दो नियामकों आईआरडीए और सेबी के बीच मची जंग का नतीजा है। सेबी म्यूचुअल फंड पर शुरुआती कमीशन पिछले साल अगस्त से ही खत्म हो चुकी है। लेकिन यूलिप उसी तरह का उत्पाद है, फिर भी उसमें भारी कमीशन लिया जा रहा है। सेबी ने यूलिप को भी म्यूचुअल फंडों के धरातल पर लाने के लिए पहल की, तो मामला अदालत में जाने के सिवा कोई चारा ही नहीं बचा। लेकिन इस बीच यूलिप में चल रही कमीशनखोरी का भेद सबके सामने उजागर हो गया है तो आईआरडीए को कुछ न कुछ तो करना ही था। वैसे, पेंशन रेगुलेटरी अथॉरिटी के प्रमुख डी स्वरूप की अध्यक्षता में बनी समिति यूलिप व अन्य बीमा उत्पादों पर कमीशन को धीरे-धीरे खत्म करने की पुरजोर वकालत काफी पहले कर चुकी है।