मोटे तौर पर कहा जाए तो बाजार में शेयर के भाव किसी भी दूसरे सामान की तरह डिमांड और सप्लाई या मांग और उपलब्धता से तय होते है। अगर निवेशक मानते हैं कि इस कंपनी का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है या वह आगे भी काफी अच्छा काम करेगी तो वे उस शेयर को खरीदने में जुट जाते हैं। अब चूंकि एक खास समय पर कंपनी द्वारा जारी किए शेयरों की संख्या और ट्रेडिंग के उपलब्ध शेयरों की संख्या या फ्लोटिंग स्टॉक (कुल जारी शेयरों में से प्रवर्तकों का हिस्सा घटाने के बाद बचा हिस्सा) सीमित होती है, यानी सप्लाई सीमित है तो मांग में इजाफा होते ही उस शेयर के बाजार भाव बढ़ जाते हैं।
शेयर भावो में उतार-चढ़ाव का एक कारण कंपनी का घाटा या मुनाफा भी होता है। लेकिन यही इकलौता कारण नहीं है। ऐसे से बहुत के कारक हैं जो कंपनी या उसके उद्योग से सीधे जुड़े नहीं होते। लेकिन इनका असर कंपनी के शेयरों के भाव पर पड़ता है। जैसे, ब्याज दर को ही ले लें। जब डिपॉजिट या बांड पर ब्याज की दर ज्यादा होती है तो अमूमन शेयर के भाव गिर जाते हैं। ऐसी स्थिति में निवेशक शेयरों के बजाय अपना पैसा बैंक या बांड में लगाकर अच्छी आय पा सकते हैं।
मनी सप्लाई या सिस्टम में तरलता या नकदी की अधिकता भी शेयर भावों पर असर डालती है। नोट ज्यादा हैं तो उसका एक हिस्सा शेयरों में बहने लगता है जिससे उनके भाव बढ़ जाते हैं। एक अन्य कारण है कि किसी खास वक्त निवेशकों की आम धारणा क्या है। हमारे निवेशकों के साथ तो होता यह है कि जब शेयर गिरते हैं तो सभी बेचने लगते हैं और जब बाजार में तेजी रहती तो सभी शेयर खरीदने लगते हैं। यह भारतीय शेयर बाजार की भेड़चाल है। कुछ शेयर सीजनल होते हैं। साल के एक हिस्से में अच्छा करते हैं। बाकी समय मरे पड़े रहते हैं। प्रचार या चर्चा भी शेयर भावों को उठाती-गिराती है। अगर मीडिया में खबर आ जाए कि किसी अच्छी व बड़ी कंपनी ने दूसरी कंपनी में शेयर हिस्सेदारी खरीद ली है तो दूसरी कंपनी के शेयर बढ़ने लगते हैं। अगर इसे घाटे का सौदा बताया गया तो कंपनी के शेयर गिर भी जाते हैं।
कुल मिलाकर कहें तो किसी खास शेयर के बारे में बनी धारणा या सेंटीमेंट उस शेयर के भाव को अच्छा खासा प्रभावित करते हैं क्योंकि शेयरों के भाव कंपनी की आज की नहीं, भावी स्थिति के अनुमान पर चलते हैं। सत्यम घोटाले के बाद कंपनी के डूबने की आशंका से उसके शेयर 6 रुपए तक गिर गए थे। लेकिन टेक महिंद्रा के अधिग्रहण के बाद धीरे-धीरे उसके शेयर 100 रुपए के ऊपर पहुंच गए। अंत में एक व्यावहारिक बात। अभी अपना शेयर बाजार पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है। यहां तमाम ऑपरेटरों के खेल चलते हैं। प्रवर्तक भी खेल करते रहते हैं। हर्षद मेहता से लेकर केतन पारेख के किस्सों से आप सभी वाकिफ ही होंगे। आज भी ऐसे खिलाड़ी बाजार में सक्रिय हैं। सेबी देखता है, लेकिन गांधीजी के बंदर की तरह बुरा देखने से आंखें अक्सर आंखे चुराता है। बाजार में पक्की मान्यता है कि पहले भी ऐसा था और आज भी ऐसा है कि रिलायंस समूह जब चाहे, बाजार या किसी शेयर में भूचाल ला सकता है।
इसलिए शेयर बाजार के निवेशक को बहुच चौकन्ना रहकर चलना पड़ेगा। उसे न तो लालच और न ही भेड़चाल का शिकार होना चाहिए। उसे ही तय करना होगा कि उसे सही मायनों में निवेश करना है या शेयरों की ट्रेडिंग से तुरत-फुरत पैसे बनाने हैं। अगर उसे निवेशक की भूमिका अपनानी है तो उसे अच्छे कामकाज व भावी संभावना वाली कंपनी के शेयर खरीदकर कई सालों के लिए शांत हो जाना चाहिए। जैसे, मेरे कहने पर मेरे एक पुराने मित्र और वर्तमान शत्रु ने 1996 में स्टील अथॉरिटी (सेल) के शेयर 9 रुपए के भाव पर खरीदे थे और कहा था कि इसे आप अपनी बेटी की शादी के लिए रख लेना। तब सबने कहा था कि सेल का पूंजी आधार इतना बड़ा है कि इसके भाव 12-15 रुपए से ऊपर जा ही नहीं सकते। लेकिन आप जानते ही होंगे कि इस समय इसका भाव चल रहा है – 250 रुपए के आसपास। मेरा कहना है कि हमारे-आप जैसे आम निवेशकों को शेयर बाजार में पैसा लगाते वक्त ट्रेडर बनने की मानसिकता से बचना चाहिए।