देश में अनाजों के भंडारण की सबसे बड़ी सरकारी संस्था भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने तय किया है कि वह कमोडिटी स्पॉट एक्सचेंजों के माध्यम से खुले बाजार में गेहूं बेचेगा। वह अपनी खुला बाजार स्कीम (ओएमएस) के तहत ऐसा करेगा। उसने इसकी शुरुआत 16 मार्च 2010 से नेशनल स्पॉट एक्सचेंज के जरिए कर दी है। यह अभी प्रायोजिक स्तर पर किया जा रहा है और देश में कुछ ही जगहों पर ऐसा किया जा रहा है। इसमें अभी रोलर फ्लोर मिल जैसे बड़े खरीदार ही भाग ले सकते हैं क्योंकि खरीद का न्यूनतम लॉट 100 टन का रखा गया है।
उद्योग संगठन फिक्की (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स एंड इंडस्ट्री) ने इसका स्वागत किया है और कहा है कि इससे खाद्य पदार्थों में चल रही महंगाई को काबू करने में मदद मिलेगी। लेकिन उसका सुझाव है कि यह योजना पूरे देश में लागू की जानी चाहिए। साथ ही बिक्री की इस नीलामी प्रक्रिया में 10 टन या एक टन के भी छोटे खरीदार को भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए। फिक्की का मानना है कि इस योजना का सही प्रभाव तभी पड़ेगा जब इलेक्ट्रॉनिक नीलामी और डिलीवरी की सुविधा पूरे देश में पहुंचा दी जाए। स्पॉट एक्सचेंज इसमें स्टोरेज और डिलीवरी की सुविधाएं मुहैया करा सकते हैं।
फिक्की के महासचिव अमित मित्रा का कहना है कि खुदरा स्तर पर कीमतों में कारगर कमी के लिए यह जरूरी है कि पूरे देश भर में भारी मात्रा में खरीदार सामने आएं। इससे अनाजों की बिक्री की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। बिक्री प्रक्रिया में छोटे खरीदारों की सीधी भागीदारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल में ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि ओएमएस के तहत की गई अनाजों की बिक्री में बड़े खरीदार अच्छा रिस्पांस नहीं दिखाते। यहां तक राज्य सरकारें भी इस मामले में फिसड्डी रही हैं जबकि उनके ऊपर तो सीधे पीडीएस की दुकानों के जरिए गरीब ग्राहकों तक अनाज पहुंचाने की जिम्मेदारी है।
आंकड़ों के मुताबिक बड़े खरीदारों को अक्टूबर 2009 से मार्च 2010 तक के छह महीनों के लिए 20.81 लाख टन आवंटित किया गया था, लेकिन खरीद का सौदा केवल 11.74 लाख टन यानी करीब 56 फीसदी का हुआ है। इसी तरह राज्य सरकारों को इस अवधि के लिए गेहूं आवंटित किया गया था 20.70 लाख टन, जबकि उनकी वास्वतिक खरीद 3 लाख 72 हजार 593 टन की रही है यानी लगभग 18 फीसदी।
सरकारी अनाज बेचने की मौजूदा टेंडर प्रक्रिया काफी समय खा जाती है। एक्सचेंजों में इलेक्ट्रॉनिक नीलामी यह समस्या कुछ हद तक सुलझ जाएगी। लेकिन इसमें गति तभी आएगी जब इसमें एक लाख टन के छोटे ग्राहकों को भी भाग लेने की इजाजत दी जाए। देश में अभी ब्रांडेड आटे की बाजार हिस्सेदारी 15 फीसदी से ज्यादा नहीं है। छोटे शहरों से लेकर गांवों व कस्बों में लोग गेहूं को आटा चक्की पर ही पिसवाना बेहतर समझते हैं। इसलिए एफसीआई अगर कम कीमत पर रोलर फ्लोर मिलों को गेहूं बेचता है तो इसका फायदा शहरों के अमीर उपभोक्ता को ही मिलेगा। लेकिन बिक्री का लॉट छोटा जाए तो आम दुकानदार भी इसका लाभ ले सकते हैं जिससे ग्रामीण व कस्बाई इलाकों में इसका असर हो सकता है।