देश में वोलैटिलिटी इंडेक्स की शुरुआत के करीब दो साल बाद पूंजी बाजार नियामक संस्था सेबी ने इस इंडेक्स पर आधारित डेरिवेटिव सौदों यानी फ्यूचर व ऑप्शन (एफ एंड ओ) की भी इजाजत दे दी है। लेकिन शर्त यह है कि ऐसा उसी वोलैटिलिटी इंडेक्स में हो सकता है जो कम से कम एक साल से चल रहा हो। अभी वोलैटिलिटी इंडेक्स केवल नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ही चला रहा है। इसका नाम इंडिया वीआईएक्स है और इसकी शुरुआत 9 अप्रैल 2008 को की गई थी। इसलिए सेबी के आज फैसले का लाभ केवल एनएसई को ही मिलेगा। दूसरे स्टॉक एक्सचेंज वोलैटिलिटी इंडेक्स में फ्यूचर्स व ऑप्शंस सौदे कम से कम साल भर बाद शुरू कर पाएंगे, वह भी तब जब वे फौरन अपने यहां कोई वोलैटिलिटी इंडेक्स पेश कर दें।
सेबी ने आज मंगलवार को सभी स्टॉक एक्सचेंजों और क्लियरिंग हाउसों को बाकायदा एक सर्कुलर भेजकर सूचित किया है कि अगर किसी एक्सचेंज के पास वोलैटिलिटी इंडेक्स है जिसका ट्रैक रिकॉर्ड कम से कम एक साल का है तो वह कुछ शर्तें पूरी करने के बाद उसमें डेरिवेटिव कांट्रैक्ट शुरू कर सकता है। पहली शर्त है कि एक्सचेंज के पास ऐसे कांट्रैक्ट के लिए माकूल जोखिम प्रबंधन फ्रेमवर्क होना चाहिए। दूसरी शर्त यह है कि इस डेरिवेटिव सौदे को शुरू करने से पहले एक्सचेंज को इसके सारे पहलू, पोजीशन व एक्सरसाइज लिमिट और मार्जिन के साथ ही सेबी को लिखित रूप से बताना होगा कि इससे वह कौन-सा आर्थिक मकसद हासिल करना चाहता है।
आप जानते ही हैं कि उतार-चढ़ाव शेयर बाजार का जरूरी हिस्सा है। वोलैटिलिटी इंडेक्स या सूचकांक बाजार की इसी चपलता को नापने का माध्यम है। इसकी गणना खास अवधि में शेयरों के मूल्य व इंडेक्स ऑप्शन के आधार पर की जाती है। यह भविष्य में बाजार के संभावित उतार-चढ़ाव की सामूहिक अपेक्षा का दर्शाता है। अब इसके भी डेरिवेटिव सौदों की इजाजत देकर भावी अपेक्षा को और ठोस करने की कोशिश की है। दुनिया भर में शेयर बाजार में ऊपर-ऊपर न दिखनेवाली भावना को इसी तरह जटिल उत्पादों के जरिए साधने की कोशिश की जाती है। इस इंडेक्स को पेश करते समय एनएसई के सीईओ रवि नारायण ने कहा था कि अब बाजार की चंचलता या वोलैटिलिटी भी निवेशकों के लिए कमाई का एक माध्यम (एसेट क्लास) बन गया है। बाद में इसके एफ एंड ओ सौदों के जरिए वे उतार-चढ़ाव के जोखिम को साध करेंगे।
एनएसई का वोलैटिलिटी इंडेक्स, इंडिया वीआईएक्स शेयर बाजार में अगले 30 दिनों के उतार-चढ़ाव की अपेक्षा को दर्शाता है। यह निफ्टी-50 इंडेक्स के ऑप्शन भावों पर आधारित है। असल में किसी अनिश्चितता को नापने से पहले उसे परिभाषित करना पड़ता है। एनएसई के वोलैटिलिटी इंडेक्स को लांच करते समय सेबी के चेयरमैन सी बी भावे ने कहा था कि इस इंडेक्स से लोगों में बाजार की समझ बढ़ेगी। यह इंडेक्स जितना ज्यादा होता है, उतार-चढाव की आशंका उतनी ही ज्यादा होती है। जैसे, 4 जनवरी 2010 को इंडिया वीआईएक्स 23.34 था, जो आज 27 अप्रैल 2010 को 19.79 है। इसका मतलब हुआ कि बाजार में उतार-चढ़ाव की अपेक्षा पिछले चार महीनों में कम हो चुकी है। एनएसई 9 अप्रैल 2008 के बाद से ही लगातार इस इंडेक्स के आंकडे दे रहा है।
सेबी ने वोलैटिलिटी इंडेक्स के डेरिवेटिव सौदों की इजाजत अपनी डेरिवेटिव बाजार समीक्षा समिति (डीएमआरसी) की सिफारिशों के आधार दी है। इस समिति का गठन 3 अप्रैल 2007 को किया गया था और इसमें अपनी अंतिम रिपोर्ट जनवरी 2009 में सेबी को सौंपी थी। सेबी ने 6 मार्च 2010 को अपनी बोर्ड मीटिंग में इस मसले पर विचार किया था और उसी दिन तय कर लिया था कि वोलैटिलिटी इंडेक्स में एफ एंड ओ कांट्रैक्ट की इजाजत जल्दी ही दे दी जाएगी। सेबी चेयरमैन भावे ने यह जानकारी एक संवाददाता सम्मेलन में दी थी।