राडिया का तरकशी स्पेक्ट्रम

संजय तिवारी

बहुत से लोग नहीं जानते कि यह 2-जी और 3-जी क्या बला है?  लेकिन इसी 2-जी और 3-जी के नाम पर अरबों के घोटाले का आरोप है। हाल में ही संसद से लेकर सड़क तक जिस स्पेक्ट्रम घोटाले की गूंज के साथ संचार मंत्री ए राजा के इस्तीफे की मांग उठी थी, उसके मूल में इसी 2-जी, थ3-जी का खेल है। लेकिन असली सला सवाल यहां न 2-जी, न ही 3-जी और न ही ए राजा का है। खास सवाल यहां दो हैं। एक, वे कौन लोग थे जो संचार मंत्री के जरिए स्पेक्ट्रम आवंटन में फायदा कमा रहे थे? और दो, वह कौन शख्सियत थी जो उनके लिए यह सब काम कर रहा थी?

इस शख्सियत का एक ही नाम है – नीरा राडिया। जिस काम के कारण उनका नाम चर्चा में आया है वह यह है कि  उन्होंने 2008 में 2-जी स्पेक्ट्रम नीलामी के वक्त कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की थी। इसके लिए उन्होंने संचार मंत्री ए. राजा की मदद ली थी। उस वक्त राजा अपने ही कुनबे के एक दूसरे मंत्री दयानिधि मारन को हटाकर संचार मंत्री बन गए थे क्योंकि मारन पर आरोप लगा था कि वे बतौर संचार मंत्री अपने भाई कलानिधि मारन के मीडिया व्यापार को फायदा पहुंचा रहे हैं। मंत्रालय चूंकि करुणानिधि के कोटे में ही रहना था इसलिए ए राजा को संचार मंत्री बनाया गया था। लेकिन दो साल बाद अब जो हकीकत खुलकर सामने आ रही है वह यह कि कुछ बड़ी कंपनियां एक पीआर एजेंसी वैष्णवी कम्युनिकेशन के जरिए 2-जी स्पेक्ट्रम में फायदा कमाना चाहती थी। इसलिए नीरा राडिया ने रतन टाटा के कहने पर ए राजा को संचार मंत्री बनवाया था। संचार मंत्री बनते ही ए राजा ने 22 हजार करोड़ का 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला कर दिया। सब नीरा राडिया के इशारे पर।

गुजराती मूल की नीरा राडिया लंदन में रहती हैं। वे एनआरआई नहीं है बल्कि तकनीकि रूप से पीआईओ (पीपल ऑफ इंडियन ओरिजन) हैं। जिनके परिवार एक दो पीढ़ी से देश के बाहर जाकर बस गए उन्हें पीआईओ कहा जाता है। नीरा राडिया की भारत में रुचि उसी समय शुरू हुई जब लक्ष्मी निवास मित्तल की भारत में रुचि बढ़नी शुरू हुई। एनडीए शासनकाल के दौरान लक्ष्मी निवास मित्तल अपनी निवेश योजनाओं के साथ भारत आए और साथ के साथ नीरा राडिया को भी ले आए। लक्ष्मी निवास मित्तल जानते थे कि दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में व्यापार कैसे किया जाता है। इसलिए अपने व्यावसायिक हित साधने के लिए उन्होंने नीरा राडिया की पब्लिक रिलेशन कंपनी का सहारा लिया। अब नीरा राडिया भारत में आ चुकी थीं और इधर टाटा समूह लंदन में कारोबार फैला रहा था। इसलिए नीरा राडिया के अगले क्लाइंट बना टाटा समूह। देश की दो बड़ी भीमकाय समूहों के लिए लॉबिंग करनेवाली किसी महिला की क्या हैसियत हो सकती है, इसका अंदाजा आप सहज ही लगा सकते हैं। नीरा राडिया रिलायंस इंडस्ट्रीज का भी पीआर करती हैं। इस लिहाज से वे देश के तीन सबसे बड़े कारपोरेट घरानों की व्यवसाय रक्षक हैं।

नीरा राडिया के शुरूआती परिचितों में एनडीए के ही एक भ्रष्ट मंत्री और अब बीजेपी के महासचिव अनंत कुमार का नाम सबसे ऊपर है। यह नीरा राडिया ही थीं जो रतन टाटा को अनंत कुमार के करीब लाईं। यह भी सच है कि अनंत कुमार बतौर कैबिनेट मंत्री रतन टाटा के कार का दरवाजा भी खोलने से परहेज नहीं करते थे। एनडीए के शासनकाल में ही उन्होंने एक एयरलाइन बनाने का प्रस्ताव अनंत कुमार के जरिए आगे बढ़ाया था। लेकिन अनंत कुमार की लाख लॉबिंग के बाद भी कैबिनेट ने उस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी क्योंकि तत्कालीन कैबिनेट मंत्री और खासकर लालकृष्ण आडवाणी इसमें आड़े आ गए। कारण यह था कि नीरा राडिया चाहती थीं कि उन्हे एनआरआई की तरह सुविधाएं दी जाएं ताकि उनको एयरलाइंस चालू करने में व्यावसायिक फायदा मिल सके। आडवाणी ने इसे मंजूरी नहीं दी। एयरलाइंस लाने का प्रस्ताव भले ही अटक गया हो लेकिन पहली बार जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो एक बार फिर अनंत कुमार ने कोशिश की। लेकिन इस बार भी वे सफल नहीं हो पाए। अनंत कुमार को कमजोर मोहरा मानकर अब नीरा राडिया ने कृषि मंत्री शरद पवार के जरिए अपनी मांग आगे बढ़ाने की कोशिश की। राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता देवी प्रसाद त्रिपाठी (डीपीटी) के जरिए वे शरद पवार तक पहुंचीं भी, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।

यह तो नीरा राडिया का अपना निजी सपना था जिसे वे पूरा करना चाहती थीं। लेकिन वे भारत में व्यापार नहीं कर रही थीं ऐसा नहीं है। 2008 में जिस 22 हजार करोड़ के 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को भाजपा 60 हजार करोड़ का घोटाला बताकर पूरी जांच कराने की मांग कर रही थी, उसकी मांग पर सरकार ने तनिक भी कान नहीं दिया। हां, उसका इतना फायदा जरूर हुआ कि अगर 2-जी नीलामी एक घंटे में पूरी कर ली गयी थी तो 3-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी को एक लंबी प्रक्रिया के तहत पूरा किया जा रहा है। लेकिन अब तक ए राजा और नीरा राडिया के बीच हुए संवाद जगजाहिर होने लगे थे। मीडिया से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक सबने नीरा राडिया के इशारे पर ए राजा को संचार मंत्री बनवाने के लिए लॉबिंग की थी। रतन टाटा के पैसे पर नीरा राडिया ने भारत के विभिन्न शहरों में अपने जो कार्यालय बनाए हैं, उनमें अधिकांश रिटायर्ड नौकरशाहों को ही नौकरी पर रखा गया है। अगर सीनियर नौकरशाहों के जरिए राडिया नौकरशाही को साध रही थीं तो मीडिया के कुछ स्थापित पत्रकारों और न्यूज घरानों के जरिए वे दबाव बनाने की रणनीति पर भी काम कर रही थीं। उन्होंने नेता, नौकरशाही, मीडिया और उद्योगपतियों का ऐसा गठजोड़ तैयार कर रखा है कि वे जो चाहती हैं वह काम सरकार से करवा लेती हैं। अब संचार मंत्री बनवाने से बड़ा काम तो शायद ही दूसरा कोई हो? नीरा राडिया ने वह भी बड़ी सफलतापूर्वक किया।

अक्टूबर 2009 में जब सीबीआई ने डॉट (दूरसंचार विभाग) के कार्यालय पर छापा मारा और स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच शुरू की तो संचार मंत्री ए राजा का नाम भले ही सामने आया हो लेकिन नीरा राडिया तब भी गुप्त लक्ष्मी ही बनी रहीं। आज भले ही नीरा राडिया का बतौर लॉबिस्ट नाम सामने आ रहा है लेकिन उनका बाल भी बांका होना मुश्किल है। एक तो वे व्यावसायिक गतिविधि कर रही थीं और हमारा लोकतंत्र व्यापार में कुछ भी नाजायज नहीं मानता है। दूसरे वे पीआईओ हैं इसलिए उन तक एजंसियों को पहुंच बनाने के लिए ब्रिटेन की सरकार के सामने बहुत पापड़ बेलने होंगे। ऐसे में सारा खेल करने के बाद भी नीरा राडिया भारतीय एजेंसियों की पहुंच से शायद हमेशा ही दूर बनी रहेगी। लेकिन नीरा राडिया ने जिस तरह से भारतीय लोकतंत्र का फायदा उठाया है ऐसा करनेवाली नीरा राडिया अकेली नहीं हैं। हर बड़ा कॉरपोरेट घराना खासकर दिल्ली में ऐसी सलाहकार कंपनियों की या तो सेवा लेता है या फिर अपना एक विभाग स्थापित करता है जिसे कॉरपोरेट कम्युनिकेशन कहा जाता है।

ये कॉरपोरेट कम्युनिकेटर दिन-रात सरकार को प्रभावित करने, वहां हो रही गतिविधियों की सूचना हासिल करने और उन सूचनाओं के जरिए अपनी कंपनी को फायदा पहुंचाने की जुगत लगाते हैं। इसके लिए कंपनियां हर उस व्यक्ति को ‘खरीद’ लेती हैं जो उनके काम में मददगार हो सकता है। नीरा राडिया ने भी यही किया है। उन्होंने इस देश की बिकाऊ नौकरशाही को खरीद लिया, मीडिया में अपनी दखल बना ली और नेताओं को जैसे चाहा वैसे अपने फायदे के लिहाज से इस्तेमाल कर लिया। आपको लगता होगा कि सरकारें जनता के वोट से जीतती हैं तो फिर जनता के लिए काम क्यों नहीं करती? जवाब यह है कि सरकारों को बहुत ही ऊंचे लोग चलाते हैं और ये ऊंचे लोग नीरा राडिया जैसे लोगों के माध्यम से सरकार को अपने हक में फैसला करने पर मजबूर कर देते हैं. नीरा राडिया और दिलीप चेरियन जैसे लॉबिस्टों के निशाने पर सब हैं। मीडिया, नौकरशाही, राजनीति और लोकतंत्र भी। ये वो खास लोग हैं जो सरकार को आम आदमी के खिलाफ इस्तेमाल करते हैं।

लेखक विस्फोट डॉट कॉम के संपादक हैं।

1 Comment

  1. क्या दिलीप चेरियन लॉबिस्ट हैं?
    मुझे तो सिर्फ़ यह मालूम है कि वे तो चौथी दुनिया अख़बार में अफ़सरों की नियुक्तियों, तबादलों की रिपोर्टिंग करते हैं।
    http://www.chauthiduniya.com/?author=23

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *