नए वित्त वर्ष 2010-11 के पहले दिन यानी 1 अप्रैल 2010 से देश के करीब 62 करोड़ बचत खाताधारकों के लिए एक नई शुरुआत होने जा रही है। इस दिन से उन्हें अपने बचत खाते में जमा राशि पर हर दिन के हिसाब से ब्याज मिलेगा। ब्याज की दर तो 3.5 फीसदी ही रहेगी। लेकिन नई गणना से उनकी ब्याज आय पर काफी फर्क पड़ेगा। इस समय महीने की 10 तारीख से लेकर अंतिम तारीख तक उनके खाते में जो भी न्यूनतम राशि रहती है, उसी पर बैंक उन्हें ब्याज देते हैं। इससे आम आदमी को काफी नुकसान होता रहा है।
मान लीजिए आपके सेविंग एकाउंट में 10 नवंबर को 1000 रुपए है और 11 नवंबर को आप उसमें एक लाख रुपए जमा करा देते हैं। लेकिन 30 दिसंबर को आप ये एक लाख रुपए निकाल लेते हैं तो आपको इन 51 दिनों के लिए केवल 1000 रुपए पर ही ब्याज मिलेगा क्योकि 10 नवंबर से 30 नवंबर तक आपके बचत खाते में न्यूनतम राशि 1000 रुपए ही थी और उसके बाद 10 दिसंबर से 31 दिसंबर के दौरान भी न्यूनतम राशि 1000 रुपए ही रह गई। जबकि इस दौरान आपके एक लाख एक हजार रुपए बैंक को 49 दिनों के लिए उपलब्ध रहे। यह नियम बैंकों के फायदे में रहा है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि ज्यादातर लोग महीने के खर्च के लिए बचत खाते से 10 तारीख के पहले ही पैसा निकाल लेते हैं। लेकिन रिजर्व बैंक ने 1 अप्रैल 2010 से नया नियम बनाकर आम बचत खाताधारियों का फायदा कर दिया है। अब उन्हें बैंकों के लिए फंड के सबसे सस्ते साधन से की गई कमाई का अपेक्षाकृत ज्यादा हिस्सा मिलने लगेगा।
इस नियम की घोषणा 21 अप्रैल 2009 को चालू वित्त वर्ष 2009-10 की सालाना मौद्रिक नीति पेश करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. डी सुब्बाराव ने की थी। उन्होंने कहा था कि कई बैंकों का सुझाव है कि बचत खाते की जमाराशि पर ब्याज की गणना या तो महीने की पहली तारीख से लेकर आखिरी तारीख के न्यूनतम बैलेंस पर की जाए या रोजाना के आधार पर। मसला बैंकों के शीर्ष संगठन इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) के पास ले जाया गया जिसका कहना था कि रोजाना आधार पर ब्याज की गणना तभी संभव है जब वाणिज्यिक बैंकों की सभी शाखाओं का कंप्यूटरीकरण पूरा हो जाए। अब चूंकि यह काम संतोषजनक स्तर तक पूरा हो चुका है। इसलिए सभी वाणिज्यिक बैंकों के बचत खातों पर ब्याज की गणना 1 अप्रैल 2010 से रोजाना आधार पर करने का प्रस्ताव है। बैंकों के साथ बातचीत के जरिए इसे लागू करने की जरूरतें पूरी कर ली जाएंगी।
रिजर्व बैंक गवर्नर जब यह वक्तव्य दे रहे थे, जब तक स्थिति यह थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैकों में से पंजाब एंड सिंध बैंक, यूको बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के अलावा बाकी सभी बैंकों में शाखाओं के कंप्यूटरीकरण का काम लगभग 100 फीसदी पूरा हो चुका था। देश में सक्रिय कुल 80 अनूसूचित वाणिज्यिक बैंकों में से बाकी निजी क्षेत्र के 22 और 31 विदेशी बैंक तो पहले से ही पूरी तरह कंप्यूटरीकृत हैं। पिछले 11 महीनों में यकीनन इस मामले में काफी प्रगति हुई होगी और नए वित्त वर्ष के पहले दिन से नए नियम के लागू होने में शायद कोई मुश्किल नहीं आएगी।
लेकिन जानकारों के मुताबिक कुछ बैंक अब भी इस नियम को लागू करने से बचने के लिए तरह-तरह की दलीलें दे रहे हैं। वैसे, आईबीए की कंप्यूटीकरण पूरा हो जाने की दलील भी भी एकांगी लगती है क्योंकि बैंक जब इस समय भी चालू खाते में ओवरड्राफ्ट पर अपने ब्याज की गणना रोजाना के आधार पर कर रहे हैं तो वे बचत खाते में रोजाना की गणना से खाताधारक को ब्याज क्यों नहीं दे सकते। असल बात यह है कि हर धंधे की तरह बैंक भी अपने मुनाफे पर चोट नहीं लगने देना चाहते। असल में चालू और बचत खाते या कासा की जमा बैंकों के लिए फंड जुटाने का सबसे सस्ता माध्यम है।
बैंक जहां कासा (सीएएसए) के अंतर्गत आनेवाली जमा में चालू खाते की रकम पर कोई ब्याज नहीं देते, वहीं बचत खाते की रकम पर उन्हें 3.5 फीसदी सालाना की दर से ब्याज देना पड़ता है। लेकिन न्यूनतम बैलेंस के नियम के चलते व्यवहारिक तौर पर बचत खाते पर जमाकर्ता को 2.5 से 2.8 फीसदी ही ब्याज मिल पाता है। रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों की कुल जमा का करीब 22 फीसदी बचत खातों और 12 फीसदी चालू खातों से आता है। बैंकों के बचत खातों में जमा रकम लगभग 8.75 लाख करोड़ रुपए है। बैंक न्यूनतम बैलेंस के नियम के चलते 3.5 फीसदी के निर्धारित ब्याज से करीब एक फीसदी कम ब्याज देकर हर साल लगभग 8750 करोड़ रुपए बचा रहे हैं। लेकिन 1 अप्रैल 2010 से यह राशि आम आदमी को मिलने लगेगी। इससे जाहिर है बैंकों को नुकसान होगा। इसलिए वे आखिरी दम तक इसका विरोध करेंगे। लेकिन बैंकिंग क्षेत्र का नियामक भारतीय रिजर्व बैंक शायद उनके विरोध को अब तवज्जो नहीं देगा।