कुछ लोगों को यकीनन बुरा लग सकता है कि जिस कंपनी की शुद्ध बिक्री दिसंबर 2010 की तिमाही में 287.49 करोड़ रुपए रही हो, जिसने पिछले वित्त वर्ष 2009-10 में 812.26 करोड़ की शुद्ध बिक्री हासिल की हो, उसके शेयर को चिरकुट क्यों कहा जा रहा है। लेकिन आम निवेशक के नजरिए से मुझे रोहित फेरो-टेक लिमिटेड एक चिरकुट कंपनी लगती है और उसका शेयर भी एकदम चिरकुट। वह भी तब, जब इसका ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 8.89 रुपए है, जिसके आधार पर 42.90 रुपए के वर्तमान भाव पर उसका पी/ई अनुपात मात्र 4.83 निकलता है। और, इस शेयर की बुक वैल्यू ही बाजार भाव से लगभग डेढ़ गुना, 63.48 रुपए है।
ये कारक आमतौर पर अच्छा आधार बनते हैं किसी भी शेयर में निवेश करने के। फिर भी रोहित फेरो-टेक (बीएसई – 532731, एनएसई – ROHITFERRO) के बारे में उल्टी राय क्यों? जवाब देने से पहले बता दूं कि 18 अप्रैल को 11 बजकर 20 मिनट पर मुझे किसी डीएम मल्टीबैग का एसएमएस मिला, “रोहित फेरो को 42.50 रुपए के मौजूदा बाजार मूल्य पर खरीद लें। लक्ष्य 70 रुपए का है। कंपनी ने घोषित किया है कि वह विस्तार के लिए 10 करोड़ डॉलर जुटा रही है। यहां से यह शेयर तेजी से उठेगा। हम इसे खरीदने की सिफारिश करते हैं।” वाह भाई वाह! मान न मान, मैं तेरा मेहमान। मैंने तो आपकी सेवाएं सब्सक्राइब नहीं की हैं। फिर आप इस ‘मल्टीबैगर’ की मुफ्त सूचना देकर क्यों मेरा उद्धार करना चाहते हैं?
खै, जो भी जालबट्टा रहा हो, उस दिन यानी 18 अप्रैल को बीएसई में रोहित फेरो के 7.03 लाख शेयरों के सौदे हुए जिसमें से 6.52 लाख शेयर (92.74 फीसदी) डिलीवरी के लिए थे। इनके बाद के दो दिनों में यानी कल तक माहौल थोड़ा हल्का पड़ा है और बीएसई में हुआ वोल्यूम 94,079 व 1.36 लाख शेयरों का रहा, जिनमें से क्रमशः 50.52 फीसदी व 40.72 फीसदी शेयर डिलीवरी के लिए थे। एनएसई में 18,19, 20 अप्रैल को इसमें हुई खरीद-फरोख्त क्रमशः 6.35 लाख, 2.23 लाख व 2.62 लाख शेयरों की रही जिसमें से डिलीवरी का अनुपात 84.10, 59.70 व 47.10 फीसदी रहा है।
नोट करने की बात यह है कि पिछली चार तिमाहियों से कंपनी का शुद्ध लाभ ज्यादातर घटता ही रहा है। मार्च 2010 की तिमाही में 14.25 करोड़ था। जून 2010 में 11.82 करोड़ हुआ। सितंबर 2010 की तिमाही में थोड़ा बढ़कर 12.81 करोड़ रुपए हुआ। लेकिन दिसंबर 2010 की तिमाही में धड़ाम से 5.38 करोड़ रुपए पर आ गया। साल भर पहले दिसंबर 2009 की तिमाही में 8.08 करोड़ रुपए था। जिस कंपनी का लाभ लगातार घट रहा हो, उसको भले ही निहित स्वार्थ वाले लोग मल्टी बैगर कहें, हम तो चिरकुट ही कहेंगे। कंपनी उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के संयंत्रों में जो भी फेरो एलॉय बनाती है वे स्टील उद्योग में खपते हैं। तो, ऐसा भी नहीं है कि वह कोई नायाब उत्पाद बना रही है।
दूसरे, इस कंपनी का आईपीओ पांच साल पहले मार्च 2006 में आया था जिसमें इसके 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयर 30 रुपए पर जारी किए गए थे। अगर कोई आईपीओ पांच सालों में 50 फीसदी रिटर्न भी न दे सके तो उसे क्या कहा जाएगा? पांच साल में 44 फीसदी रिटर्न तो एफडी में 8 फीसदी के ब्याज पर मिल जाता!! हालांकि रोहित फेरो का शेयर बीच में 67.50 रुपए (9 नवंबर 2010) तक गया था। लेकिन इस साल 10 फरवरी 2011 को वह 34.70 रुपए की तलहटी तक भी पहुंचा।
मैंने बहुत तलाशा कि क्या सचमुच कंपनी विस्तार के लिए 10 करोड़ डॉलर जुटाने की घोषणा कर चुकी है। लेकिन मुझे ऐसी स्पष्ट घोषणा कहीं नहीं मिली। हां, कंपनी के निदेशक बोर्ड ने 31 मार्च 2011 को हुई बैठक में यह फैसला जरूर किया है कि कंपनी की अधिकृत पूंजी 80 करोड़ से बढ़ाकर 150 करोड़ रुपए तक दी जाए और ‘समय-समय पर’ एडीआर, जीडीआर, एफसीसीबी, क्यूआईपी, ओसीडी वगैरह से अधिकतम 10 करोड़ डॉलर जुटाए जा सकते हैं। ध्यान दें, जुटाए जा सकते हैं।
इसी बोर्ड बैठक में कंपनी ने यह भी तय किया कि वह अपनी इक्विटी में एफआईआई निवेश की सीमा बढ़ाएगी। लेकिन जिस कंपनी में एफआईआई पिछली तीन तिमाहियों में अपनी इक्विटी हिस्सेदारी घटाकर 2.55 फीसदी से 1.21 फीसदी पर ले आए हों, उसमें उनके निवेश की सीमा बढ़ाने का क्या औचित्य है? हां, इधर राइट्स इश्यू के पूरी तरह न भरने से जरूर प्रवर्तकों को अपनी हिस्सेदारी दिसंबर 2010 की तिमाही में 52.90 फीसदी से बढ़ाकर 66.32 फीसदी करनी पड़ी है। कंपनी की कुल इक्विटी अभी 55.28 करोड़ रुपए है। इसमें घरेलू संस्थाओं (डीआईआई) का निवेश 0.02 फीसदी है।
इन सारे तथ्यों के बाद मेरी स्पष्ट राय है कि रोहित फेरो का न तो इतिहास, न भूगोल, न वर्तमान, न भविष्य ऐसी कोई गुंजाइश पेश कर रहा है कि उसका साथ दिया जाए। जिस तरह खोटे मनुष्यों का साथ छोड़ देने में ही भलाई है, उसी तरह ऐसी चिरकुट कंपनियों के शेयरों में नहीं फंसना चाहिए, भले ही कोई कितना भी मल्टी बैगर, मल्टी बैगर का शोर मचाए।
मल्टी बैगर क्या है किसे कहते है
मल्टी बैगर उस शेयर को कहते हैं जिसके कई गुना बढ़ने की संभावना होती है। जो मल्टी टाइम्स बढ़ सके, वो मल्टी बैगर। 200-300-400% बढ़े तो समझिए कि मल्टी बैगर। ज्यादातर स्मॉल व मिड कैप में भी ऐसे शेयर मिलते हैं।