चीन ने अमेरिकी बांडों में बढ़ाया निवेश

अमेरिका की ऋण सीमा का बवाल भले ही इस महीने उठा हो और स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने उसकी रेटिंग दो हफ्ते घटा दी हो, लेकिन दुनिया भर के देश दो महीने पहले से ही अमेरिकी बांडों में अपना निवेश घटाने लगे हैं। मई में जहां दुनिया के तमाम देशों ने अमेरिकी बांडों में 4516 अरब डॉलर लगा रखे थे, वहीं जून में उनका निवेश घटकर 4499.2 अरब डॉलर रह गया। लेकिन इस दौरान चीन व ब्रिटेन जैसे कुछ देशों ने अमेरिकी बांडों में अपना निवेश बढ़ा दिया है।

बता दें कि अमेरिकी सरकार इन बांडों के जरिए दुनिया भर से कर्ज लेती है। दुनिया के देश भी इनमें खुशी-खुशी निवेश करते हैं क्योंकि इन्हें सबसे ज्यादा सुरक्षित निवेश माना जाता रहा है। अभी हाल तक अमेरिकी सरकार के बांडों की रेटिंग एएए थी। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने इसे 5 अगस्त से घटाकर एए+ कर दिया है। हो सकता है कि अगस्त माह से इसका साफ असर सामने आए, जिसके आंकड़े अमेरिकी सरकार का ट्रेजरी विभाग 17 अक्टूबर, सोमवार को जारी करेगा।

चीन इस समय अमेरिका का सबसे बड़ा कर्जदाता देश है, जबकि जापान दूसरे और ब्रिटेन तीसरे नंबर पर है। अमेरिका के ट्रेडरी व फेजरल रिजर्व बोर्ड की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार जून में चीन ने अमेरिकी बांडों में 1165.5 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है, जबकि मई महीने में यह निवेश 1159.8 अरब डॉलर का था। जापान ने इस दौरान अमेरिकी बांडों में अपना निवेश 912.4 अरब डॉलर से घटाकर 911 अरब डॉलर कर दिया है। वहीं ब्रिटेन ने चीन की तरह अपना निवेश 346.8 अरब डॉलर से बढ़ाकर 349.5 अरब डॉलर कर दिया है।

लक्जमबर्ग, थाईलैंड, जर्मनी, सिंगापुर, तुर्की, आयरलैंड, बेल्जियम, मेक्सिको, पोलैंड, स्वीडन व कोलम्बिया जैसे कुछ और देशों ने जून के दौरान अमेरिकी बांडों में अपना निवेश बढ़ा दिया है। लेकिन इनकी रकम बहुत कम है। जैसे, जर्मनी ने मई तक इन बांडों में 61.2 अरब डॉलर लगा रखे थे और जून में यह रकम 62 अरब डॉलर हो गई। भारत इन बांडों में अपना निवेश चालू वित्त वर्ष की शुरुआत से ही घटा रहा है। अप्रैल में यह रकम 42.1 अरब डॉलर थी, मई में 41 अरब डॉलर हुई और जून में 38.9 अरब डॉलर रह गई।

नोट करने की बात यह है कि अमेरिका को इन बांडों के जरिए सबसे ज्यादा कर्ज दस प्रमुख देशों या उनके समूह ने दे रखा है। ये हैं – चीन, जापान, ब्रिटेन, तेल निर्यातक देश, ब्राजील, ताइवान, कैरीबियन बैंकिंग सेंटर्स, हांगकांग, रूस और स्विटजरलैंड। अमेरिका के बांडों में जून तक लगे 4499.2 अरब डॉलर में से 3493 अरब डॉलर यानी 77.64 फीसदी तो इन्हीं दस देशों ने दे रखे हैं। इन दस में भी अकेले चीन का योगदान एक-तिहाई से ज्यादा है। हांगकांग व ताइवान को जोड़ दें तो यह हिस्सा और ज्यादा बढ़ जाता है।

तेल निर्यातक देशों में एक्वाडोर, वेनेजुअला, इंडोनेशिया, बहरीन, ईरान, इराक, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, गैबन, लीबिया व नाइजीरिया शामिल हैं, जबकि कैरीबियन बैंकिंग सेंटर्स में बहामास, बेरमूडा, कैमैन आईलैंड, नीदरलैंड एंटिलेस, पनामा और ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड शामिल हैं।

चीन के भीतर जून में अमेरिकी बांडों में 5.7 अरब डॉलर ज्यादा निवेश करने को एक तरह की मजबूरी माना जा रहा है। असल में चीन ने पिछले तीन महीनों – अप्रैल, मई, जून में लगातार इन बांडों में अपना निवेश बढ़ाया। मार्च में उसका निवेश 1144.9 अरब डॉलर था। इस तरह जून तक उसने अमेरिकी बांडों में 20.6 अरब डॉलर और डाल दिए। इस निवेश की बढ़ने की खास वजह यह है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के दबाव में रहने के बावजूद अब भी डॉलर को दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा और अमेरिका के ट्रेजरी बांडों को सबसे सुरक्षित ऋण-प्रपत्र माना जा रहा है।

चीन में सिंगहुआ यूनिवर्सिटी के शोधार्थी युआन गैंगमिंग का कहना है कि चीन का इस तरह अमेरिकी बांडों मे निवेश का बढ़ाना यही दिखाता है कि उसके पास अपने 3200 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार को लगाने के विकल्प कितने सीमित हैं।

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