एक तरफ प्रधानमंत्री देश के नौजवान बेटी-बेटियों के सौभाग्य की बात कर रहें हैं, दूसरी तरफ दुर्भाग्य की बात यह है कि पिछले सात सालों में देश की श्रम-शक्ति तेज़ी से बूढ़ी होती जा रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों की थाह लेने पर पता चलता है कि वित्त वर्ष 2016-17 के शुरू से 2022-23 के अंत तक देश की काम-धंधे में लगी आबादी में 15 से 29 साल तक के युवाओं का हिस्सा 25% से घटकर मात्र 17% रह गया है। कार्य-शक्ति में इसके ऊपर के 30 से 44 साल तक के लोगों का हिस्सा भी उक्त सालों में 38% से घटकर 33% रह गया है। वहीं, 45 साल या इससे ऊपर के लोगों का हिस्सा कार्य-शक्ति में इसी दौरान 37% से बढ़कर 49% हो गया है। इसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा और संख्या 55 से 59 साल के लोगों की है। इसका सीधा-सा मतलब यह हुआ कि जो पहले से नौकरी या रोजगार में लगे लोग हैं, उन्हीं की स्थिति सुरक्षित है और श्रम-शक्ति में एंट्री लेनेवाले नौजवानों को कहीं कोई काम-धंधा नहीं मिल रहा। इसी का नतीजा है कि हाल के सालों में नौजवानों में बेरोज़गारी का स्तर बराबर बढ़ता जा रहा है। अब बुधवार की बुद्धि…
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