सरकार का सर्वेक्षण कहता है कि बीते वित्त वर्ष 2022-23 में देश में 15 साल के ऊपर के सभी भारतीयों की श्रम बल या बाज़ार में भागादारी 54.6% है जिसमें से महिलाएं 31.6% हैं। वहीं, प्रोफेशनल संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) का कहना है कि श्रम बाजार में यह भागीदारी 2022-23 में मात्र 39.5% रही है जो 2016-17 के बाद का न्यूनतम स्तर है। इसमें भी केवल पुरुषों का हिस्सा 66% है, जबकि महिलाओं का केवल 8.8% रहा है। जानकार कहते हैं कि श्रमबल में सरकार ने महिलाओं का हिस्सा ग्रामीण इलाकों के दम पर बढ़ाया है क्योंकि सरकारी निर्देश पर सर्वेक्षण करने वालों ने खुद के घर का काम करनेवाली महिलाओं को भी इसमें गिन लिया है, जबकि उनको इस श्रम का कोई भुगतान मिलता ही नहीं। फिर भी महिलाओं की श्रम भागीदारी का जो आंकड़ा आया है, वो दुनिया में तमाम देशों ही नहीं, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक से कम है। देश के आर्थिक विकास के लिए इस स्थिति को दुरुस्त करना ज़रूरी है। साल 2015 में ही मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर ले आई जाए तो साल 2025 तक भारत के जीडीपी में 700 अरब डॉलर या 1.4% जुड़ जाएंगे। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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