कमाल की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मानते हैं कि वे श्रेय की राजनीति करते हैं। 9 फरवरी को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में उहोंने कहा था, “गांधी जी कहते थे श्रेय और प्रिय। हमने श्रेय का रास्ता चुना।” अनजाने में कही यह बात उनकी हर हरकत में झलकती है। मगर, दिक्कत यह है कि उपलब्धियों का श्रेय लेने में वे झूठ की अति कर देते हैं। लेकिन कमियों-खामियों पर फूटी नज़र भी नहीं डालते। सरकारी विज्ञापन और प्रधानमंत्री ने जनधन खातों की संख्या जितनी बताई, वो जनधन योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर उतनी ही 53.20 करोड़ है। लेकिन इन खातों में जमाराशि प्रधानमंत्री के ट्वीट व विज्ञापन में ₹2,31,235 करोड़ बताई गई है, जबकि वेबसाइट पर यह रकम ₹2,29,989 करोड़ है। गरीबों के खाते में ₹1246 करोड़ का यह अंतर कोई छोटा नहीं होता! प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी नहीं बताया कि 53.20 करोड़ जनधन खातों में से 10 करोड़ से ज्यादा खाते निष्क्रिय पड़े हैं और उनमें पड़ी करीब ₹12,000 करोड़ की रकम डॉरमेंट हो चुकी है। इलेक्ट्रोरल बॉन्डों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दौरान हल्ला मचा था कि भाजपा को चंदा देने में जनधन खातों का भी इस्तेमाल हुआ है। साथ ही नोटबंदी के समय खबर चली थी कि जनधन खातों के ज़रिए कालेधन को सफेद किया गया। लेकिन सब कुछ दबा दिया गया। अब मंगलवार की दृष्टि…
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