अंत में क्यों, अभी से क्यों नहीं!

करीब महीने भर पहले मेरी मुलाकात नूतन संजय गीध से हुई। 33 साल की नूतन एक निजी कंपनी में काम करती है। बड़ी बेचैन थीं। बीते वित्त वर्ष में भारी भरकम इंक्रीमेंट मिलने के कारण उसका टैक्स का दायरा बढ़ गया था। सो, नूतन ने बीमा पॉलिसी में निवेश करने का मन बनाया। यह पॉलिसी वह टैक्स बचाने के लिए खरीदना चाहती थीं। जब मैंने इस बारे में सलाह देनी चाही तो वह बोली कि सर, रहने दीजिए, बीमा पॉलिसी तो बीमा पॉलिसी होती है। टैक्स ही तो बचाना है।

टैक्स के लिए ही नहीं: जब मैंने उन्हें यह बताया कि बीमा पॉलिसी को सुरक्षा कवर के लिए खरीदा जाना चाहिए ताकि किसी अनहोनी में परिवार को कुछ आर्थिक सहारा मिल सके। लिहाजा मात्र टैक्स बचाने के लिए ही बीमा पॉलिसी न खरीदी जाए। तब उन्होंने कहा – इस पर तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।

इंश्योरेंस सोच बदलिए: हममें से ज्यादातर लोग नूतन की तरह सोचते हैं। वे बीमा पॉलिसी को इसलिए खरीदते हैं कि उन्हें बीमा खरीदना होता है। पर आज के दौर में यह मानसिकता ठीक नहीं है। आपको अपनी इंश्योरेंस सोच में बदलाव करना है। अरबपति कारोबारी व दानशूर वॉरेन बफेट ने एक साक्षत्कार में कहा है कि इंश्योरेंस पॉलिसी को सुरक्षा के लिए लेना चाहिए। पैसे का निवेश करने या बचत करने के नजरिए से नहीं।

रेगुलेशन वर्ष 2010: बता दें कि साल 2010 बीमा उद्योग के लिए रेगुलेशन वर्ष के लिए जाना जाएगा। यूलिप की गाइडलाइंस में बदलाव ने बीमा उद्योग के ढांचे को ही बदल दिया है। अब यह नया जमाना है। इसलिए अब बीमा कंपनियां यूलिप पर जोर देने की बजाय परंपरागत योजनाओं पर फोकस करने लगी हैं।

250 से 80 पर: कुछ समय पहले तक बीमा कंपनियों की बिक्री में 80 फीसदी हिस्सा यूलिप से आता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब माहौल बदल गया है। यूलिप की गाइडलाइन में बदलाव होने के पहले बाजार में तकरीबन 250 यूलिप मौजूद थीं, पर नए नियम आने के बाद बीमा उद्योग में लांच हुई नई यूलिप पॉलिसियों की संख्या इस समय 80 ही है।

पारदर्शी पर मंहगी: अपने नए अवतार में यूलिप अपेक्षाकृत पारदर्शी तो हैं पर जब बात आए बीमा कवर की तो पता चलता है कि अब ये पॉलिसियां मंहगी भी हो गई हैं। उदाहरण के तौर पर चाइल्ड यूलिप को लेते हैं। अपने बच्चे का भविष्य बनाने के लिए आप इनका चयन कर सकते हैं। पर ध्यान रहे कि यूलिप के चार्ज की लिमिट तय होने के बाद भी इनकी यील्ड सुपीरियर नहीं है। लिहाजा ये रेगुलर यूलिप से भी मंहगी हैं क्योंकि इनमें वेवर ऑफ प्रीमियम व लॉस ऑफ इन्कम राइडर की सुविधा है।

जल्दबाजी नहीं: वित्त वर्ष का अंत आने पर फरवरी-मार्च के दौरान बीमा उद्योग में नए व्यवसाय की धूम मच जाती है। पॉलिसी खरीदारों के साथ बीमा एजेंट भी सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन इस दौरान जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। सावधानी पूर्वक व सोचकर ही फैसला करें और इंश्योरेंस पॉलिसी लेते समय सिर्फ टैक्स बचाना ही आपका ध्येय नहीं होना चाहिए।

योजना में कितनी लोच: प्राथमिकताएं हर वक्त बदलती रहती हैं। यह विचार करना जरूरी है कि बदलाव क्या हो सकता है और इन बदलती प्राथमिकताओं को यह बीमा योजना किसा तरह से समाहित कर सकती है। मसलन, क्या आप कुछ समय बाद प्रीमियम का भुगतान करना बंद कर सकते हैं? अगर आपने पॉलिसी बंद कर दी तो आपको क्या मिलेगा? क्या आप कुछ समय बाद मेडिकल राइडर जोड़ सकते हैं। क्या आप बाद में कभी मृत्यु पर देय लाभ की रकम बढ़ा सकते हैं? योजना वह लें जो आपको इन सवालों का सकारात्मक उत्त्तर दे सके।

शुरूआत बेसिक प्लान से: यदि आप गंभीरता से सोचेंगे तो आपको पता चलेगा कि सबसे सही रास्ता तो यह है कि आप साल के अंतिम समय में एक बेसिक प्लान से शुरूआत करें और फिर जैसे-जैसे आपका बजट और जरूरतें बढ़ती जाएं, वैसे-वैसे आप इसमें जोड़ते जाएं। खास बात यह है कि लोगबाग वित्त वर्ष का अंत करीब आने पर टैक्स बचाने के चक्कर में बीमा की बात सोचते हैं। एक तो यह सोच ही गलत है। दूसरे सोचना ही है कि वित्त वर्ष के अंत के बजाय शुरू में ही सोच लें तो ज्यादा अच्छा रहता है।

– राजेश विक्रांत (लेखक मुंबई में कार्यरत एक बीमा प्रोफेशनल हैं)

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