उठने पर ही क्यों लगाते हो टंगड़ी!

मैंने कल बिजनेस स्टैंडर्ड में एक रिपोर्ट पढ़ी जिसमें संवाददाता ने किसी शेयर को ट्रेड टू ट्रेड श्रेणी में डालने के तौर-तरीकों को लेकर स्टॉक एक्सचेंज के अधिकारियों पर कुछ खरे-खरे आरोप लगाए हैं। इसमें भ्रष्टाचार तक का आरोप शामिल है। इन आरोपों की वाकई जांच-पड़ताल की जानी चाहिए और पुष्टि के लिए प्रमाण भी जुटाए जाने चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसी शेयर को ट्रेड टू ट्रेड से दोबारा सामान्य श्रेणी में वापस लाने के बारे में अभी तक कोई नियम नहीं हैं और इसके लिए बहुत सारी डील परदे के पीछे की जाती है।

मैं मानता हूं कि यह सच है। कोई शेयर वापस बी ग्रुप में क्यों लाया जाता है, इस बाबत कोई नियम नहीं हैं जबकि निवेशकों को इसकी जानकारी होना जरूरी है। उन निवेशकों ने क्या गुनाह किया था जिन्होंने रामसरूप इंडस्ट्रीज को 100 रुपए के ऊपर खरीदा था, जिसे ट्रेड टू ट्रेड में डालकर 34 रुपए तक पीट डाला गया? स्पष्टता के अभाव में निवेशकों को घाटा उठाना पड़ा जबकि मक्कार ऑपरेटरों ने इस स्थिति का फायदा उठाया और करोड़ों का घोटाला कर डाला। आखिर ऐसे में बाजार संचालित मूल्य प्रणाली कहां चली जाती है?

दूसरा गंभीर मसला यह है कि एक्सचेंज के सारे नियम-कायदे केवल खरीद के रुझान या लांग साइड पर ही लगाए जाते हैं। आकृति सिटी को इसलिए सजा दी गई क्योंकि तेजड़ियों ने इसमें खेल कर दिया, उठाकर 2100 रुपए तक ऊपर तक ले गए। लेकिन कोर प्रोजेक्ट्स के खिलाफ कभी कुछ नहीं किया जिसे 450 रुपए से गिराकर 45 रुपए पर पटक दिया गया क्योंकि एक्सचेंज को ‘लगा’ कि वो तो इससे निकलने का मौका दे रहा है।

आपने देखा होगा कि कैसे आरडीबी इंडस्ट्रीज 160 से गिराकर 40 रुपए और तुलसी एक्स्ट्रयूजंस 90 से गिराकर 46 रुपए पर ले आए गए। इस दरम्यान एक्सचेंज के फिल्टर अपनी जगह पर मौजूद बदस्तूर कायम रहे। फिर भी ऐसा हो जाना साबित करता है कि शेयर के गिरते समय एक्सचेंज का कोई नियम काम नहीं करता, जबकि इस खेल में निवेशकों की सारी पूंजी स्वाहा हो जाती है। ऐसा भेदभाव क्यों? नियम तो समान होने चाहिए और निवेशकों को पता भी होने चाहिए क्योंकि बाजार तो अंततः निवेशकों का ही है और यहां उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई लगा रखी है।

एक्सचेंज की भूमिका यकीनन निगरानी और निरीक्षण की है, लेकिन उसे शेयरों के गिरने या उठने में से एक खेमा तो नहीं पकड़ना चाहिए। अगर ऐसा हो रहा है तो इससे कुछ दूसरे मायने-मतलब निकाले जा सकते हैं। मसला गंभीर है और मुझे लगता है कि बाजार नियामक सेबी और वित्त मंत्रालय को इस पर गौर करना चाहिए क्योंकि उनका दायित्व ही छोटे व रिटेल निवेशकों के हितों की हिफाजत करना है।

अब बाजार में मची हायतौबा की बात। बाजार कल इसलिए गिर गया क्योंकि बराक ओबामा ने किसी संधि पर दस्तखत नहीं किए। आज चूंकि चीन के बाजार में 5 फीसदी गिरावट आ गई तो भारत का बाजार भी लुढ़क गया। असल में बाजार में इतने शॉर्ट सौदे हो रखे हैं कि उन्होंने आग लगाने की पूरी बारूद बिछा दी है। मुझे लगता है कि अब अच्छी रिकवरी होगी क्योंकि बाजार में हाल के शिखर से पूरे 1000 अंकों की गिरावट आ चुकी है। 5 नवंबर को सेंसेक्स ऊपर में 21,108.64 तक गया था, जबकि आज यह नीचे में 20,108.40 तक चला गया।

इतना करेक्शन काफी है। इसलिए आगे चिंता करने की कोई बात नहीं है। मेरा मानना है कि बाजार में सुधार भी इतना ही तेज होगा और इसका आकार अंग्रेजी के अक्षर V की तरह होगा। इस बीच हमने जो चुनिंदा स्टॉक्स आपको सुझाए हैं, उन्हें आप और न खरीद सकें तो कम से कम जितने हैं, उन्हें होल्ड करके रखें। जिन्हें हमारे ऊपर यकीन नहीं है, वे बेशक हथियार डालकर निकल सकते हैं और अपनी जंग खत्म कर सकते हैं।

किसी युद्ध को सबसे जल्दी खत्म करने का तरीका है हथियार डाल देना।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ हैलेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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