ये हमारी-आपकी बची-खुची पूंजी में निकालने की जुगत भिड़ा रहे हैं। नियामक संस्था सेबी जल्दी ही 250 रुपए या इससे भी कम 100 रुपए की एसआईपी का रास्ता साफ करने की तैयारी में है। यह लालच दिखाकर कि म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में नियमित धन लगाकर गरीब से गरीब देशवासी भी कॉरपोरेट की बढ़ती कमाई में हिस्सेदार बन सकता है। उसे एफडी, पीपीएफ या डाकघर जैसी बचत योजनाओं से असल में घाटा ही होता है क्योंकि उन पर मिलनेवाला ब्याज महंगाई की भरपाई नहीं कर पाता, जबकि कंपनियां अपने धंधे से बराबर महंगाई या मुद्रास्फीति को मात देती रहती हैं। इसलिए म्यूचुअल फंडों के ज़रिए कंपनियों में धन लगाओगे तो फायदे में रहोगे और यही सही है। लेकिन तमाम कंपनियों की हालत तो खस्ता है। खासकर उपभोक्ता सामान बेचनेवाली हिंदुस्तान यूनिलीवर से लेकर डाबर, ब्रिटानिया, नेस्ले, मैरिको, एशियन पेंट्स और गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स जैसी तमाम बड़ी कंपनियों का धंधा मंदा पड़ा हुआ है। कायदे की मांग न निकलने से लाभ नहीं बढ़ रहे तो उनके शेयर 52 हफ्तों की तलहटी से उठ नहीं पा रहे। केवल सरकार की सेवा या उसकी कृपा पर चलनेवाली कंपनियों के ही शेयर चमक रहे हैं। लेकिन क्या इससे आम भारतीयों के चेहरे चमक सकते हैंं और उनका विकास या संवृद्धि हो सकती है? अब बुधवार की बुद्धि…
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