दिक्कत यह है कि नौ सालों से देश पर राज कर रही हमारी सरकार न खुद सच बोलती-सुनती है और न ही सच बोलनेवालों को बरदाश्त कर पाती है। तमाम पत्रकार, बुद्धिजीवी व सांसद तक सच बोलने पर सरकार के कोप का शिकार हो चुके हैं। यहां तक कि रिजर्व बैंक के गवर्नर और केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी इससे नहीं बचे। 14 सितंबर 2018 को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व वित्त मत्रालय के बडे अधिकारियों के साथ हुई एक बैठक में रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल ने कहा, “2013 में भारत दुनिया के पांच नाजुक देशों में से एक था। लेकिन राजकोषीय घाटे, चालू खाते की हालत और रुपए के प्रदर्शन पर गौर करें तो 2018 में भारत दुनिया की पांच सबसे बदतर काम कर रही और अरक्षित अर्थव्यवस्थाओं में से शुमार हो गया है।” इस बैठक के अंत में प्रधानमंत्री ऊर्जित पटेल पर फट पड़े। ऊर्जित पटेल को 10 दिसंबर 2018 को ही बीच कार्यकाल में इस्तीफा देना पड़ा। इसी तरह अक्टूबर 2014 से जून 2018 तक भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमणियन पर 2017 में अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर पेश करने का इतना दवाब पड़ा कि वे बेचैन होते गए और अंततः निजी वजहें बताकर अपना पद छोड़कर चले गए। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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