कैसे मोड़ पर मार मुनाफे की कुंजी?

चाहे हम नियमित आय के लिए शॉर्ट-टर्म ट्रेड कर रहे हों या दौलत जुटाने के लिए लांग-टर्म निवेश कर रहे हों, हमारा लक्ष्य यही है कि हम कम से कम जोखिम में अधिक से अधिक मुनाफा कैसे कमा सकते हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है भावों के उस स्तर की सटीक शिनाख्त जहां से कोई स्टॉक या बाज़ार तेज़ी से पलटता है। दरअसल, इन टर्निंग प्वाइंट्स को पकड़ना ही न्यूनतम रिस्क उठाकर अधिकतम रिटर्न पाने की कुंजी है।

ये टर्निंग प्वॉइंट कब, कहां और कैसे आते है? शेयर ही नहीं, किसी भी बाज़ार में भाव मांग और सप्लाई के समीकरण के हिसाब से चलते हैं। तमाम बाज़ारों में भाव लंबे समय तक कमोबेश एक दिशा में जाते हैं। उनका चक्र बड़ा होता है। लेकिन शेयर बाज़ार में भाव बराबर लहरों की तरह ऊपर-नीचे होते रहते हैं। भाव उस जगह मोड़ लेते हैं जहां मांग और सप्लाई के इस सीधे-साधे समीकरण का संतुलन टूटता है। यह संतुलन जितना तगड़ा होता है, भावों का मोड़ भी उतना ही तल्ख होता है।

बीएसई, एनएसई कहीं भी किसी स्टॉक का चार्ट बनाकर देखिए तो साफ नज़र आएगी कि भाव गिरते हैं, थोड़ी देर टिकते हैं और फिर उठ जाते है [drop-base-rally] या उठते हैं, थोड़ा टिकते हैं और फिर धड़ाम [rally-base-drop] हो जाते हैं। भाव गिरकर जिस बिंदु से बढ़ते हैं, वहां पर उसकी मांग सप्लाई से बड़ी होती है। दूसरी तरफ भाव जहां तक जाने के बाद गिरते हैं, उस बिंदु पर सप्लाई मांग से कहीं ज्यादा हो जाती है। कभी-कभी बुरी खबर आने पर एमसीएक्स जैसा हाल हो जाता है जहां सप्लाई ही सप्लाई होती है और मांग गायब रहती है। लेकिन वहां भी कुछ ‘लंबी सोच’ वाले हेज-फंड टाइप खरीदार मिल ही जाते हैं।

लेकिन यह तो चार्ट पर एक तस्वीर हुई जिसे कोई भी देखकर समझ सकता है कि यहां मांग आई और यहां सप्लाई बढ़ी। फिर, चार्ट अब तक के भावों पर बनता है। असली सवाल यह है कि कल मांग और सप्लाई का क्या समीकरण रहेगा, उनके बीच का संतुलन कैसा रहेगा, इसका पता आज कैसे लगाया जाए? जो गुजर चुका है, उसका विश्लेषण तो कोई भी कर सकता है। कल क्या हो सकता है, उसे पूरी प्रायिकता के साथ ढूंढ निकालना बड़ी चुनौती है। ध्यान दें कि यहां मैंने प्रायिकता या Probability शब्द का इस्तेमाल किया है क्योंकि शेयर बाज़ार या किसी भी बाज़ार की भावी दिशा को लेकर कभी भी निश्चितता, certainty नहीं होती। जो लोग Sure Shot या पक्के रिटर्न की बात करते हैं, वे शत-प्रतिशत आपको उल्लू बनाकर अपनी जेब भरने में लगे हैं। इसलिए शेयर बाज़ार में ‘पक्के रिटर्न’ या ‘100 फीसदी गारंटी’ वालों से हमेशा बचकर रहें।

मांग और सप्लाई के भावी समीकरण व संतुलन की सही शिनाख्त बड़ा महीन काम है। इसका पता चलता है चार्ट और उन पर बनी कैंडलस्टिक के पैटर्न से। लेकिन भावों के ट्रेंड से इसे मिलाना और कभी नीचे (डिमांड ज़ोन) तो कभी ऊपर (सप्लाई ज़ोन) निश्चित पैटर्न खोज पाना वाकई बड़े धैर्य और अभ्यास का काम है। फिर इसके लिए कोई कायदे का गुरु भी चाहिए होता है क्योंकि केवल पढ़ने से ऐसी कला नहीं आती।

खैर, मोटे तौर पर जान लीजिए कि यहां मांग या डिमांड ज़ोन का मतलब यह है कि भावों के इस दायरे में संस्थाओं (एफआईआई, डीआईआई, बैंकों) की खरीद आने की प्रबल संभावना है। वहीं सप्लाई ज़ोन का मतलब है कि इस दायरे में संस्थाओं की तरफ से तेज़ बिकवाली आ सकती है। भावों का हर मोड़ डिमांड और सप्लाई ज़ोन को नहीं दिखाता। डिमांड और सप्लाई ज़ोन की धारणा support व resistance या accumulation व distribution की धारणा से एकदम अलग है। कैसे? जानेंगे कभी बाद में।

अगला सवाल। मान लीजिए कि हमें पता चल गया कि भाव यहां से मुड़ने जा रहे हैं तो क्या हर मोड़ पर मुंह मारना ज़रूरी है? शेर कभी चूहों या खरगोशों का शिकार नहीं करता। इसी तरह हमें भी देखना पड़ता है कि कहां पर लाभ का दायरा बड़ा है। इसी से हमारा रिस्क-रिवॉर्ड अनुपात तय होता है। नियम बताता है कि कोई भी सप्लाई स्तर तभी काम का है, जब वहां से मांग के स्तर की दूरी कम से कम तीन गुना हो। रिस्क और रिवॉर्ड का अनुपात कम से कम 1 : 3 का होना चाहिए। मतलब, एंट्री भाव और स्टॉप लॉस का अंतर अगर चार रुपए का है तो भाव का ऊपरी स्तर या लाभ का दायरा 12 रुपए का होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं तो उस सौदे से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि शेर कभी चूहों या खरगोशों का शिकार…

हमने यहां 1 : 3 का स्तर बताया। यह न्यूनतम दायरा है। हो सकता है कि आपको यह नहीं सुहाता हो और आप केवल 1 : 4 के सौदों में ही हाथ लगाना चाहते हों। यह दायरा बंधा हुआ नहीं है और हर ट्रेडर की अपनी बुनावट व मानसिकता पर निर्भर करता है। ट्रेडर को यह भी देखना पड़ता है कि भावों के बढ़ने की गति क्या रहेगी? यानी, स्टॉक कितने दिन में भावों का अपेक्षित स्तर हासिल कर सकता है? इसी के हिसाब से उसे सौदे की अवधि तय करनी होती है। उसे तय करना होता है कि यह स्विंग ट्रेड है, मोमेंटम ट्रेड या पोजिशनल ट्रेड। इतना न्यूनतम अनुशासन और प्लान ट्रेडिंग में सफलता के लिए नितांत जरूरी है। आप अध्ययन, अनुशासन, अभ्यास व अनुभव से कामयाबी की दिशा में बढ़े, यही कामना है। आमीन! तथास्तु!!

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