ग्राहक भी होते और शेयरधारक भी!

सोचिए, कभी ऐसा हो जाए कि आपके घर में और आसपास जो भी अच्छी चीजें हैं, जिनसे आपका रोज-ब-रोज का वास्ता पड़ता है, जिनकी गुणवत्ता से आप भलीभांति वाकिफ हैं, उन्हें बनानी वाली कंपनियों में आप शेयरधारक होते तो कैसा महूसस करते? कंपनी के बढ़ने का मतलब उसके धंधे व मुनाफे का बढ़ना होता है और मुनाफा तभी बढ़ता है जब ग्राहक या उपभोक्ता उसके उत्पाद व सेवाओं को पसंद करते हैं, उनका उपभोग करते हैं। आपकी पर्स जितनी ढीली, कंपनी उतनी फायदे में।

मान लीजिए। आपने सनफीस्ट बिस्किट खाया और आपको पता है कि आप इसे बनानेवाली कंपनी आईटीसी में शेयरधारक है। अगर कंपनी कल को सनफीस्ट का दाम बढ़ाती है तो एक ग्राहक होने के नाते आपको हो सकता है थोड़ा-सा खटके। लेकिन एक शेयरधारक होने के नाते शायद आप खुश हो जाएं कि इससे कंपनी का मुनाफा बढ़ रहा है। वहीं मान लीजिए, बिग बाजार ने आपको कोई गच्चा दे दिया तो आप सोचेंगे कि पैंटालून रिटेल्स से निकल जाना ही बेहतर है। एचडीआईएल के प्रोजेक्ट में आपने घर खरीदा और वह घर अगर घटिया निकला तो मान लीजिए कि कंपनी भी घटिया निकलेगी।

असल में निवेश के लिए कंपनियों के चयन का सबसे आसान तरीका यही है कि आप अपने इर्दगिर्द की उन तमाम कंपनियों पर नजर डालिए जिनके उत्पाद या सेवाओं से आपका साबका पड़ता है। ब्रिटानिया, हिंदुस्तान यूनिलीवर, मारुति, गोदरेज, कॉलगेट, एसीसी, अम्बुजा सीमेंट, कजारिया सिरैमिक्स, रैनबैक्सी, सिप्ला, एसबीआई, एचडीएफसी बैंक आदि-इत्यादि। आप दिमाग चलाएंगे तो ऐसे तमाम नाम खु-ब-खुद छपते चले जाएंगे। हो सकता है कि इनमें से कई कंपनियां लिस्टेड ही न हों तो बाकी कंपनियों पर गौर कीजिए। मोटा-सा सूत्र है कि अगर आप कंपनी के उत्पाद/सेवा से खुश हैं तो उसके शेयरों में निवेश भी आपके लिए लाभप्रद सिद्ध होगा।

ये हुई आज की थोक बात। बाकी पिछले पांच दिनों की चंद फुटकर-फुटकर बातें…

  • कल क्या होगा, इसे ठीक-ठीक न आप बता सकते हैं, न मैं और न ही कोई और। हम कल के बारे में इतना ही जानते हैं जितना आज तक की योजनाएं हमें बताती हैं। अगर योजनाएं दुरुस्त हैं, उनमें दम है तो कल सुनहरा हो सकता है। नहीं तो कल आज से भी बदतर हो सकता है। कंपनियों पर भी यह बात लागू होती है। इसलिए मेरा कहना है कि कभी भी भूलकर भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषियों के चक्कर में न पड़ें क्योंकि वे आपके दिमाग में छाई अनिश्चितता को भुनाकर ही अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं। इनसे भली तो बीमा कंपनियां हैं जो अनिश्चितता से निपटने का धंधा करती हैं, लेकिन वे एक पर आई आफत की भरपाई औरों पर आफत न आने के फायदे से कर देती हैं।
  • अनजाने में चूक हो जाए तो समझ में आता है। लेकिन सब कुछ जानते-बूझते हुए भी गलती हो जाए तो वह अनायास नहीं होती, उसके पीछे कोई न कोई स्वार्थ होता है। जानते हैं कि हमारे शेयर बाजार में कंपनियों की मजबूती जानने के बाद भी उनके शेयर क्यों पिटते रहते हैं? इसलिए यहां निवेशक नहीं, ट्रेडरों की बहुतायत है। ट्रेडरों की बहुतायत होने से होता यह है कि उन्हें कंपनी के अच्छी-बुरी होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें तो दही को मथकर मक्खन निकालना होता है। कुछ न कुछ शेयर चर्चा में बने रहें तो उनका काम चलता रहता है। बाजार में जितनी वोलैटिलिटी या उतार-चढ़ाव रहता है, उनके लिए मामला उतना ही उत्तम रहता है।
  • मानसून अच्छा है। समय पर है। इसलिए खेती-किसानी की हालत बेहतर रहेगी। बहुत साफ-सी बात है कि इसी के अनुरूप खाद व उर्वरक की मांग भी बढ़ेगी। इससे उर्वरक कंपनियों का धंधा चमकेगा। धंधा चमकेगा तो उनके शेयर भी चमकेंगे।

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