अमेरिकी अर्थव्यवस्था साल 2013 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) में उम्मीद से ज्यादा रफ्तार से बढ़ी है। खुद अमेरिकी सरकार का अनुमान जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 1.7 फीसदी वृद्धि का था, जबकि अर्थशास्त्री 2.2 फीसदी का अनुमान लगा रहे थे। लेकिन गुरुवार को अमेरिकी वाणिज्य विभाग की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका का जीडीपी अप्रैल-जून 2013 की तिमाही में 2.5 फीसदी बढ़ा है। यह विकास दर साल की पहली तिमाही से लगभग दोगुनी है।
इस बढ़त से यह आशंका प्रबल हो गई है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व बाज़ार से हर महीने 85 अरब डॉलर के बांड खरीद कर डॉलर डालने का सिलसिला धीमा कर सकता है। इससे सिस्टम में सस्ते धन का प्रवाह भी धीमा पड़ जाएगा। हालांकि अमेरिका में बेरोजगारी की दर अब 7.4 फीसदी बनी हुई है, जबकि फेड चेयरमैन बेन बरनान्के ने वादा कर रखा है कि जब तक उनके यहां बेरोज़गारी की दर 6.5 फीसदी से नीचे नहीं आ जाती है, तब बांड खरीद जारी रहेगी। जो भी हो, अभी तो हालत यह है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफआईआई) भारत जैसे उभरते देशों से अपना निवेश निकालने की रफ्तार बढ़ा सकते हैं।
भारतीय पूंजी बाज़ार नियामक, सेबी के आंकड़ों के मुताबिक एफआईआई ने इस साल देश में जनवरी से 28 अगस्त तक भारत के इक्विटी व ऋण बाज़ार में कुल लगभग 7 अरब डॉलर का निवेश किया है। लेकिन ऋण प्रपत्रों से उन्होंने 4.67 अरब डॉलर निकाले हैं, जबकि इक्विटी में उनका शुद्ध निवेश 11.57 अरब डॉलर का रहा है। केवल अगस्त की बात करें तो इक्विटी बाज़ार से उन्होंने 91.42 करोड़ डॉलर और ऋण बाज़ार से 1.36 अरब डॉलर (कुल 2.27 अरब डॉलर) निकाले हैं। डर इसी बात का है कि भारत से एफआईआई अपना निवेश निकालने का सिलसिला आगे भी जारी रख सकते हैं।
उधर, अमेरिकी सरकार का यह भी कहना है कि लोगों की खरीदारी बढ़ रही है जिसका पता रिटेल स्टोरों की बिक्री से चलता है। बहुत से अर्थशास्त्रियों का मानना है कि साल की बाकी छमाही में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर और भी बढ़ सकती है।