चुनावी लोकतंत्र की सारी राजनीति परसेप्शन या माहौल बनाने पर चलती है। रोज़ी-रोटी चलाने के बोझ से दबे करोड़ों मतदाताओं के पास फुरसत नहीं कि राजनीतिक पार्टियों की कथनी और करनी के मर्म को समझकर वोट डालें। उनकी याददाश्त छोटी होती है और वे माहौल के हिसाब से बहते व वोट देते हैं। शेयर बाज़ार का भी यही हाल है। राजनीति व शेयर बाज़ार, दोनों ही जगहों पर छोटे समय में सत्य नहीं चलता। भाव या सत्ता माहौल बनाकर ही हासिल होती है। यह अलग बात है कि लम्बे समय में घिसते-घिसते झूठ की कलई उतर जाती है। तब सत्य ही जीतता है और ‘सत्यम’ जैसी कंपनियों का विनाश हो जाता है। इसलिए लम्बे समय के निवेश में हमेशा सत्य की वरीयता देनी चाहिए, जबकि छोटे समय की ट्रेडिंग में माहौल का भरपूर फायदा उठाना चाहिए। कुशल राजनेता और ट्रेडर इस कला में माहिर होते हैं। यह कला शेयर बाज़ार के सफल ट्रेडरों के खून में रची-बसी होती है। वहीं, राजनीति में भी जिस तरह कांग्रेस से लेकर अन्य विपक्षी नेता भाजपा में जा रहे हैं, उससे लगता है कि जनधन की लूट में लगे नेता भी इस कला में पारंगत हो गए हैं। याद रखें कि राजनीति और शेयर बाज़ार में कोई अंतिम सत्य नहीं। यहां तो जो हो रहा है, वही सत्य है। जो इसको पकड़ लेगा, वह हमेशा चांदी काटेगा। बाकी के लिए चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात। अब बुधवार की बुद्धि…
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