सच भरे आह, अर्थशास्त्री करते वाह-वाह

कृषि पस्त, सेवाएं सुस्त। विकास के आंकड़े बेमानी है। राष्ट्रीय राजमार्गों से नीचे उतरकर गांवों की तरफ बढ़ते ही चमामक सड़कें खड्ढों से भर जाती हैं। डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर की हकीकत असली लाभार्थियों से बात करने पर साफ हो जाती है कि प्रधान की कृपा से ही उनके बैंक खाते में धन आता है, जहां से निकालते ही प्रधान से लेकर ग्राम सचिव और ठेकेदार तक अपना हिस्सा खाने के लिए घेर लेते हैं। फिर भी सरकारी आंकड़े चमाचम है। सत्ताधारी दल के नेता कहते हैं कि अगर आर्थिक विकास का लाभ जनता को नहीं मिल रहा होता तो लोग चुनावों में उन्हें जिताते क्यों? वे भी जानते हैं कि 81.35 करोड़ लोगों को महीने का पांच किलो राशन मुफ्त और हिंदू-सनातन का उन्माद उन्हें वोट दिला रहा है। मगर बताने को वे इसे आर्थिक विकास का प्रताप बताते हैं। अर्थशास्त्री भी इधर-उधर के आंकड़े जोड़कर सरकार की जय-जयकार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के सभी नौ के नौ सदस्य कभी अर्थशास्त्री रहे होंगे, लेकिन अभी तो पूरी तरह सरकार के चम्मच बन चुके हैं। पहले भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष जैसे चंद अर्थशास्त्री सच को सामने लाने का दुस्साहस करते थे। लेकिन अब तो वे भी ज़ोर-ज़ोर से दुम हिलाने लगे हैं। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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