ऑप्शन राइटर बाज़ार के बेहद मंजे हुए खिलाड़ी होते हैं। वे ऐसे ही स्ट्राइक मूल्य के ऑप्शन बेचने की जुगत में लगे रहते हैं जिनमें उनको मिला हुआ प्रीमियम हाथ से निकल जाने की गुंजाइश ही न रहे। वे बहुत ज्यादा लालच नहीं करते, लेकिन ज्यादा से ज्यादा ऑप्शन बेचकर अपनी प्रीमियम आय बढ़ाने में लगे रहते हैं। दूसरी तरफ ऑप्शन खरीदनेवाले हैं, जिनमें से अधिकांश रिटेल ट्रेडर हैं और ज्यादा लालच में फंसकर अपना प्रीमियम गंवाते रहते हैं। सोचते हैं कि क्या हुआ, प्रीमियम ही तो गया है। लेकिन इस चक्कर में धीरे-धीरे अपनी सारी जमापूंजी गंवा बैठते हैं। दिलचस्प बात है कि अपने यहां बाज़ार में ऑप्शन राइटर को ‘खानेवाला’ और ऑप्शन खरीदार को ‘लगानेवाला’ बोला जाता है।
आइए, देखते हैं कि यह प्रीमियम कैसे बढ़ता या घटता है। मोटी बात है सौदे की एक्सपायरी में बचे दिन। जितने ज्यादा दिन बचे होंगे, उसी अनुपात में ऑप्शन का प्रीमियम ज्यादा होगा। हम पहले पढ़ चुके हैं कि इसे ही ऑप्शन का समय मूल्य कहते हैं। जाहिर कि समय जितना ज्यादा होगा, संबंधित आस्ति का मूल्य उतना ही ज्यादा बदल सकता है तो लाभ या हानि का अवसर बढ़ सकते हैं। चूंकि ऑप्शन राइटर या विक्रेता ज्यादा दिनों तक रिस्क ले रहा है तो वह ज्यादा प्रीमियम लेगा।
दूसरा कारक जो ऑप्शन के भाव को प्रभावित करता है, वो है स्ट्राइक मूल्य और संबंधित आस्ति के बाजार मूल्य का अंतर। यहां हम निफ्टी ऑप्शंस की बात कर रहे हैं तो संबंधित आस्ति की जगह निफ्टी ही लिखेगे। मान लीजिए कि निफ्टी 10,000 पर बंद हुआ है और हम 11,000 स्ट्राइक मूल्य का कॉल ऑप्शन खरीद रहे हैं। वो अभी 1000 अंक दूर है जहां तक निफ्टी के पहुंचने की प्रायिकता कम है तो उसका प्रीमियम अपेक्षाकृत कम होगा। वहीं, अगर हम 10,200 स्ट्राइक मूल्य का कॉल ऑप्शन खरीदें तो अंतर कम होने की वजह से इसका प्रीमियम ज्यादा होगा। आज, 4 जून की एक्सपायरी वाले 11,000 स्ट्राइक मूल्य के निफ्टी कॉल ऑप्शन का भाव कल 0.40 रुपए था, जबकि 10,200 स्ट्राइक मूल्य वाले निफ्टी कॉल ऑप्शन का भाव 18.10 रुपए था। लेकिन 9700 स्ट्राइक प्राइस वाले कॉल ऑप्शन का भाव 385 रुपए था!!!
ऑप्शन के प्रीमियम में पूंजी की लागत या रिस्क-फ्री ब्याज की दर भी बहुत मायने रखती है। यह दर अगर कम होती है तो ऑप्शन राइटर को नुकसान होता है और चूंकि उसका नुकसान ऑप्शन खरीदनेवाले का फायदा होता है तो ब्याज दर का घटना रिटेल ट्रेडरों के लिए अच्छा होता है। रिजर्व बैंक जब भी ब्याज दर घटाता है तो उसके असर से ऑप्शन का प्रीमियम घट जाता है। हालांकि ऑप्शन राइटर बराबर ज्यादा प्रीमियम लेने की जुगत में लगा रहता है। लेकिन बाज़ार का दबाव उसे एक सीमा से ज्यादा प्रीमियम लेने की इजाजत नहीं देता। वह बाज़ार द्वारा निर्धारित स्ट्राइक मूल्यों की रेंज में से चुनाव कर सकते हैं और वे भाव या प्रीमियम भी वही ले सकते हैं जो बाजार में बोला जा रहा है।
ऑप्शन के प्रीमियम या भाव को प्रभावित करनेवाला चौथा प्रमुख कारक है वोलैटिलिटी। इसमें दैनिक वोलैटिलिटी, सालाना वोलैटिलिटी और इम्प्लायड वोलैटिलिटी के पेंच हम पहले ही समझने की कोशिश कर चुके हैं। बाज़ार में जितनी ज्यादा चंचलता, निफ्टी में जितनी ज्यादा ऊंच-नीच, उसके ऑप्शन का भाव उतना ही ज्यादा होगा। निफ्टी ज्यादा गिरे, तब भी ऑप्शन का भाव ज्यादा होगा और निफ्टी ज्यादा उठे तब भी उसके ऑप्शन का भाव ज्यादा ही होगा। ऑप्शन खरीदनेवाले को ज्यादा भाव देना होगा तो उसके बेचनेवाले या ऑप्शन राइटर को ज्यादा प्रीमियम मिलना लाजिमी है क्योंकि ज्यादा वोलैटिलिटी की वजह से वह ज्यादा रिस्क ले रहा है।
वैसे, शेयर बाज़ार में रिस्क तो वो ही नहीं, बल्कि निवेशक, हर तरह के ट्रेडर और सटोरिये भी ले रहे हैं। रिस्क लेने लायक है या नहीं, इसे भी मापने का उपाय आ चुका है। इसे जेनसन्स उपाय या जेनसन्स अल्फा भी कहते हैं। इसका एक फॉर्मूला है जो बताता है कि जितना रिस्क आप ले रहे हैं, उसके अनुपात में रिटर्न मिल भी रहा है या नहीं। ऑप्शन राइटर अक्सर यह उपाय अपनाते हैं। चूंकि वे बड़े चालाक व घाघ होते है, इसलिए रिटर्न कम या न मिलने की आशंका ज्यादा होने पर वे सौदा ही नहीं करते। चलते-चलते आपको जेनसन्स अल्फा का फॉर्मूला भी बता देते हैं। यह है:
Jensen’s Alpha = R(i) – [R(f) + B x {R(m) – R(f)}]
इसमें R(i) = निवेश पोर्टफोलियो पर मिला वास्तविक रिटर्न, R(m) = बाज़ार के संबंधित सूचकांक पर मिला रिटर्न, R(f) = दिए गए समय में रिस्क-फ्री रिटर्न की दर, B = बाज़ार के सूचकांक के सापेक्ष निवेश पोर्टफोलियो का बीटा। यह फॉर्मूला कैपिटल ऐसेट प्राइसिंग मॉडल (सीएपीएम) पर आधारित है, जिसे हम कभी व्यावहारिक स्तर पर समझने की कोशिश करेंगे। आज के लिए बस इतना।
कल शुक्रवार को देखेंगे कि हमने पिछले शुक्रवार के भावों पर ऑप्शन की विभिन्न रणनीतियों में जो सांकेतिक निवेश किया था, उसका क्या हश्र हुआ? उन्होंने कितना घाटा या फायदा कराया और उनमें चूक हुई है तो कैसे उन्हें सुधारा जा सकता था?