मूल्य का पेड़ अभी, फल मिलता बाद में

शेयर बाज़ार के निवेशकों का साबका बार-बार ‘वैल्यू’ से पड़ता है। वॉरेन बफेट का मशहूर वाक्य है कि ‘प्राइस’ वो है जो आप देते हो और ‘वैल्यू’ वो है जो आप पाते हो। अंग्रेज़ी में पारंगत लोग भले ही इसका अर्थ और मर्म समझ लें। लेकिन हिंदी या अन्य भारतीय भाषाएं बोलने-समझने वाले लोगों को इसमें काफी दिक्कत होती है। प्राइस का अनुवाद कीमत, दाम या भाव हो सकता है और वैल्यू को हम मूल्य कह सकते हैं। लेकिन मूल्य का प्रचलित अर्थ नैतिक मूल्य भी होता है तो निवेश के संदर्भ में मूल्य की अवधारणा साफ नहीं हो पाती। हमें मूल्य-युक्त कंपनियों के ही शेयर खरीदने चाहिए। इसका मतलब यह है कि मूल्य वो है जो हम अभी इकट्ठा कर सकते हैं और उसका इस्तेमाल बाद में कर सकते हैं। अगर हमने किसी कंपनी के शेयर खरीदे और वे आगे नहीं बढ़े या गिरते चले गए तो कंपनी ने या तो मूल्य-सृजन नहीं किया या पहले हासिल किया गया मूल्य नष्ट कर दिया। निवेश करते समय हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी ही कंपनी चुनें जिसके धंधे के बराबर बढ़ते जाने की पूरी संभावना हो और उसके धंधे में घुसना इतना आसान न हो कि कोई दूसरा उसका बाज़ार फटाफट छीनकर चला जाए। आज तथास्तु में ऐसी ही एक कंपनी…

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