अर्थ और वित्त की दुनिया बड़ी निर्मम है। यहां भावना और भावुकता से ऊपर उठकर सीधा-सीधा हिसाब चलता है। जापान में त्राहि-त्राहि मची है। लेकिन चूंकि जापान दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा ग्राहक है और वहां तमाम रिफानरियां आग की चपेट में आ गई हैं तो वे बंद रहेंगी जिससे तेल की मांग तात्कालिक रूप से घट जाएगी। सो, कच्चे तेल के दाम खटाक से 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गए। लेकिन इस प्राकृतिक आपदा को किनारे भी रख दें, तब भी कच्चे तेल के दाम नीचे आने हैं। इसलिए शेयर बाजार के सिर पर चढ़ा यह भूत उतर जाना चाहिए। खाद्य मुद्रास्फीति इकाई अंक में आ गई है। जनवरी में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक पिछले साल के ऊंचे आधार के कारण थोड़ा कम 3.7 फीसदी रहा है लेकिन यह दिसंबर से ज्यादा है और तमाम विश्लेषकों के अनुमान से बेहतर है।
मैं बार-बार यही कहे जा रहा हूं कि बाजार सारी बुरी खबरों के असर को जज्ब कर चुका है। जापान की सुनामी का तात्कालिक असर जरूर होगा। लेकिन ज्यादा नहीं क्योंकि उसके चलते भारत में निवेश करने की योजना बना चुके लोग अपना फैसला नहीं बदलने वाले। हम तेजड़ियों की नजर में चढ़े दस स्टॉक्स की नई सूची आपके सामने रख चुके हैं। जापानी कंपनी द्वारा रिलायंस कैपिटल में हिस्सेदारी खरीदने की पेशकश इस बात का सबूत है कि भारतीय शेयर बाजार का मूल्यांकन विदेशी कंपनियों को काफी आकर्षक लग रहा है।
मेरा मानना है कि मार्च का अंत आते-आते हमारी तमाम समस्याओं और बाजार पर छाई नकारात्मकता का अंत हो जाएगा। अप्रैल 2011 के पहले हफ्ते में ताजा फंडिंग के जारी होने से पहले ही बाजार में मूल्यवान स्टॉक्स की खरीद शुरू हो जाएगी। बाजार में तेजी की एक नई लहर उठेगी। यह अलग बात है कि एफआईआई की तरफ से डाउनग्रेड और जीडीपी के कम विकास की बातें पेश की जा रही है। वे यह भी कहे जा रहे हैं कि भारतीय बाजार का मूल्यांकन ज्यादा है।
वे ऐसा हल्ला इसलिए मचा पा रहे हैं क्योंकि उनके दुष्प्रचार पर अंकुश लगाने का कोई कानूनी फ्रेमवर्क भारत में नहीं है। वे एक तरफ निवेशकों को गुमराह कर रहे हैं, दूसरी तरफ खुद खरीद किए जा रहे हैं। इसलिए अगर आपको अपनी पूंजी को बढ़ाना है तो आपको उनके बहकावे में आए बगैर खुद अपने विवेक से फैसला लेना होगा। और, मुझे यकीन है कि आपके अंदर सोचने और फैसला लेने की पूरी क्षमता है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्दे आएंगे और चले जाएंगे। लेकिन भारत आगे बढ़ता रहेगा। इन भारी-भरकम विदेशी निवेशकों के पास भारत में रहने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। यहां वे मजे से साल भर में कम से कम 10-15 फीसदी कमा सकते हैं जबकि अमेरिका में उनके लिए 5 फीसदी कमाना भी शानदार उपलब्धि होती है। अगर उन्हें अमेरिकी अर्थव्यवस्था के उठने और वहां से कमाई करने का इतना ही भरोसा था तो लेहमान संकट के बाद वे दोबारा क्यों भारत में आए?
दिक्कत यही है कि हमारी राष्ट्रीय नीतियां घरेलू सामर्थ्य व पूंजी के बजाय अब भी विदेशी धन की तरफ झुकी हुई हैं। लेकिन हम मानते हैं कि भारत जबरदस्त उभार के लिए तैयार है और एक दिन जरूर ऐसा आएगा जब हम अपने लोगों को ज्यादा वरीयता देने लग जाएंगे। भारतीय बाजार को नई ऊंचाई तक पहुंचना है और ऐसा होना अपरिहार्य है। इसलिए शेयरों को बेचना इस समय वाकई एक बुरा ख्याल है। जब भी हालात बेहतर होंगे, आपको मौजूदा भावों से कम से कम 40 से 50 फीसदी ज्यादा भाव या प्रीमियम मिलेगा और आप अपने स्टॉक्स हॉट केक की तरह बेच सकेंगे।