तीन तिगाड़ा, विकास का किया कबाड़ा!

जीडीपी की विकास दर के धीमा पड़ने की तीन खास वजहें हैं और तीनों की ज़िम्मेदार केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक की नीतियां हैं। पहली है वास्तविक ब्याज दरों का ज्यादा होना। रिजर्व बैंक ने 21 महीनों से रेपो दर (वो ब्याज़ दर जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों को दो-तीन दिन का ऋण देता है) को 6.5% पर ही बांधे रखा है। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर में रिटेल मुद्रास्फीति की दर 6.21% और खाद्य वस्तुओं व ईंधन को हटाकर बनी कोर मुद्रास्फीति की दर 4% रही है। वैश्विक स्तर पर तुलना करें और इस समय गैर-विकसित देशों में कोर मुद्रास्फीति को आधार बनाएं तो वास्तविक रेपो दर (रेपो दर – मुद्रास्फीति की दर) 1.2% है, जबकि भारत में यह दर 2.5% है। वहीं, रिटेल मुद्रास्फीति को आधार बनाएं तो गैर-विकसित देशों में वास्तविक रेपो दर 0.19% है, जबकि भारत में यह दर 0.29% है। हमारे यहां जब 2004 से लेकर 2011 तक अर्थव्यवस्था बम-बम कर रही है, तब वास्तविक रेपो दर (-)1% हुआ करती थी। चूंकि इस समय धन की असल लागत ज्यादा चल रही है, इसलिए उद्योग-धंधे ऋण लेकर निवेश नहीं कर रहे। बैंक क्रेडिट इस बार 11.1% बढ़े हैं, जबकि साल भर पहले 20.6% बढ़े थे। जीडीपी की विकास दर घटने की यह एक खास वजह है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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