वे बाजार को उठाते हैं लीवर लगाकर

बाजार 5400 से गिरकर 4750 तक पहुंच गया। फिर अचानक उठकर 5050 के ऊपर। महीने भर में गोते और छलांग का यह खेल बखूबी चला। क्यों, कैसे? समझ में नहीं आता। एफआईआई ने तो पूरे नवंबर माह में 80 करोड़ डॉलर ही निकाले। इतनी रकम तो एक दिन में निकल जाया करती है। फिर ऐसी डुबकी क्यों? सवाल यह भी है कि क्या निफ्टी के पलटकर 5050 के ऊपर पहुंचने को नई तेजी का आगाज़ मान लिया जाए?

असल में यह सारा गिरना और उठना बाजार के उस्तादों का खेल है, जिनमें बड़े ऑपरेटर, एफआईआई और कुछ मजबूत खिलाड़ी शामिल हैं। हमने बार-बार कहा है कि डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट न होने से भारतीय बाजार में मूल्य खोजने की प्रणाली बड़ी विकलांग बन चुकी है। यहां बाजार शक्तियां उठाने-गिराने का खेल इसीलिए करती हैं ताकि सेटलमेंट के दिन भावों के 20-25 फीसदी अंतर की नकद वसूली कर सकें क्योंकि निवेशक या ट्रेडर कह नहीं सकता है कि हमें कैश नहीं देना, हमें तो डिलीवरी चाहिए। यह स्थिति एफआईआई के भी माफिक पड़ती है क्योंकि उनको लगता है कि वे इधर या उधर किधर भी भारी धन लगाकर वोलैटिलिटी या तेज उतार-चढ़ाव को भुना सकते हैं।

इस मसले पर पहली बार मैंने एक कायदे का लेख हिंदू बिजनेसलाइन में पढ़ा है। डेरिवेटिव्स को इस लेख में अंधी गली बताया गया है। बताया गया है कि कैसे बैंकर आपके धन से डेरिवेटिव्स में खेलते और मौज करते हैं। लेख के मुताबिक, “पारंपरिक रूप से एकदम भरोसेमंद माना जानेवाला बैंकर आपका धन लेता है और बिना आपकी इजाजत के क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के साथ मिलकर जुएबाजी करता है। दुखद पहलू यह है कि बैंक व क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के अधिकारी कमाए गए मुनाफे पर बोनस बटोरते हैं, जबकि आपका धन डुबाने पर वे कोई पेनाल्टी नहीं देते। उनकी नौकरी भले ही चली जाए। लेकिन बोनस के दम पर बनाई गई दौलत उनकी अपनी होती है। सिस्टम के इस असंतुलन ने ही उन्हें आपके धन पर जमकर दांव लगाने का मौका दे रखा है।”

मैं भी आपके सामने यही बात बार-बार रख चुका हूं। ऐसा खेल करेंसी से लेकर कमोडिटी और शेयर बाजार तक में धड़ल्ले से हो रहा है। फिजिकल सेटलमेंट के बिना यह कोई ट्रेडिंग नहीं, बल्कि विशुद्ध जुएबाज़ी है। साल 2008 में निफ्टी 6300 से गिरकर 2700 पर आ गया। फिर भी एक डिफॉल्ट तक नहीं हुआ। ऐसा इसलिए क्योंकि एनएसई नियमों को कायदे से लागू कर रहा था। हर दिन मार्जिन पूरा लिया जाता रहा। लेकिन ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि तब अपेक्षाकृत कम लोग डेरिवेटिव सौदों में खेल रहे थे। फिर भी उस दौरान इतनी दौलत डूबी कि तमाम निवेशकों व ट्रेडरों ने खुदकुशी तक कर ली। इसे रोका जा सकता था और निफ्टी 2700 तक जाता ही नहीं, अगर डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल डिलीवरी की सुविधा मौजूद रहती। हमारे यहां ऐसे-ऐसे अमीर निवेशक (एचएनआई) हैं, जिनके पास कुल मिलाकर सारे एफआईआई से ज्यादा कैश है। फिजिकल डिलीवरी की व्यवस्था हो जाए तो ये एचएनआई कैश बाजार में जमकर शेयर खरीदने लगेंगे और डेरिवेटिव सौदों से इस खरीद का तार बराबर जुड़ा रहेगा।

अभी बहुत से शेयर अपने उद्यम मूल्य (ईवी) से 50 से 70 फीसदी डिस्काउंट पर चल रहे हैं। मतलब यह कि यह सही मूल्य पाने का दौर नहीं है। साथ ही बहुत से शेयर ऐसे हैं जो अपनी बुक वैल्यू से 10 से 20 गुना भाव पर ट्रेड हो रहे हैं। इसकी एकमात्र वजह यह है कि इसमें कुछ एफआईआई या एचएनआई घुसे हुए हैं वरना इन स्टॉक्स में कोई दम नहीं है और इन्हें कुछ ज्यादा ही फुला दिया गया है।

हो सकता है कि सर्किट फिल्टर की प्रणाली भी बाजार में गदर मचाए हुए हो। डेरिवेटिव या एफ एंड ओ (फ्यूचर्स व ऑप्शंस) सेगमेंट के शेयरों को ऐसी बंदिश से मुक्त रखा गया है। लेकिन इस सेगमेंट के बाहर ए व बी ग्रुप के जो शेयर हैं, उनको अगर सट्टेबाजी पर आधारित हमले के दिन सर्किट सीमा से बरी कर दिया जाता तो शायद गिरावट बीच में ही रोक ली जाती और डेरिवेटिव स्टॉक्स में जबरन मार्जिन के दबाव में डाले गए निवेशकों को निकलने का मौका मिल जाता। होता यह है कि ऐसे हमले के दौरान ए व बी ग्रुप के सामान्य शेयर 7 से 8 दिन तक लोअर सर्किट तक गिरते रहते हैं और इस तरह उनमें भी डेरिवेटिव स्टॉक्स जैसा ही नुकसान हो जाता है। अगर डेरिवेटिव स्टॉक्स में पहले दिन की चपत ए व बी ग्रुप के दूसरे शेयरों में सातवें दिन तक आई गिरावट के बराबर है तो ऐसे रूढ़ सिस्टम को बनाए रखने का फायदा ही क्या, जिसे संकट के वक्त भी न बदला जा सके?

थोडे में कहूं तो कागज पर यह सिद्धांत भला लगता है, लेकिन व्यवहार में निवेशकों व ट्रेडरों के लिए घातक बन गया है। आज निवेशक इक्विटी से दूर भाग रहे हैं। किसी भी ब्रोकर से पूछ लीजिए। वह इस बात की तस्दीक करेगा। इसकी वजह आईपीओ से लेकर सेंकेडरी बाजार में मची धांधागर्दी है। करीब 1600 के आसपास कंपनियों में ट्रेडिंग सस्पेंड है। इनमें निवेशकों के लगभग 60,000 करोड़ रुपए फंसे हैं। ऐसे में आम निवेशक बाजार से डरेगा नहीं तो क्या करेगा? ऑपरेटर सर्कुलर ट्रेडिंग करते और करवाते रहते हैं। भावों के साथ मनमाफिक छेड़छाड़, लगता है जैसे सिस्टम का अभिन्न हिस्सा बन गई है। अगर एक ऑपरेटर को दंडित किया जाता है तो रावण के दस सिरों की तरह कोई दूसरा ऑपरेटर उग आता है। ऐसे में बाजार का चाल-चरित्र बहुत सारे मामलों में संदिग्ध हो चुका है।

अभी की बात करें तो अक्टूबर में निफ्टी 4700 से 5400 तक गया और नवंबर में फिर 5400 से गिरकर 4750 पर आ गया। अब दिसंबर के पहले ही हफ्ते में यह 4750 से 5050 तक पहुंच गया है। यह गिरावट और उछाल सट्टेबाजी का नहीं, जुएबाजी का नतीजा है। यह स्टॉक्स में 25 फीसदी और निफ्टी में 15-20 फीसदी रिटर्न खींचने के लिए बाजार के उस्तादों द्वारा किए गए करतब का कमाल है। हमने हाल ही में 2800 ट्रेडरों का एक सर्वे किया है जिससे पता चलता है कि 99 फीसदी ट्रेडरों ने पिछले तीन सालों में घाटा उठाया है और उनकी माली हालत काफी बिगड़ चुकी है।

भारतीय बाजार का रुझान न तो फंडामेंटल और न ही विदेशी हवाएं तय करती हैं। इसे तय करते हैं मुठ्ठी भर उस्ताद, जिनमें ऑपरेटरों से एक कुछ एफआईआई व एचएनआई तक शामिल हैं। उन्हें खबर नहीं, बहाना चाहिए होता है। जरा-सी सुगबुगाहट हुई कि रिजर्व बैंक सीआरआर में कटौती कर सकता है तो उठा दिया बाजार को लीवर लगाकर। इस समय बाजार के ज्यादातर खिलाड़ी शॉर्ट हुए पड़े हैं और हो सकता है कि हर गिरावट पर और शॉर्ट सौदे करते जाएं। इसलिए उस्ताद लोग शायद उन्हें निचोड़ने के लिए सेटलमेंट के दिन तक बाजार को काफी उठा ले जाएं। फिजिकल सेटलमेंट है नहीं तो भावों का सारा अंतर वे कैश के रूप में वसूल सकते हैं। जब तक बड़े ट्रेडर अपने सौदों की दिशा नहीं पलटते और लांग पोजिशन नहीं बनाते, तब तक डर यही है कि निफ्टी को उठाने से पहले फिर से 4700 तक गिरा दिया जाएगा।

अंततः डेरिवेटिव सेगमेंट में बनी पोजिशन बाजार का रुख का फैसला करेगी और यह फैसला करेंगे बाजार के उस्ताद लोग ताकि उनके जेबें हमेशा नोटों से लबालब रहें। यह हालत निवेशकों के लिए किसी फिक्स्ड क्रिकेट मैच या विद्या बालन की डर्टी पिक्चर देखने से ज्यादा गंदी है। इसलिए निवेशकों व ट्रेडरों को हमारी सलाह है कि हकीकत को समझकर न तो अति-उत्साही बनें और न ही अति-निराशावादी। यह दौर धारा के खिलाफ नहीं, धारा के साथ बहकर नोट कमाने का है। हां, 16 दिसंबर को रिजर्व बैंक की घोषणा के आसापास बाजार में तेज भंवर या बवंडर उठने के आसार हैं।

3 Comments

  1. Hamein bhi ek Anna chahiye…

  2. मै आपके लेखन और इस साईट का फैन हु…. और गाहे बगाहे इस साईट का प्रचार भी करता रहा हु…. ये काफी आगे जाएगी, उम्मीद करता हु की आपका जो उद्देश है वह जरुर सफल होगा.

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