आज की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि मोदी सरकार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो अर्थव्यवस्था को भलीभांति समझता हो। सब कुछ नौकरशाहों और जी-हुजूरी करनेवालों के हवाले है। पीएमओ प्रधानमंत्री की सोच व कर्म का ही एक्सटेंशन है। जो भी मोदी की नहीं मानता, उसे जाना पड़ता है चाहे वो रिजर्व बैंक गवर्नर ऊर्जित पटेल हों या मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन। ऐसे में अर्थव्यवस्था ऑटो-पायलट मोड में है या कहें तो राम-भरोसे हो गई है। सार्थक आर्थिक सुधार पीछे छूट चुके हैं। इस समय सरकार को न तो वित्तीय अनुशासन की परवाह है और न ही घरेलू उद्योगों के समुचित विकास की। सारा फोकस मतदाता को लुभाने के उपायों और सरकार का टैक्स संग्रह बढाने पर है। अब तो अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएफएफ) तक सरकार के बढ़ते आंतरिक व बाहरी कर्ज पर चेतावनी दे चुका है। इसलिए शेयर बाज़ार की तेज़ी पर टूटकर उमड़े निवेशकों को किसी भी गफलत में नहीं रहना चाहिए। हमारे ज्यादातर निवेशक कोविड की महामारी के बाद बाज़ार में आए हैं और अभी तक केवल तेज़ी देखी है। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि जापान का जो निक्केई सूचकांक 1989 में अपने शिखर पर पहुंचा था, वह 34 साल बाद भी उस स्तर को नहीं छू सका है। अब मंगलवार की दृष्टि…
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