हर कोई अपने धन को अधिक से अधिकतम करना चाहता है। लेकिन कर कौन पाता है? किसान और ईमानदार नौकरीपेशा इंसान तो हर तरफ से दबा पड़ा है। अपने धन को अधिकतम कर पाते हैं एक तो नेता और नौकरशाह, जो हमारे द्वारा परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से दिए गए टैक्स की लूट और बंदरबांट में लगे हैं। वे अपनी हैसियत और पहुंच का फायदा उठाकर जनधन को जमकर लूटते हैं और देखते ही देखते करोड़पति से खरबपति बन जाते हैं।
इनके अलावा, व्यापारी और उद्योगपति जमकर कमाते हैं बाज़ार की बदौलत। लाखों-लाख फर्में और कंपनियां इस देश में सक्रिय हैं और हर दिन हज़ारों नई कंपनियां बन जाती हैं। इनमें से करीब पांच हज़ार कंपनियां हैं जो अपनी कमाई आमलोगों के साथ बांटती हैं। इन्होंने अपने मालिकाने को पब्लिक के बीच फैला रखा है, खुद को स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट करा रखा है, जहां से कोई भी इनके शेयर खरीदकर इनके लाभ में, इनकी बढ़त में भागीदार बन सकता है।
अगर आम आदमी, जिसकी बचत कभी पूरी नहीं पड़ती, जिसे महंगाई खा जाती है, वह अपने धन को हर संभव सीमा तक, संभाव्य स्तर तक बढ़ाना चाहता है, optimum करना चाहता है तो लंबे समय में उसके पास एक ही माध्यम है। और वो है, शेयर बाज़ार में लिस्टेड मजबूत संभावनामय कंपनियां। यहां हमें optimize करने और maximize करने के बीच के फर्क को समझना होगा। नहीं तो धन को अधिकतम या maximize करने के हमारे लालच को पकड़कर दूसरे हमारी बचत पर हाथ साफ करते रहेंगे। तमाम स्टॉक गुरु, प्लांटेशन कंपनियां, निवेश स्कीमें और स्पीकएशिया जैसी कंपनियां हमें लूटती रहेंगी।
धन को optimum स्तर तक केवल अच्छी कंपनी ही बढ़ा सकती है। आज की बाज़ार अर्थव्यवस्था में और कहीं से भी धन बढ़ नहीं सकता। बैंक से लेकर बीमा कंपनियां और म्यूचुअल फंड तक अपने और आपके धन को इन्हीं कंपनियों के माध्यम से बढ़ाते हैं। हमें गांठ बांध लेनी चाहिए कि हवा से नोट नहीं पैदा होते। कोई मुफ्त में किसी का कल्याण नहीं करता।
हम कोई नई बात नहीं कह रहे। बड़े-बड़े दिग्गज भी, वित्त मंत्री से लेकर सेबी के चेयरमैन और भारत के वॉरेन बफेट कहे जानेवाले राकेश झुनझुनवाला तक शेयर बाज़ार में निवेश के फायदे गिनाते हैं। लेकिन नहीं बताते कि पांच हज़ार से ज्यादा लिस्टेड कंपनियों में से किसमें निवेश करें। वे हमें जबरन म्यूचुअल फंडों की तरफ धकेलते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि अपने यहां म्यूचुअल फंड खुद तो कमाते हैं, पर निवेशकों का धन डुबो देते हैं। इस सच की तस्दीक आज हर ‘दूध का जला’ निवेशक कर सकता है।
दरअसल, म्यूचुअल फंडों की बुनावट ही ऐसी है कि वे अपने लाव-लश्कर को तो ही अच्छी तरह खिला-पिला सकते हैं, उनके सीईओ व अधिकारियों को लाखों की तनख्वाह महीने में मिलती रहेगी, लेकिन इनकी तमाम इक्विटी स्कीमों में निवेशक का धन बढ़ने के बजाय घटता ही जाएगा। फिलहाल इनके मनी मार्केट फंड बड़ी-बड़ी कंपनियों के धन को थोड़े समय के लिए पार्क करने के खाते बन गए हैं। वहीं इक्विटी स्कीमों में, चूंकि अनजान किस्म के रिटेल निवेशक भरे पड़े हैं, इसलिए बाज़ार के बढ़ने पर वे निवेशकों के दबाव में खरीदने लगते हैं, जबकि गिरने पर बेचते हैं। शेयर बाज़ार से कमाई की समझदारी इसका उल्टी कहती है कि गिरने पर खरीदो और बढ़ने पर बेचो। ऊपर से रिडेम्पशन (निवेशकों की तरफ से बाहर निकलने) के दबाव से बचने के लिए हर म्यूचुअल फंड को 10-20 फीसदी कैश हमेशा रखना पड़ता है।
कुल मिलाकर स्थिति यह बनती है कि जमाधन (एयूएम) या आस्तियों से मिली फीस से म्यूचुअल फंडों का धंधा तो जमकर चलता रहता है, उनके आला अधिकारी ऐश करते हैं, लेकिन उनके पास धन जमा करनेवालों को घाटा ही घाटा होता है। म्यूचुअल फंडों में किसी को निवेश करना ही है तो छोटी अवधि की मनी मार्केट स्कीमों में करना चाहिए क्योंकि वे बचत खाते के 4 फीसदी की तुलना में 8 फीसदी तक ब्याज देती हैं। इसके अलावा हम इंडेक्स फंडों में निवेश कर सकते हैं। निफ्टी और सेसेंक्स जैसे सूचकांकों पर आधारित तमाम फंड हैं, जो लंबे समय में बाज़ार के बराबर रिटर्न देते हैं। इनमें फंड प्रबंधन का शुल्क भी बहुत कम होता है।
अभी होता यह है कि सेंसेक्स और निफ्टी तो बढ़ जाते हैं। लेकिन रिटेल निवेशकों को तगड़ी चपत लग जाती है। इंडेक्स फंड में लगाने से आम निवेशक को बाज़ार के बढ़ने का फायदा मिलता रहेगा। सात महीने पहले, नवंबर 2012 में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी), हैदराबाद की तरफ से एक स्टडी आई थी, जिसमें बताया गया था कि जनवरी 2005 से जून 2006 के बीच शेयर बाज़ार में रिटेल निवेशकों को 8470 करोड़ रुपए का चूना लगा, जबकि उसी दरम्यान सेंसेक्स 61 फीसदी बढ़ा था। इन 18 महीनों के दौरान 24.8 लाख निवेशकों ने बाज़ार में ट्रेड किया और उनके द्वारा गंवाया गया धन देश की सकल घरेलू बचत का 0.77 फीसदी निकलता है।
आम लोगों को ऐसा नुकसान न झेलना पड़े, उनकी बचत देश के औद्योगिक विकास में काम आए और उनका धन बढ़ती कंपनियों के साथ लय-ताल मिलाकर बढ़ता रहे, इसी मकसद को पूरा करने के लिए अर्थकाम शेयर बाज़ार में सीधे निवेश की नई सेवा लेकर आया है – तथास्तु। इसमें हम हर रविवार को किसी एक ऐसी कंपनी के बारे में बताएंगे, जिसके धंधे के बढ़ने की पूरी संभावना हो। धंधा बढ़ेगा तो उसका शेयर भी लंबे समय (दो से दस साल) में पक्के तौर बढ़ेगा। कंपनी के विकास के साथ-साथ आपके निवेश का मूल्य भी बढ़ता जाएगा।
हम अच्छी कंपनी छांटकर लाने की गारंटी देते हैं और आप इसकी तस्दीक हमारे तीन साल के इतिहास से कर सकते हैं। हर साल 52 अच्छी कंपनियां, जिनमें से अपने माफिक कंपनी का चुनाव आप कर सकते हैं। इस सेवा का मूल्य हमने मात्र 200 रुपए महीने रखा है। साल भर के लिए यह सेवा लेंगे तो आपको 2400 रुपए के बजाय 2000 रुपए ही देने होंगे। सेवा का मूल्य इतना कम इसलिए रखा गया है ताकि करोड़ो आम भारतीय अपनी बचत को भारत की विकासगाथा के साथ जोड़कर बढ़ा सकें।
इधर रिजर्व बैंक की तरफ से इनफ्लेशन इंडेक्स्ड बांड लाकर अच्छी पहल की गई है। लेकिन चूंकि इन बांडों को थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति से जोड़ा गया है, न कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति से, इसलिए इन बांडों से आम आदमी पर महंगाई की मार कभी कम नहीं हो सकती। दूसरी तरफ शेयर बाज़ार में निवेश की कुछ ‘मुफ्त’ सेवाएं भी शुरू की गई हैं। लेकिन याद रखें कि आज की दुनिया में ‘मुफ्त’ कुछ नहीं होता। वे मुफ्त में आपकी निजी जानकारियां हासिल कर लेंगे, जिसका व्यावसायिक लाभ बाद में उठाएंगे। फिर आप जब उनसे काम की जानकारी या सलाह मांगेंगे तो उसका दाम वसूलने लग जाएंगे। बड़ा संगीन किस्म का है उनका बिजनेस मॉडल।
अंत में हम आपसे अपील करते हैं कि मात्र 200 रुपए में शेयर बाज़ार की मजबूत व संभावनामय कंपनियों के शिनाख्त की इस सेवा को आप अपने आसपास तक जरूर पहुंच जाएंगे। हमें भरोसा है कि एक दिन इस देश के 50 करोड़ हिंदीभाषी लोग इस सेवा के दम पर अपनी बचत को बढ़ाने की सही डगर ज़रूर पकड़ लेंगे।
तथास्तु! आमीन!! आपका धन फले-फूले और बचत लगातार बढ़ती रहे!!!
गुरू जी प्रणाम, आज कोई साल भर बाद आने का वक्त मिला , है ना! वैसे ये खुला खेल सही है— साइट के अड्डे बाजों ये इक उम्मीदो वाला जरुरत मंदी भरा लव है, क्या कहा कैसी जरूरत? किसकी जरुरत ? हमारी जरुरत ताकि मंदी ना मार डाले क्योकि मंहगाई तो बैण्ड बजा चुकी है, घूसखोरी बस बैन ही होनी (छोटे पे-ग्रेड) वाली है, वॉल मार्ट, आईकिया रुपी भस्मासुर खुदरा दुकानदारों को जल्द ही नाच नचाने वाले, वाकी स्कूल्स, पेट्रोल, गिफ्ट्स, सब्जिस, रिचार्जस, बिजली बिल आपकी बाहें मरोड कर जेब खाली करा ले जायेंगे। बचा लो वरना बच तो कुछ पाना नहीं है