जो तर्क से चलता है, उसे आप दाएं-बाएं करके पकड़ सकते हैं। पर जो भावना से चलता है, उसे तर्क से पकड़ना बेहद मुश्किल है। और, शेयर बाज़ार तर्क से कम और भावना से ज्यादा चलता है। कल हमने अभ्यास के लिए तीन स्टॉक्स डीएलएफ, मारुति और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ पेश किए। तर्क कहता था कि डीएलएफ जैसा कमज़ोर स्टॉक तो अब मुनाफावसूली का शिकार हो ही जाएगा। लेकिन वो तो 7.83% चढ़ गया। अब वार मंगल का…औरऔर भी

शेयर बाज़ार एक जैसी जगह है कि जहां लंबा/लांग होने से कहीं ज्यादा फायदा छोटा/शॉर्ट होने में है। दरअसल, शॉर्ट सौदे केवल फ्यूचर्स और ऑप्शंस सेगमेंट में शामिल शेयरों में किए जा सकते हैं और वहां लीवरेज़ काफी ज्यादा होता है। कम पूंजी में बड़े सौदे और बड़ा मुनाफा। शेयर एक दिन में 2% गिरा तो आप 20% तक कमा सकते हैं। लेकिन सीधा-सा नियम है कि रिवॉर्ड ज्यादा तो रिस्क भी ज्यादा। अब गुरुवार की बौद्ध-ट्रेडिंग…औरऔर भी

शेयरों के भाव लंबे समय में यकीनन कंपनी के कामकाज और भावी संभावनाओं से तय होते हैं। लेकिन पांच-दस दिन की बात करें तो बड़े खरीदार या विक्रेता उनमें मनचाहा उतार-चढ़ाव ला देते हैं। यह भारत जैसे विकासशील बाज़ार में ही नहीं, अमेरिका जैसे विकसित बाज़ार तक में होता है। इधर एल्गो ट्रेडिंग के बारे में कहा जा रहा है कि उसने भावों का पूरा सिग्नल ही गड़बड़ा दिया है। इन सच्चाइयों के बीच हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

ट्रेडिंग में अगर हर दिन नोट बनने लगें तो इससे अच्छा क्या हो सकता है? हर कोई यही चाहता है। लेकिन नोटों के पीछे भागने से कभी आप खुश नहीं सकते क्योंकि सारी दुनिया का धन कभी आपके पास नहीं आ सकता। कामयाब/प्रोफेशनल ट्रेडर धन के पीछे नहीं भागता। वह अक्सर ट्रेडिंग पर बकबक भी नहीं करता। वो बड़े धीरज से कमाता है ताकि जीवन में कुछ दूसरी महत्वपूर्ण चीजें कर सके। अब नए सप्ताह का आगाज़…औरऔर भी

लोग सटीक ट्रेडिंग टिप्स के चक्कर में 25,000 रुपए/माह, साल के तीन लाख तक लुटाते हैं। ऊपर से दो लाख का घाटा। फिर रोते हैं कि हाय! मेरे पांच लाख गए। पहले तो टिप्स के चक्कर में पड़ने के बजाय ट्रेडिंग की पद्धति पकड़नी चाहिए। दूसरे, दस में सात सौदे भी गलत निकलें, तब भी आप हर महीने फायदा कमा सकते हैं। फॉर्मूला इतना-सा है कि रिस्क/रिटर्न अनुपात न्यूनतम 1:3 का रखें। अब 2013 की आखिरी ट्रेडिंग…औरऔर भी

आप बुरा होना पक्का माने बैठे हों, तब ऐनवक्त पर वैसा न होना आपको बल्लियों उछाल देता है। कल ऐसा ही हुआ। थोक और रिटेल मुद्रास्फीति के ज्यादा बढ़ जाने से सभी मान चुके थे कि रिजर्व बैंक ब्याज दर बढ़ा ही देगा। लेकिन उसने मौद्रिक नीति को जस का तस रहने दिया। ग्यारह बजे इसका पता लगने के तीन मिनट के भीतर निफ्टी सीधा एक फीसदी उछलकर 6225.20 पर जा पहुंचा। पकड़ते हैं आज की गति…औरऔर भी

भारतीय शेयर बाज़ार के रोज़ के औसत टर्नओवर में 2001 से 2013 तक के 12 सालों में आम भारतीय निवेशकों की भागीदारी 89.46% से घटकर 34.31% पर आ चुकी है, जबकि विदेशी निवेशकों का हिस्सा 7.95% से 47.25% पर पहुंच गया। इसी दौरान घरेलू संस्थाओं की भागीदारी 2.59% से 18.44% हो गई। विदेशियों के धन पर यूं बढ़ती निर्भरता देश की सेहत के लिए कतई अच्छी नहीं। आप सोचें इस मुद्दे पर। चलें अब शुक्र की ओर…औरऔर भी

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी से पुराने गठबंधन के बारे में कल एक बड़ी अच्छी बात कही। उन्होंने कहा कि हमने जुआ नहीं खेला, जोखिम लिया था। ट्रेडिंग में जुए और जोखिम का यह फर्क समझना ज़रूरी है। ज्यादातर लोग जुए की मानसिकता से ट्रेड करते हैं। यही सोच उन्हें डुबाती है। हमें पता होना चाहिए कि किस ट्रेड में कितना पाने के लिए कितना जोखिम ले रहे हैं। क्या बाज़ार आज छुएगा ऐतिहासिक शिखर…औरऔर भी

शनिवार को एक शख्स से मिला जिनका अंदाज़ देखकर दिल गदगद हो गया। साथ गए सज्जन के मुंह से जैसे ही ‘टिप’ शब्द निकला, भाई पलटकर बोला, “टिप वेटर लेते हैं और मैं कोई वेटर नहीं हूं।” वाकई वेटर की मानसिकता से ट्रेडिंग में कामयाबी नहीं मिल सकती। किसी भी सलाह को जब तक आप अपने सिस्टम पर अलग-अलग टाइमफ्रेम में परख नहीं लेते, तब तक उस पर ट्रेडिंग करना गलत है। अब परखें मंगल की दशा-दिशा…औरऔर भी

प्रोफेशनल ट्रेडर रिस्क नहीं लेते क्योंकि वे हमेशा शेयरों के ट्रेंड पर चलते हैं। 365, 200, 75 व 50 दिनों के सिम्पल मूविंग औसत (एसएमए) और फिर 20, 13 व 5 दिन के एक्सपोनेंशियल मूविंग औसत (ईएमए) से देखते हैं कि खास शेयर के भावों का रुझान क्या है। वे उठते शेयरों को खरीदते और गिरते शेयरों को शॉर्ट करते हैं। बाकी उछल-कूद मचानेवाले शेयरों पर ध्यान नहीं देते। अब देखें कि रुपया संभला, बाज़ार बढ़ा कैसे…औरऔर भी