जो तर्क से चलता है, उसे आप दाएं-बाएं करके पकड़ सकते हैं। पर जो भावना से चलता है, उसे तर्क से पकड़ना बेहद मुश्किल है। और, शेयर बाज़ार तर्क से कम और भावना से ज्यादा चलता है। कल हमने अभ्यास के लिए तीन स्टॉक्स डीएलएफ, मारुति और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ पेश किए। तर्क कहता था कि डीएलएफ जैसा कमज़ोर स्टॉक तो अब मुनाफावसूली का शिकार हो ही जाएगा। लेकिन वो तो 7.83% चढ़ गया। अब वार मंगल का…औरऔर भी

ट्रेडिंग हम इसलिए करना चाहते हैं ताकि पैसा बना सकें। पैसा इसलिए बनाना चाहते हैं ताकि दुनिया में अपने व अपने परिवार के लिए सुख, समृद्धि और सुरक्षा के साधन जुटा सकें। आम व्यापार में लोगों तक उनके काम की चीजें पहुंचाकर हम मूल्य-सृजन करते हैं। लेकिन क्या शेयरों की ट्रेडिंग से ऐसा मूल्य-सृजन होता है? इसमें तो पैसा एक की जेब से निकलकर दूसरे के पास ही पहुंचता है! गंभीरता से सोचिए। नए हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

इस हकीकत से कोई इनकार नहीं कर सकता कि विदेशी संस्थागत निवेशक हमारे शेयर बाज़ार के सबसे अहम किरदार बन चुके हैं। ऊपर से मई में अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बरनान्के की तरफ से बांड खरीद रोकने के हल्के से बयान से जैसा भूचाल मचा, रुपया तक जमींदोज़ हो गया है, उससे साबित हो गया कि अमेरिका का फैसला हमें कभी भी हिला सकता है। इसे समझते हुए आगाज़ करें इस हफ्ते का…औरऔर भी

शेयरों के भाव विशेषज्ञ, विश्लेषक या सलाहकार नहीं, बल्कि भीड़ तय करती है। लेकिन जब भीड़ में शामिल अधिकांश लोगों पर तेज़ी का सुरूर चढ़ जाए तो इस तेज़ी को आगे बढ़ाने के लिए खरीदार घट जाते हैं। गिरावट शुरू हो जाती है। तब हर कोई बेचने लगता है। इसकी अति पर चक्र फिर वापस मुड़ जाता है। समझदार ट्रेडर भीड़ के साथ चलने के साथ-साथ इन अतियों का बराबर शिकार करते हैं। अब आज का बाज़ार…औरऔर भी

कहावत है कि खुद मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता। उसी तरह खुद बाज़ार की थाह लिए बगैर कोई इससे नोट नहीं बना सकता। तो! ट्रेडर को बाज़ार की थाह लेने पर कितना वक्त लगाना चाहिए? बात डे-ट्रेडिंग नहीं, बल्कि पोजिशन ट्रेड की। नया ट्रेडर तो बुनियादी बातें सीखने पर जितना वक्त लगाए, उतना कम। जो इतना सीख चुका है, उसे रोज़ाना कम-से-कम दो घंटे बाज़ार के विश्लेषण और होमवर्क पर लगाने चाहिए। अब देखें बाज़ार की दशा-दिशा…औरऔर भी