बाज़ार में खरीदना या बेचना, लॉन्ग या शॉर्ट ही नहीं, कैश भी एक पोजिशन है। हर पहलू कायदे से जांच-परख लिया है और मूर्ख अहंकारी का नहीं, विनम्र जानकार का आत्मविश्वास है तो सौदा कर डालिए। पर ज़रा-सी भी दुविधा है तो कुछ मत कीजिए। कैश बचाकर रखिए। नहीं जानते कि क्या करने जा रहे हैं तो यकीन मानिए कि शेर आपको खा जाएगा। यहां न जाननेवाले पिटते और जाननेवाले कमाते हैं। अब तलाशें गुरुवार का मंत्र…औरऔर भी

हम शेयर बाज़ार को ललचाई नज़रों से देखते हैं। हमें लगता है, वहां खटाखट नोट बनाए जा सकते हैं। लेकिन सोचिए! ये नोट छापता कौन है? रिजर्व बैंक। ज्यादा नोट जब कम स्टॉक्स का पीछा करते हैं तो बाज़ार चढ़ जाता है। इसी तरह के चक्र में अमेरिका में जनवरी 2013 से अब तक S&P-500 सूचकांक 30% बढ़ा है। न कमाया, न बचाया। 4% ब्याज पर कर्ज उठाकर लगाया और शुद्ध 26% बनाया। अब गुरुवार का मर्म…औरऔर भी

यूं तो शेयर बाज़ार हमेशा ही बड़ी पूंजी के इशारों पर नाचता है। लेकिन इधर उसके खेल ज्यादा ही निराले हो गए हैं। वे एमएफसीजी या फार्मा जैसे सदाबहार स्टॉक्स को दबाकर औने-पौने शेयरों को उछाल रहे हैं। मजबूत शेयर गिर रहे हैं, कमज़ोर शेयर कुलांचे मार रहे हैं। मिडकैप व स्मॉलकैप सूचकांक मुख्य सूचकाकों से दोगुना बढ़ रहे हैं। उस्ताद लोग बाद में कमज़ोर शेयरों को बेचकर फिर से खरीदेंगे मजबूत स्टॉक। अब हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में आग-सी लगी है। सेंसेक्स और निफ्टी थोड़ा दम मारने के बाद नया ऐतिहासिक शिखर बना डालते हैं। विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) इस साल 1 जनवरी से कल 5 मई तक भारतीय शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट में 35,559 करोड़ रुपए (करीब 590 करोड़ डॉलर) की शुद्ध खरीद कर चुके हैं। ऐसा तब है जब जनवरी से ही अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने बांडों की खरीद घटा दी है। ऐसे में है सावधानी की दरकार…औरऔर भी

बॉस से परेशान होकर शेयरों की ट्रेडिंग में उतरना चाहते हैं तो जहां हैं, जमे रहिए क्योंकि यहां भी बॉस आपका पीछा नहीं छोड़नेवाला। बॉस की बॉसगीरी आपको खलती है क्योंकि वो अपनी चलाता है, आपकी राय को कतई तवज्जो नहीं देता। यहां भी अगर आप अपनी चलाने पर तुल गए तो आपकी बरबादी तय है। यहां का बॉस है बाज़ार और आपको उसके हर फरमान का पालन करना पड़ता है। अब रुख गुरुवार की ट्रेडिंग का…औरऔर भी

मुनाफे का मौका ताड़ने में लोगों को ज्यादा वक्त नहीं लगता। हम हिंदुस्तानी इस मायने में खटाक से जोखिम उठाने को तैयार हो जाते हैं। पहले इंट्रा-डे ट्रेडिंग में लाखों ट्रेडरों ने हाथ जला डाला। अब हर कोई निफ्टी के ऑप्शंस व फ्यूचर्स से सम्मोहित है। सामान्य से सामान्य लोग जो बस गिनती-पहाड़ा तक जानते हैं, डेरिवेटिव जैसे जटिल प्रपत्रों में हाथ डाल रहे हैं। बस ऊपर-ऊपर जान लिया। बाकी रामनाम सत्य है। अब वार मंगल का…औरऔर भी

वित्त मंत्री चिदंबरम आज लोकसभा में 11 बजे आनेवाले वित्त वर्ष 2014-15 का अंतरिम बजट पेश करेंगे। इसमें वे प्रत्यक्ष या परोक्ष टैक्स की दरों में कोई फेरबदल नहीं कर सकते क्योंकि कानून इसकी इजाज़त नहीं देता। पर आम चुनावों के मद्देनज़र बड़ी-बड़ी बातें जरूर कर सकते हैं। बाज़ार की नज़र इस पर रहगी कि वे राजकोषीय घाटे को 4.8% की सीमा में बांध सके या नहीं और हां तो कैसे। अब करते हैं हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

टेक्निकल एनालिसिस या चार्टिंग का मूल मकसद है किसी खास समय तक खरीदने और बेचने वालों के बीच का संतुलन देखकर बाज़ार पर हावी भावना को समझना। लेकिन यह थोड़े वक्त, बहुत हुआ तो महीने या दो महीने के लिए फिट बैठता है। लंबे समय में कंपनी व अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स ही शेयरों के भाव तय करते हैं। इसलिए साल दो साल के निवेश पर टेक्निकल का फंदा नही कसना चाहिए। अब देखते हैं गुरु का बाज़ार…औरऔर भी

पैसा और पानी हमेशा निकलकर नीचे भागते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा फैल सकें। अमेरिका नोट छाप रहा है, पैसे की लागत/ब्याज दर दबाकर कम रखी है तो वह निकल-निकलकर बाहर भाग रहा है। अब उसने जनवरी से हर महीने 85 अरब डॉलर के बजाय 75 अरब डॉलर के ही नोट छापने का फैसला कर लिया तो अमेरिकी बाज़ार खुश हैं, बाकी मायूस। कल डाउ जोन्स ने नया शिखर बनाया तो सेंसेक्स आया नीचे। क्या होगा आज…औरऔर भी

दुनिया में आज से नहीं, सदियों से थोथा बहुत और सार कम है। कबीरदास की सीख थी कि सार-सार को गहि रहय, थोथा देय उड़ाय। फाइनेंस व ट्रेडिंग में भी 90% शोर और 10% सार होता है। अगर हम चार्ट देखकर बाज़ार में खरीदने और बेचनेवालों के सही संतुलन को समझना चाहते हैं तो शोर को दरकिनार कर सार को पकड़ना होगा, जिस तक पहुंचने का सबसे शानदार सॉफ्टवेयर है हमारी बुद्धि। अब पकड़ें आज का बाज़ार…औरऔर भी