खबर यकीकन शेयर बाज़ार और संबंधित शेयरों के लिए अहमियत रखती है। लेकिन बनने से लेकर हमारे पास पहुंचने तक वो गुल खिला चुकी होती है। उस पर खेलनेवालों की तेज़ी को हम मात नहीं दे सकते है। इसलिए खबर हमारे जैसे आम निवेशकों का ट्रेडिंग टूल कतई नहीं बन सकती। जिस दिन बड़ी खबर हो, उस दिन बाज़ार से दूर रहना बेहतर। बासी खाना और बासी खबर हमारे लिए त्याज्य है। देखें अब बुध का बाज़ार…औरऔर भी

हम बाज़ार या किसी स्टॉक के बारे में दो-चार सूचनाओं के आधार पर मन ही मन धारणा बना बैठते हैं और उसे बाज़ार पर आरोपित करते हैं। ठाने रहते हैं कि बाज़ार आज नहीं तो कल ज़रूर हमारे हिसाब से चलेगा। चार्ट पर भी हम अपनी पुष्टि के लिए मनमाफिक आकृतियां देख लेते हैं। लेकिन जब तक इस मूर्खता/आत्ममोह से निकलकर हम मुक्त मन से बाज़ार को नहीं देखते, तब तक पिटते रहेंगे। अब दशा-दिशा आज की…औरऔर भी

बड़े-बूढ़े कहते हैं कि दो-चार आदमी गलत हो सकते है, लेकिन हज़ारों-लाखों लोग गलत नहीं हो सकते। पर शेयर बाज़ार में लगता है कि इसका उल्टा है। यहां 95% ट्रेडर बड़ी मशक्कत के बावजूद घाटा खाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे कुछ न कुछ गलती कर रहे हैं। सफल ट्रेडिंग का आधार ऐसा सूत्र है जिसमें दुरूहता नहीं, सरलता हो, जिससे आसानी से नोट बनाए जा सकें। हम उलझाते नहीं, सुलझाते हैं। अब देखें आज का बाज़ार…औरऔर भी

आप शेयर बाज़ार में अच्छी तरह ट्रेड करना चाहते हैं तो आपको मानव मन को अच्छी तरह समझना पड़ेगा। आखिर बाज़ार में लोग ही तो हैं जो आशा-निराशा, लालच व भय जैसी तमाम मानवीय दुर्बलताओं के पुतले हैं। ये दुर्बलताएं ही किसी ट्रेडर के लिए अच्छे शिकार का जानदार मौका पेश करती हैं। निवेश व ट्रेडिंग के मनोविज्ञान पर यूं तो तमाम किताबें लिखी गई हैं। लेकिन उनके चक्कर में पड़ने के बजाय यही पर्याप्त होगा किऔरऔर भी

मौकापरस्ती अलग है और मौके को पकड़ने के हमेशा तैयार रहना अलग बात है। जिस तरह जीवन में मौके डोरबेल बजाकर नहीं आते, उसी तरह शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग में मौके अचानक आपके सामने प्रकट हो जाते हैं। उन्हें पकड़ने के लिए आप तैयार नहीं रहे तो हाथ से निकल जाएंगे। इसके लिए हाथ का खाली रहना ज़रूरी है। अगर आप किसी स्टॉक के प्यार में फंस गए तो समझो गए। अब तलाश आज के मौकों की…औरऔर भी

हमें वही रिस्क उठाना चाहिए जिसे पहले से नापा जा सके, बजाय इसके कि रिस्क उठाने के बाद नापा जाए कि उससे कितनी चपत लग सकती है। किसी सौदे में कितना नफा-नुकसान हो सकता है, इससे बेहतर है यह समझना कि कितना घाटा उठाकर हम कितना फायदा कमा सकते हैं। इसी तरह सफलता का रहस्य मुनाफा कमाने की जुगत में लगे रहने के बजाय घाटे से बचने में है। इन सूत्रों पर कीजिए मनन। बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

यह बात कतई समझ में नहीं आती कि हमारे यहां केवल रिटेल निवेशकों को ही इंट्रा-डे ट्रेडिंग की इजाज़त है जबकि संस्थागत निवेशकों को इसकी मनाही है। आखिर क्यों आम निवेशकों के हितों की हिफाज़त के लिए बनी सेबी ने शेयर बाज़ार की सबसे जोखिम भरी गुफा को मासूम निवेशकों के लिए खोल रखा है और शातिर संस्थाओं को बचा रखा है? यह निवेशकों की कैसी अग्निपरीक्षा है आखिर? इस आग से बचते हुए बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

हम सभी मूलतः रिटेल ट्रेडर ही तो हैं। लेकिन जब तक हम इस स्थिति से निकल प्रोफेशनल ट्रेडर का अंदाज़ नहीं अपनाते, तब तक पिटने को अभिशप्त हैं। लगातार घाटे से बचने के लिए हमें अपनी सोच को बदलना होगा। होता यह है कि जब प्रोफेशनल ट्रेडर या संस्थागत निवेशक खरीदते हैं, तब रिटेल निवेशक बेचते हैं। वहीं प्रोफेशनल ट्रेडर जब बेचते हैं, तब रिटेल निवेशक खरीदते हैं। इन मानसिकता को तोड़ने के लिए करते हैं अभ्यास…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में मांग और सप्लाई अक्सर स्थिर नहीं रहती। उनका संतुलन हर पल बदलता है। इसलिए भाव भी बराबर बदलते रहते हैं। कभी ऊपर तो कभी नीचे। भावों की गाड़ी हिचकोले खाते हुए चलती है। लेकिन कभी-कभी कुछ समय के लिए मांग और सप्लाई में बराबर का संतुलन बन जाता है। इसके बाद संतुलन टूटने पर भाव ऊपर या नीचे उछलते हैं। ट्रेडिंग में ऐसे मौके (एनआरएफ) बड़े काम के होते हैं। अब ट्रेडिंग शुक्र की…औरऔर भी

बाज़ार में जब भी संस्थागत निवेशकों या एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स) का बड़ा धन लगता है तो शेयर फौरन उछल जाते हैं। वहीं उनके बेचने पर शेयर खटाक से गिर जाते हैं। लेकिन रिटेल निवेशकों की खरीद/बिक्री का खास असर शेयरों पर नहीं पड़ता। जिस तरह हाथी के चलने से मिट्टी रौंदी जाती है, उसी तरह बड़ों की मार में छोटे निवेशक पिसते हैं। इसलिए कमाई बड़ों की राह पकड़ने से होती है। अब आज का बाज़ार…औरऔर भी