यहां हर चीज का अपना स्वतंत्र चक्र है। तन का भी और उससे जुड़े मन का भी। खुद को दूसरे के हवाले करते ही चक्र उसकी शर्तों पर ढल जाता है। पर मुक्ति अपने चक्र के अपनी शर्तों पर चलने से मिलती है।और भीऔर भी

हर किसी को दूसरे की नहीं, दूसरों की पड़ी है। दूसरे के लिए काम करने से क्या मिलेगा? पर दूसरों को लुभा लिया तो धंधा जम जाएगा। दूसरों को साधने में दूसरे के गायब हो जाने का यह रहस्य वाकई गजब है।और भीऔर भी